भोर की प्रतीक्षा में ...
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बज उठे हैं धड्कनो में प्रेम के नुपुर
क्यों कहे हैं आपने अपनत्व वाले स्वर
झील के स्तब्ध जल में हो गयी हलचल
क्यों कहे हैं आपने अपनत्व वाले स्वर |
क्यों दिखाई मरुस्थल को नीर की गगरी
किसलिए छाई गगन पर जल भरी बदरी
क्यों भला त्रश्णित धरा को कर दिया शीतल
क्यों कहे हैं आपने अपनत्व वाले स्वर |
ये विखंडित मूर्ति की आराधना कैसे
घोर निर्जन में ये तप व्रत साधना कैसे
क्यों भला अभिषप्त पाहन का हुआ आदर
क्यों कहे हैं आपने अपनत्व वाले स्वर |
मन के स्पंदन की वीणा हो गयी झंकृत
आस के निष्प्राण पंछी हो गए जीवित
कल्पना की तितलियाँ उड़ने को हैं तत्पर
क्यों कहे हैं आपने अपनत्व वाले स्वर |
बिछ गए हैं पुष्प पथ पर पग हुए गर्वित
हो गयी संध्या सुगन्धित, दीप आलोकित
छा गए हैं छितिज पर आबीर के बादल
क्यों कहे हैं आपने अपनत्व वाले स्वर |
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