रेल, एक ऐसा नाम जिसका जादू छोटे-बड़े सबके सर चढ़ कर बोलता है। सैकड़ों गाड़ियां, लाखों लोगों को अपने गंतव्य पर पहुँचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। शायद ही ऐसा कोई होगा जिसे रेल ने मोहित ना कियाहो। आज भी देश का सर्वसुलभ, सबसे सस्ता, सुरक्षित माध्यम कहीं की भी यात्रा के लिए। तक़रीबन डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा के समय में इसने भी तरह-तरह के बदलाव देखे हैं। अपने देश में तो रेल घोड़े से नहीं खींची गयी; यहां भाप के इंजिन से शुरुआत हुई। धीरे-धीरे उनकी क्षमता में बढ़ोत्तरी होती गयी जिससर रफ़्तार और रख-रखाव में फर्क पड़ा फिर बिजली और डीजल के एक से बढ़ कर एक इंजन आए, जिन्होंने दूरियों की परिभाषा ही बदल दी। जब भी कहीं बदलाव होता है तो पुराने को जगह छोड़नी पड़ती है। उपयोगिता ख़त्म होने के साथ ही लोग उन्हें भूलने लगते हैं। भूला दिया जाता है उसका योगदान जब वह ही सबसे बड़ा सहारा हुआ करता था। ऐसा ही हुआ हमारे पुराने भाप के इंजनों के साथ, पुराने डिब्बों के साथ, पुराने यंत्रों के साथ ! जिनके बारे में आज की पीढ़ी कुछ नहीं जानती। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में करीब दस एकड़ के क्षेत्र में 01 फ़रवरी 1977 में राष्ट्रीय रेल परिवहन संग्रहालय की स्थापना की गयी। जिससे लोग रेल के इतिहास से रूबरू होते हुए जान सकें कि कैसे भारतीय रेलवे नें देश को एक राष्ट्र के रूप में उभारने में एक अहम भूमिका निभाई।
इस संग्रहालय के दो भाग हैं। एक पूरी तरह खुला तथा दुसरा एक भवन के अंदर। जहां दोनो ही प्रकार की रेल धरोहरें सुरक्षित हैं। इस अनोखे संग्रहालय में भारतीय रेलवे के 100 से अधिक, अपने वास्तविक आकार के शानदार और आकर्षक संग्रह है। इनमें इंजन और डिब्बों के स्थिर और चल मॉडल, सिगनिलिंग उपकरण, ऐतिहासिक फोटोग्राफ और संबंधित साहित्य सामग्री आदि शामिल है। इस अनोखे संग्रहालय में भारतीय रेलवे के 100 से अधिक अपने वास्तविक आकार के प्रदर्शित सामान का एक शानदार और आकर्षक संग्रह है। भवन के अंदर वाले हिस्से में भारतीय रेल के इतिहास, क्रमिक विकास और वैभव को दर्शाने वाली अनेक फोटोग्राफ के साथ-साथ सिगनिलिंग उपकरण, संबंधित साहित्य सामग्री और इंजिनों, बोगियों, कल-पुर्जों के मॉडल आदि प्रदर्शित किए गए हैं। जिनमें विश्व के सबसे पहले इंजन, के साथ ही भारत की पहली रेल का मॉडल, इंजन और उस डिब्बे का स्वरूप भी प्रदर्शित है जिसमें महात्मा गाँधी की अस्थियां देश भर में ले जाई गयीं थीं।
उधर बाहर के खुले में अनेक प्रकार के रेल इंजन, रेल कोच, मालवाहक रेल बोगी के स्थिर और चल मॉडल आदि को उनके मूल स्वरूप में रखा गया है। जिनमें कालका-शिमला रेल बस, माथेरान हिल रेल कार, नीलगिरि माउंटेन रेलवे आदि अन्य आकर्षण को पास से देखने, छूने तथा कुछ पर बैठने का आनंद उठाते हुए पुराने समय का अनुभव लिया जा सकता है। यहीं 1907 में निर्मित एक अनोखा मोनोरेल इंजन जो पटियाला रियासत की विरासत था भी प्रदर्शित है (Patiala State Monorail System) इस अनोखे इंजन की विशेषता थी कि इसका एक पहिया पटरी पर और दूसरा, जो आकार में बड़ा है वह पहिया सड़क पर चला करता था, देखने में यह एक पहिये वाली ट्रेन मालूम पड़ती है। इसी के साथ यहां राजाओं-महाराजाओं के निजी शाही सैलून भी रखे गए हैं, जिनसे रियासतों के वैभव का अंदाज लगाया जा सकता है। पर आजकल बढ़ती भीड़ और कम रखरखाव के कारण उनको क्षति पहुँचने के अंदेशे से उन्हें बंद कर दिया गया है। वैसे भी ऐसे सैलून आजकल “हैरिटेज ट्रेनों” की शोभा बढ़ा कर रेलवे की आमदनी में इजाफा करने में लगे हुए हैं।
पर्यटकों और खासकर बच्चों के लिए यहां एक छोटी रेल भी चलाई जाती है, जो पांच-छह मिनट में धीरे-धीरे चल कर पूरे संग्रहालय का चक्कर लगवाती है। उसका अपना ही मजा और आनंद है। बड़ी गाड़ियों की तरह टिकट चेक होते हैं, चलने का आदेश होता है, सिटी बजती है और फिर ठक, ठका-ठक, ठक पटरियां बदलती, छोटी सी गुफा से गुजरती, सिटी बजाती, चक्कर पूरा कर अपने स्टेशन “म्यूजियम जंक्शन” पर आ ठहरती है। स्टेशन के ठीक सामने ही बच्चों के एक छोटे से खेल-स्थल के साथ-साथ म्यूजिकल फव्वारों का भी निर्माण पूरा हो चुका है। जिनसे निकलता पानी एक अलग छटा प्रस्तुत करता है। वहीँ IRCTC ने अपना गोल आकार का रेस्त्रां भी खोल दिया है जहां घूमने के पश्चात् थकान और भूख दोनों मिटाई जा सकती हैं। इसकी एक विशेषता यह भी है कि इसकी दिवार के साथ साथ एक खिलौना इंजन लगातार चक्कर लगा आगंतुकों का मनोरंजन करता रहता है।
कभी भी समय मिले तो अपने बच्चों और बाहर से आए मेहमानों को भारतीय रेलवे के 162 वर्ष पुराने इतिहास व विरासत को देखने-समझने, पुराने दुर्लभ भाप, डीजल व बिजली के इंजन,व बहुत सारी कला कृतियों के बारे में जानने के लिए एक बार यहां जरूर ले कर आएं।
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments