भोर की प्रतीक्षा में ...
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मरुस्थल पर मेघ दल भी गर्जना कर चल दिए
प्यास ने अधरों से कुछ सम्बन्ध ऐसे कर लिये।
नीर के सैलाब को चुपचाप आँखे पी गईं
दर्द ने चेहरे से कुछ अनुबंध ऐसे कर लिए।।
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ठोकरों ने कुछ हमारी चाल को रफ़्तार दी
पत्थरों से भी हमारे खून के रिश्ते बने
चल पड़े हम बेधड़क से ऊँची नीची राह पर
रास्तों ने पैरों को कुछ ऐसे आमन्त्रण दिए।।
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था सफ़र का शौक़ तो हम उम्र भर करते रहे
मोम के थे पाँव फिर भी आग पर चलते रहे
परिजनों के घर हमें उम्मीद से ज़्यादा मिला
चोट दी आतिथ्य में और भेंट में मरहम दिए।।
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हम सयानो मे सदा नादान कहलाते रहे
और हंस कर व्यंग बाणों की सज़ा पाते रहे
यह नहीं कि दर्द ने हमको सताया ही नहीं
बस हमारे भाग्य में थे हमने हंस कर सह लिए।।
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निर्मल…
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