गौरव चन्देल
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अँधेरी रात की खोमोशी थोड़ी जग सी गई।कुछ आवाज़ें आने लगी थी।धीरे धीरे शोर बढ़ा तो पता चला किसी की बारात चढ़ रही है।बेढंगे सुर वाले गाने और उसपर नाचते फूहड़ से दिखने वाले लोग कुछ ज्यादा ही बुरे प्रतीत हुए। बूढी माँ कराह के उठ बैठी,बोली ,कैसा शोर है। मैंने कहा पड़ोस में किसी की बारात आई है। “कमबख्त दस बजे के बाद भी बैंड बज रहे है।पुलिस को क्या शोर सुनाई नहीं देता।”माँ ने कहा।
पर मुझे कुछ याद आ गया। मेरी शादी में माँ ने खुद कहा था बैंड करना है तो कर लो। बेटे की शादी बार बार तो नहीं होगी।
मन में सोचा पर कुछ कह न पाया। बारात आगे बढ़ चुकी थी।ख़ामोशी फिर बढ़ने लगी।
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