#हिन्दी_ब्लागिंग भले ही हम कितना भी नकारें पर यह दुखद व कड़वा सच है कि हेरा-फेरी, धोखा-धड़ी, जुगाड़ जैसी विधाएं हमारे “गुणों” में शामिल हैं। हम सदा दूसरों को ईमानदार, सच्चा, नेक और आदर्श इंसान देखना चाहते हैं, किसी में जरा सी बुराई देखते ही उस पर राशन-पानी ले पिल पड़ते हैं, पर जब खुद के स्वार्थ या लाभ की बात होती है तो हमें कुछ भी गलत या अनैतिक नहीं लगता।
वर्षों से पढ़ते-सुनते आए हैं कि बच्चों को संस्कार देना माता-पिता का फर्ज है जिससे वे एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें। पर जो अभिभावक खुद ही कुकर्मों में लिप्त हों, जिनके लिए अपनी स्वार्थ-पूर्ती ही अभीष्ट हो, वे क्या आदर्श, शिक्षा या नैतिकता का पाठ पढ़ाएंगे अपने नौनिहालों को ? जो बच्चा बचपन से ही झूठ, धोखा-धड़ी, भ्रष्टाचार के माहौल में पलेगा-बढ़ेगा वह बड़ा होकर देश व समाज के हित को तो पैरों की ठोकर पर ही रखेगा ना !
आज एक विचित्र अनुभव हुआ जब अखबार में दिल्ली के एक व्यवसाई की करतूत पढ़, पिछले साल मई में आई “हिंदी मीडियम” फिल्म की याद आ गयी। जिसमें एक धनाढ्य व्यक्ति खुद को गरीब तबके का साबित कर अपने बच्चे को एक प्रतिष्ठित स्कूल में, आरक्षित कोटे के अंतर्गत दाखिल करवा देता है। पर इन महाशय ने यह कारनामा फिल्म आने के चार साल पहले ही कर दिया था। पकड़ाई में भी तब आए जब अपने दूसरे बच्चे को भी उसी तरह वहां दाखिल करवाने का जुगाड़ भिड़ा रहे थे।
दिल्ली के राजनयिक इलाके, चाणक्यपुरी में एक बहुत ही प्रतिष्ठित, नामी-गिरामी, विख्यात नर्सरी से लेकर बाहरवीं तक का CBSC से सम्बद्धित एक विद्यालय है, जिसका नाम संस्कृति स्कूल है। इसे ख़ास तौर पर सरकारी, सैन्य तथा विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के बच्चों के लिए बनाया गया है। इसकी गिनती देश के बेहतरीन स्कूलों में की जाती है। इसका संचालन एक NGO के द्वारा किया जाता है जिसका गठन वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की पत्नियों ने किया है। इसमें कुछ सीटें, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से आरक्षित रखी गयीं हैं।
अब आज की खबर ! दिल्ली का एक धनाढ्य व्यवसाई, अब नाम क्या लेना, जिसका अपने MRI सेंटर के साथ-साथ अनाज इत्यादि का थोक का व्यवसाय है। जो बीसियों बार विदेश भ्रमण कर चुका है। उसने 2013 में अपने बड़े बेटे को, नकली कागजातों, गलत आय विवरण और खुद को अपने ही MRI सेंटर का कर्मचारी तथा घर के पते में, अपने बंगले की जगह चाणक्यपुरी के पास की बस्ती संजय कैम्प का उल्लेख कर संस्कृति स्कूल में दाखिल करवा दिया था। पांच साल निकल गए, किसी को हेरा-फेरी की भनक तक भी नहीं लगी। शायद लगती भी नहीं ! पर अपनी पुरानी तिकड़म से कइयों को बेवकूफ बना विश्वास के अतिरेक में डूबा, अपनी “चतुराई” पर इतराता यह इंसान, इस साल अपने छोटे बेटे को, भाई-बहन वाले कोटे के अंतर्गत दाखिला दिलवाने फिर वहीँ पहुँच गया। पर कहते हैं ना कि अपराध कभी ना कभी सामने आ ही जाता है; तो इस बार स्कूल के संचालकों को कागजों पर शक हुआ। छानबीन के दौरान सारी बातें सामने आ गयीं। नतीजा बाप को तो जेल हुई ही, तीसरी क्लास में पढ़ रहे उसके बड़े लड़के को भी स्कूल से निकाल दिए जाने के कारण उसका भविष्य भी अंधकारमय हो गया ! क्या चाहता था यह आदमी ? क्यूँ किया उसने ऐसा ? क्या सिर्फ अपने को चतुर साबित करने के लिए ? एक बार भी उसके दिमाग में यह बात नहीं आई कि सच सामने आने पर उसके बच्चों का भविष्य क्या होगा ? और तो और जब बच्चों को अपने पिता की इस करतूत का पता चलता तो क्या होता ?
अभी तक कई बार ऐसा सुनने में आया है कि अपराधी ने पकडे जाने पर अपने अपराध को किसी फिल्म से प्रेरित होना बताया है। पर यहां तो उल्टा हुआ है ! रियल लाइफ के नाटक को सालों बाद रील लाइफ में तब्दील किया पाया गया। क्या यह संयोग था या कहीं “हिंदी मीडियम” फिल्म बनाने वालों को इस हेरा-फेरी की भनक तो नहीं लग गयी थी ?
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