मनुष्य अदृश्य शक्तियों का भंडार है किंतु उसकी ये शक्तियाँ बाह्य प्रपंचों के कारण निर्बल, क्रियाहीन और चेतनाशून्य बनी हुई हैं। फलस्वरूप वह सदा ही किसी न किसी व्याधि व समस्या से घिरा रहता है और वह समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अथवा सत्कर्म या सदगति के लिए व्रत का सहारा लेता है।
इन बातों को नियमपूर्वक करने से व्यक्ति को जीवन में कई लौकिक और पारलौकिक लाभ व अनुभव प्राप्त होते हैं, साथ ही वह जिस समस्या से जूझ रहा होता है वह या तो समाप्त हो जाती है या फिर व्यक्ति के व्रत करने से इतना आत्मबल मिल जाता है कि वह हँसते हुए उस समस्या का सामना कर लेता है।
व्रत के प्रभाव से मनुष्य की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्पशक्ति बढ़ती है। बुद्धि व विचार शुद्ध होते हैं। शरीर के अंतःस्थल में परमात्मा के प्रति श्रद्धा और तल्लीनता का संचार होता है। नौकरी, व्यापार, कला- कौशलता, घर- परिवार आदि कर्मों का सफलतापूर्वक संपादन किया जा सकता है। फलस्वरूप व्रत को नियमपूर्वक करना चाहिए। यहाँ उनका उल्लेख इस प्रकार है।
संकल्प के बिना व्रत अधूरा है। अतः किस कार्य के लिए, कितनी संख्या में और कब तक व्रत करना है, इसका उच्चारण व्रत प्रारंभ करने के पूर्व संकल्प में अवश्य कहें।
व्रत के प्रारंभ में मुहूर्त अवश्य देखें ताकि व्रत निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण हो सके।
व्रत के दिन क्रोध, निंदा न करें। ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य रूप से करें।
बड़े- बुजुर्ग, माता-पिता व गुरुजनों का आशीर्वाद चरण छूकर अवश्य लें।
जोभी व्रत करें, शास्त्र व पुराण में बताई गई विधि के अनुसार ही करें। उसमें अपनी सुख- सुविधा के अनुसार परिवर्तन न करें।
व्रत के बीच में मृत्यु या जन्म का सूतक आने पर व्रत पुनः शुरू से प्रारंभ करना चाहिए।
स्त्री के व्रत करने पर यदि वह सास्वता हो जाये तो केवल उस दिन के व्रत की संख्या न लें। व्रत तो करें किंतु पूजन का निषेध है।
व्रत पूर्ण होने पर उसका शास्र्तानुसार हवन आदि के द्वारा उद्यापन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि उद्यापन न करने से व्रत का कोई भी फल नहीं मिलता।
क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, इंद्रिय-निग्रह, देवपूजा, अग्नि हवन, अस्तेय इस प्रकार के धर्म का पालन करना किसी भी व्रत के लिए अनिवार्य है, ऐसा शास्त्रकारों ने कहा है।
यदि किसी व्रत में कोई भी देवता की पूजा न हो तो अपने इष्टदेव का स्मरण करें।
व्रत के दिन देवताओं के साथ अपने पूर्वजों व पितृगणों का स्मरण अवश्य करना चाहिए। इससे देवाशीर्वाद के साथ-साथ पूर्वजों का आशीर्वाद भी मिल जाता है और जिस कार्य के हेतु से व्रत किया है उसकी पूर्णता शीघ्र होती है।
यदि किसी कारण व्रत बिगड़ जाय, छूट जाय या व्रत के दिन अशास्त्रीय कमी हो जाय तो पहले व्रत के लिए प्रायश्चित करें, उसके पश्चात व्रत आरंभ करें।
व्रत के दिन उपवास अवश्य करें। व्रत और उपवास का वही सम्बंध है जो शरीर और आत्मा का – अतः पुराणों में बताई गई विधि के अनुसार उपवास करना चाहिए। उपवास का अर्थ है प्रभु (इष्टदेव) के चरणों की समीपता।
व्रत के दिन सात्विक आहार ही लें ताकि शरीर हल्का रहे। बासी, गरिष्ठ, कब्ज बढ़ानेवाला, तला हुआ, प्याज, मांस, मदिरा, अंडे, लहसुन आदि कदापि न ग्रहण करें।
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