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अवगत होते रहते थे। उन्हीं ने एक पौधे के बारे में जानकारी दी जो दवाई के रूप में इस बिमारी में बहुत लोकप्रिय हो रहा है, नाम है उसका, इंसुलिन प्लांट (costus igneus)। हिंदी में इसे जारूल या केऊकंद के नाम से जाना जाता है।
वैसे तो हर “पैथी” मधुमेह के इलाज का दावा करती है, पर शायद सच्चाई यही है कि इसे ताउम्र साथ पालना पड़ता है। हाँ खान-पान और संयमित जीवन-यापन से इस पर नियंत्रण रखा जा सकता है और इसी में सहायता करता है यह पौधा। आधुनिक विज्ञान भी इस इंसुलिन के पौधे के गुणों पर अपनी मुहर लगा चुका है। कहते हैं, इस हर्बल पौधे के पत्तियों का सेवन करने से हाइ डाइबटीज को भी अपने नियंत्रण में किया जा सकता है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसे किसी भी अच्छी नर्सरी से ला कर आसानी से घर में गमले इत्यादि में लगाया जा सकता है।
जैसा कि सब जानते हैं कि डाइबटीज दो प्रकार की होती है। एक टाइप वन व दूसरी टाइप टू डाइबटीज। टाइप वन डाइबटीज के अंतर्गत रोगी का शरीर इंसुलिन हार्मोन नहीं बना पाता। इसलिए उस व्यक्ति को ताउम्र इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है। पर कुछ संतोष की बात यह है कि डाइबटीज के करीब 10 प्रतिशत
रोगियों में ही टाइप वन पाया जाता है। वहीं दूसरी ओर टाइप टू डाइबटीज के अंतर्गत व्यक्ति का शरीर इंसुलिन तो बनाता है लेकिन उसकी मात्रा पर्याप्त नहीं होती। इन रोगियों के ही शरीर में दवा या इंजेक्शन, के जरिए इंसुलिन पहुंचाया जाया है। विशेषज्ञों के अनुसार डाइबटीज टू से पीड़ित रोगियों की संख्या करीब 80 प्रतिशत है और इनके लिए “इंसुलिन प्लांट” बहुत ही कारगर साबित हुआ है। इसके पत्तों का नियमित रूप से सेवन करने से पैंक्रियाज में हॉर्मोन बनाने वाली ग्रंथि के बीटा सेल्स मजबूत होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप पैंक्रियाज ज्यादा मात्रा में इंसुलिन बनाता है, जिसके चलते अतिरिक्त दवा की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती।
इंसुलिन पौधा प्रकृति की ओर से मधुमेह के रोगियों को एक अनमोल उपहार है। रोज इसकी एक-दो पत्तियां, जिनमें कोरोलोसिक एसिड होता है, खा लेने से ही इस ढीठ रोग को तो नियंत्रण में रखा ही जा सकता है साथ ही ब्लड शुगर भी नियंत्रित रहती है। पर दावे चाहे कितने भी लुभावने हों कुछ भी शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर ले लेनी चाहिए।
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