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अगर इनके जुवां होती –निर्मला सिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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सुना है कान होते हैं दीवारों के
अगर इनके जुवां होती
तो हम कुछ बात कर लेते
हमारा घर भी महफ़िल सा
हरा होता भरा होता
कभी तन्हाई का हमको
नहीं कोई गिलह होता
अगर इनके जुवां होती |

लिपट कर इनसे हंस लेते
चिपट कर इनसे रो लेते
हम अपने दिल के ज़ख्मो को
दीवारों में पिरो लेते
अगर इनके जुवां होती |

कभी हम रूठते इनसे
कभी शिकवे-गिले करते
हम इनकी राय लेकर
ज़िन्दगी के फ़ैसले करते |

अगर इनके जुवां होती
तो इन पर रंग रोगन भी
हम इनसे पूछ कर करते
इन्ही की ही पसंदीदा
तस्वीरें चयन करते |

अगर इनके जुवां होती
तो इतना तो पता करते
भला है कौन इनका जो यहाँ
चुपचाप आता है
हमारे घर के सारे राज़
इनसे जान जाता है
हम इनको खूब फुसला कर
ज़रा उसका पता लेते
फिर उसके घर की दीवारों
से जाकर दोस्ती करते
अगर इनके जुवां होती
तो हम कुछ बात कर लेते |
सुना है कान होते हैं दीवारों के
अगर इनके जुवां होती
तो हम कुछ बात कर लेते |

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