माहौल ऐसा बनता जा रहा है कि आप कुछ कहना चाह कर भी कुछ नहीं कहना चाहते ! कुछ बोलते ही आपको कोई ना कोई सिरफिरा किसी ना किसी पाले में धकेल देगा। क्योंकि निरपेक्षता जैसा कुछ तो रहने ही नहीं दिया गया है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब चुनाव जाति-पाति-भाषा को किनारे कर संपन्न हुए थे, अच्छा लगा था कि योग्य लोग बागडोर संभालेंगे। पर अब फिर वही पुरानी चाल, दलों ने “राग-जाति”, “राग-धर्म” अलापने के साथ-साथ असंयमित आचरण, अमर्यादित भाषा के साथ-साथ एक दूसरे पर बेबुनियादी लांछन लगाना, छीछालेदर करना, कीचड़ उछालना शुरू कर दिया है। जनता तंग आ चुकी है ऐसे कृत्यों से, ऊब चुकी है ऐसी स्तरहीन नौटंकियों से, उनके व्यवहार से, उनकी ओछी राजनीती से ! पर पता नहीं इतने पढ़े-लिखे, समझदार, ज्ञानी लोगों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती कि अवाम सरे-आम किसी की बेइज्जती ज्यादा देर सहन नहीं कर पाती उल्टे उसकी सहानुभूति दूसरे पक्ष की ओर ही हो जाती है।
याद कीजिए 1977 के आस-पास का समय सारे दिग्गज नेता एक-जुट हो इंदिरा गांधी के पीछे पड़ गए थे, उनकी छवि धूमिल करने और उन्हें जेल भिजवाने के लिए ! नतीजा क्या हुआ ? जनता ने इंदिरा जी को ही सर्वोच्च स्थान पर ले जा बैठाया। अभी भी वैसा ही हुआ, जैसे ही भाजपा ने अनर्गल बोलना बंद कर विकास का पल्ला थामा वैसे ही लोगों ने राज्य पर राज्य उनकी झोली में ला डाले। इतना सब होने के बावजूद कांग्रेस को समझ नहीं आ रहा है कि मीठी वाणी का सहारा ले तथ्यों की बात की जाए ! किसी के चरित्र हनन की बजाए देश की उन्नति की बात की जाए ! जाति-भाषा-धर्म को छोड़ सर्वहारा की बात की जाए !
बहुत सकून मिला था जब राहुल जी ने कहा था कि मतभेद व्यक्ति से होना चाहिए, पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को भी प्रधान मंत्री के पद का सम्मान करने के निर्देश दिए थे, पर अगले दिन वे खुद ही सीमा का उल्लंघन कर प्रधान मंत्री को निशाना बनाते नज़र आने लगे ! कौन है जो उनकी रणनीति तैयार करता है ? कौन है जो विभिन्न चैनलों पर अपने मेक-अप पुते चेहरों से अनर्गल वार्तालाप करवाता है ? कौन है जो शह देता है सोशल मीडिया पर बकैती करने वालों को, जिनकी बातें पार्टी के प्रति सहानुभूति कम विरोधी ज्यादा बनाती है ? कौन है, जिसको इतनी समझ नहीं है कि उसकी अधकचरी हरकतें राहुल ही नहीं वर्षों पुरानी कांग्रेस की जड़ों को भी कमजोर कर रही हैं ? और ये बातें उनके दिग्गज, अनुभवी, सक्षम नेताओं को भी क्यों नहीं दिखाई पड़ रहीं ? क्या वे इतने कमजोर पड़ गए हैं कि दल की भलाई की बात कहने में भी डरते हैं ? क्या उन्हें दिख नहीं रहा कि गलत सलाहों और सलाहकारों की वजह से पार्टी के ऐसे दिन आ गए हैं कि गुजरात में शतायु कांग्रेस को उनकी बात माननी पड़ रही है जिनका ना कोई इतिहास है, ना ही समझ, ना ही अनुभव, सिर्फ थोड़ी सी भीड़ का साथ है, वह भी ना जाने कब साथ छोड़ जाए ! क्या इतने चुनाव परिणाम भी कुछ समझा नहीं सके ? दुःख होता है ऐसी पार्टी का ऐसा हश्र देख कर, और भी ज्यादा इसलिए कि अभी भी सुधरने की सार्थक कोशिश नहीं की जा रही !
उधर भाजपा अपनी रणनीति के तहत हिन्दू-गैर हिन्दू साबित करने में, मंदिर आने-जाने में को ले कर जमीन-आसमान एक करे दे रही है। आम आदमी को समझ नहीं आ रहा है कि किसी के मंदिर जाने में किसी को क्या और क्यों आपत्ति होनी चाहिए ? क्या हो जाएगा यदि कोई गैर हिन्दू है भी तो, इंसान तो है ना वह ! उसकी नियत साफ़ है, देश के लिए, समाज के लिए, जन-हित के लिए यदि वह कुछ करना चाहता है तो हिन्दू होंना क्यों जरुरी है ? कतई जरुरी नहीं है पर नौसिखिए सलाहकारों ने जनेऊ-दर्शन काण्ड में राहुल को ही फंसा डाला ! ऐसे अधकचरे लोग दोनों तरफ हैं जो बिन सर-पैर के ऊल-जलूल प्रयासों द्वारा एक दूसरे का चरित्र-हरण करने की ओछी हरकतें करते रहते हैं।
कहते हैं कोई राजा तभी सफल हो सकता है, कोई राज्य तभी तरक्की कर सकता है, जब उसके सलाहकार गुणी, विचारक व विद्वान हों। चापलूसों, चारणों, खुशामिदियों और हाँ में हाँ मिलाने वाले दरबारियों से घिरा दिगभ्रमित राजा और उसका राज्य कहीं का नहीं रहता !
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