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#हिन्दी_ब्लागिंग
अभी जहां पूरा देश अपने सबसे बड़े पर्वों में से एक होली के खुमार में डूबा हुआ है, वहीँ कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहां वर्षों से लोगों ने इस त्यौहार को नहीं मनाया है। मौज-मस्ती की जगह इस दिन यहां सन्नाटा पसर जाता है, मनहूसियत छा जाती है, चिंता व डर का माहौल बन जाता है। ऐसी ही जगह है, झारखंड प्रदेश के बोकारो
जिले का करीब 9 हजार की आबादी वाला दुर्गापुर गांव, जो राजधानी से लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर खांजो नदी के पास, पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है। इस गांव के लोग होली पर खुशियां नहीं मनाते, रंगों को हाथ तक नहीं लगाते, क्योंकि एक दशक के ऊपर से चली आ रही एक मान्यता के अनुसार उन्हें डर है कि ऐसा करने से गांव को आपदा या महामारी का प्रकोप झेलना पड़ जाएगा।
इसके पीछे की कथा के अनुसार इस जगह को राजा दुर्गादेव ने बसाया था और उन्हीं का राज था। उस समय सब तीज-त्यौहार मनाए जाते थे। पर कुछ समय बाद राजा के बेटे की होली के दिन ही मौत हो गई। उसके बाद जब भी गांव में होली का आयोजन होता था यहां कभी भयंकर सूखा पड़ जाता था या फिर महामारी का सामना करना पड़ता था, जिससे गांव में कई लोगों की मौत हो जाती थी। फिर एक बार होली के ही दिन पास के इलाके रामगढ़ के राजा दलेल सिंह के साथ हुए युद्ध में राजा दुर्गादेव की भी मौत हो गयी जिसकी खबर सुनते ही रानी ने भी आत्म ह्त्या कर ली ! कहते हैं अपनी मौत से पहले राजा ने आदेश दिया था कि उसकी प्रजा कभी होली न मनाए। तब से उसी शोक और आदेश के कारण यहां के लोगों ने होली मनानी छोड़ दी।
समय बदला तो कुछ लोगों ने त्यौहार के दिन खुशियां मनाने की कोशिश की तो कुछ बीमार पड़ गए तो कुछ की मौत हो गयी, फिर पहाड़ी पर जा पूजा-अर्चना की गयी जिससे शांति लौटी। उस घटना ने लोगों के दिलों में
, विश्वास माने या फिर अंधविश्वास ! लेकिन इसकी जड़े इतनी गहरी हैं कि यहां से बाहर जाकर काम करने वाले लोग भी अपने घरों में रंग नहीं खेलते। यहां तक की उनके ऊपर फेंके गए रंग का वो जवाब भी नहीं देते हैं।
कुछ गांव वालों का कहना है कि समय के साथ यहां के लोग भी बदल रहे हैं और अब यहां के युवा दुर्गापुर से बाहर जाकर होली मनाने लगे हैं। एक स्थानीय ने बताया कि जो लोग होली मनाना चाहते हैं वे गांव छोड़कर दूसरे गांव में जा कर अपने परिचितों के साथ होली मनाते हैं।
*चित्र अंतर्जाल से
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