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मलेरिया दिवस, आज मच्छरों को बचाना है कि हटाना है ?

kuchhalagsa.blogspot.com
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#हिन्दी_ब्लागिंग 

जिस तरह दिनों का तरह-तरह के मुद्दों के लिए दिनों का आवंटन हो रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि आने वाले दिनों में दिन कम पड़ जाएंगे, मुद्दों की बनिस्पद।  25 अप्रैल ! आज विश्व मलेरिया दिवस है, अखबार से पता चला; पर उसने यह नहीं बतलाया कि इस बिमारी और इसके कीट का संरक्षण करना है या इसे हटाना है!

सुबह से ही भम्भल-भूसे में हूँ कि आज के दिन का उद्देश्य क्या है ? क्योंकि हमारे यहां रिवायत है कि दिवस उसी का मनाया जाता है जिसके अस्तित्व पर हम खुद खतरा मंडरवाते हैं और फिर उसे बचाने का नाटक करने का एक दिन निर्धारित कर देते हैं। जैसे पर्यावरण दिवस, हिंदी दिवस, धरा दिवस ! और तो और हम तो मातृ-पितृ दिवस भी मनाने लगे हैं, गोया कि ये हमारे माता-पिता ना हो कर कोई जींस हों ! 

खैर, बात हो रही थी मच्छर की तो मुझे यही लगा कि मानव को छोड़ कुत्ते-बिल्लियों-भालू-बंदरों को बचाने वाली संस्थाओं को शायद इस छुद्र कीट का भी ध्यान आ गया हो, क्योंकि जिस तरह वर्षों से इसकी जान के पीछे दसियों देश हाथ धो कर पड़े हुए हैं। करोड़ों-अरबों रूपए इसको नष्ट करने के उपायों पर खर्च किए जा रहे हैं, तो कहीं इसकी प्रजाति नष्ट ही ना हो जाए। वैसे भी इन तथाकथित पशु-प्रेमियों को समाचारों में बने रहने का बहुत शौक होता है। जानकार लोगों का कहना है कि तरह-तरह की सावधानियां, अलग-अलग तरह के उपाय आजमाने के बावजूद साल में करीब चार लाख के ऊपर मौतें इसके कारण हो जाती हैं। इतने लोग तो मानव ने आपस में लडे गए युद्धों में भी नहीं खोए ! तो क्या ! सिर्फ इसीलिए हम प्रभू की एक अनोखी रचना को

मटियामेट कर देंगे ? नहीं ! एक-डेढ़ मिलीग्राम के इस दंतविहीन कीड़े को भी जीने का उतना ही हक़ है जितना इंसान को ! रही बात इंसान की मौतों की तो; लाखों लोग सिगरेट के कारण रोग- ग्रस्त हो दुनिया से कूच कर जाते हैं, अनगिनत लोग शराब के कारण मौत का निवाला बन जाते हैं, ड्रग्स, नकली दवाइयां, दूषित हवा, अशुद्ध जल, मिलावटी खाद्य पदार्थों से लाखों लोग असमय मृत्यु का शिकार हो जाते हैं तो क्या सिगरेट बंद हुई ? शराब के कारखानों पर ताले लगे ? साफ़ सुथरा खान-पान उपलब्ध हुआ ? वायुमंडल सांस लेने लायक बन पाया ? नहीं ! तो फिर इस गरीब के पीछे क्यों पड़े हो भई ? हम तो उस देश से हैं जहां जहरीले सांप को भी दूध पिलाया जाता है, भले ही वह उसे नुक्सान ही पहुंचा दे, चूहों को हम देवता की सके वारी मानते हैं, भले ही वह करोड़ों के अनाज का सत्यानाश कर दे ! कुत्तों के लिए लाखों घरों से रोज रोटियां निकलती हैं, भले ही भूख के कारण किसान मर जाते हों तो फिर इस मासूम जीव ने क्या पाप किए हैं ? यही सब सोच के मुझे लगा कि मलेरिया दिवस पर मच्छरों को संरक्षित करने के लिए ही इस दिन को चुना गया होगा। तो मैंने भी इसके लिए कुछ इंतजामात करने की सोची पर नासमझ विरोधी पक्ष के कारण…………… खैर छोड़िए !

वैसे शायद प्रभू की भी यही इच्छा है कि ये नन्हा सा जीव फले-फूले नहीं तो क्या 1953 से इसके उन्मूलन में लगी दुनिया सफल ना हो जाती ? फिर इसकी पूरी फैमिली भी तो हमारी शत्रु नहीं है; बेचारा नर तो फूलों का रस वगैरह पी कर ही गुजारा कर लेता है। रही मादा की बात तो हर नारी जो वंश वृद्धि करती है उसे तो पौष्टिक खुराक चाहिए ही सो वह जरा सा जीवों का खून ले उसकी पूर्ती करती है, तो इसमें बुराई क्या है ? वैसे इंसानों की एक कहावत, “नारी ना सोहे नारी के रूपा” की पूरी हिमायतन है, इसलिए वह महिलाओं का खून विशेष रूप से पसंद करती है। वैज्ञानिकों के अनुसार महिलाओं के पसीने में एक विशेष गंध होती है, वही मादा मच्छरों को अपनी ओर आकर्षित करती है और इसके साथ ही लाल रंग या रोशनी भी इन्हें बहुत लुभाती है।

सांप भले ही नाग देवता हो, उसकी बांबी में हाथ तो नहीं डालते। वैसे ही इनसे बच कर रहने की जरुरत है और इसका उपाय यही है कि खुद जागरूक रह कर अपनी सुरक्षा आप ही की जाए। क्योंकि ये महाशय “देखन में छोटे हैं पर घाव गंभीर करते हैं”।             

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