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मुझे याद है कुछ वर्ष पहले समाजसुधारक वेलेंताईंन डे मानाने वाले नवयुवाओं का किस प्रकार विरोध करते थे , उनके अनुसार ये हमारी संस्कृति के विरुद्ध है, ये अश्लील और असभ्य त्यौहार है जो विदेशी सभ्यता में हमारे युवक-युवतियों को रंग देगा. आज उन्हें चाहिए जागरण जनक्शन पर आयें और देखें कहाँ नष्ट हुई हमारी “भारतीय संस्कृति” अजी जनाब इस शस्य श्यामला धरती की गोद में जो भी आया उसे ममता और संस्करो की ऐसे परवरिश मिली की वो अपने सौम्य रूप के साथ विकसित हुआ और चहुँ ओर प्रसन्नता बरसता हुआ आगे बढता रहा. आज न सिर्फ नवयुवा अपितु वयस्क भी इस पर्व को एक-दूजे के लिए प्रेम पूर्वक मानते हैं . प्रेम का पर्याय बन चके इस दिन पर कितने उजले और सुन्दर विचार शब्दों में संजोये गए हैं . जो जोड़े अपने युवावस्था में अपने जीवनसाथी को अपने भावनाएँ नहीं दर्शा पाए आज इस पर्व के सहारे समझा सकते हैं. तो “समाज के स्वम्भू स्वामी ” जान लें की क्या होती है भारतीयता और क्या होता है प्रेम का त्यौहार .
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