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संतुलन —निर्मला सिंह गौर (विश्व पर्यावरण दिवस पर )

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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जब हवा कुछ सर चढ़ी होने लगी
तो धरा की बेहतरी होने लगी
उड़ चले बादल मरुस्थल की तरफ
रेत भी थोड़ी हरी होने लगी |
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कैद जब से हो गया नदिया का जल
तो धरा पर रात में दिन हो गया
बस गयीं लघु सूरजों की बस्तियां
चाँद का तेजस्व भी कम हो गया |
.
पर्वतों की शल्य जब से हो गयी
लोह ताम्बे की जमातें बिछ गयीं
कारखाने खा गए खलिहान को
रेल सड़कें खेत सारे डस गईं|
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आम के बागान जब से कट गए
कोयलें भी बेसुरी होने लगीं
तितलियों के रंग धुंधले पड़ गए
जब गुलों की तस्करी होने लगी |
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दौड़ में सब लोग शामिल हो गए
रिश्ते नाते भीड़ में सब खो गए
सोते बच्चे छोड़ निकला था सुबह
रात जब लौटा तो बच्चे सो गए |
.
ये तरक्की का सुखद अवतार है
अविष्कारों का बड़ा आभार है
प्यार कम और शौक सुविधाएँ अधिक
संतुलन भी तो यहाँ दरकार है
संतुलन भी तो यहाँ दरकार है |

……………………………………….निर्मल

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