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लाल किताब मुख्यतः उसमें दर्शाए गए सांसारिक आधि, व्याधि तथा उपाधियों के सचोट उपाय के लिए प्रसिद्ध है। सर्वप्रथम पंडित रूपचंद जोशी ने १९३९ और १९५२ के बीच के समय में उसका उर्दू से हिन्दी में अनुवाद किया।
१. १९३९ में लाल किताब के फरमान
२. १९४० में लाल किताब के अरमान
३. १९४१ में लाल किताब-३
४. १९४१ में लाल किताब के फरमान
५. १९५२ में लाल किताब
लाल किताब की प्रत्येक आवृत्ति के मुखपृष्ठ पर निम्नलिखित पंक्तियाँ दिखाई देती हैं-
बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज है। (बीमारी बिना दवा के भी ठीक हो सकती है)
मगर मौत का कोई इलाज नहीं। (परंतु मृत्यु का कोई इलाज नहीं है)
सांसारिक हिसाब – किताब है। (दुनियाई गणनाएँ हैं)
कोई दवा ईश्वरीय नहीं है।( ईश्वर की तरफ से कोई अंतिम फैसला नहीं है)
किसी भी जन्मपत्री का भविष्यफल या विश्लेषण तब तक कठिन है, जबतक ये ज्योतिषी पापग्रहों के अनिष्ट प्रभाव कम करने के लिए कोई उपाय जातक को न बता दें।
ज्योतिषशास्त्र में अपने दस वर्षों का अनुभव में मैंने हजारों कुंडलियाँ देखी है। लाल किताब में बताए गए उपायों की उन्होंने सिफारिश की है और ग्रहों के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में बड़े पैमाने पर सफलता प्राप्त की है। ऐसे भी कुछ ज्योतिषी हैं जो मानते हैं कि किसी दुःख दर्द के निवारण के लिए व्यक्ति को उपाय बताना उसके कर्म भोगने के मामले में हस्तक्षेप करने के बराबर है, परंतु मैं इस विचारधारा के साथ सहमत नहीं हूँ। मेरे मतानुसार लाल किताब में बताए गए उपाय बहुत सरल और हरेक के लिए अनुकूल हैं। इसमें सुनने तथा ध्यान देने जैसी बात यह है कि जिस तरह वैद्य या डाक्टर की सलाह के बिना स्वयं दवा लेना हानिकारक साबित हो सकता है उसी तरह लाल किताब में बताए गए उपाय किसी व्यवसायी ज्योतिषी के निरीक्षण के बिना अमल में लाना हानिकारक साबित हो सकता है।
सुखविंदर शर्मा
http://ganeshaspeaks.com/sukhwinder_sharma.jsp
सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर
गणेशास्पीक्स
Many troubles of human life can be remove by those methods which are given in Lal Kitab.
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