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(ये कविता लगभग २५ वर्ष पूर्व लिखी थी )
हम हमारे हैं, हमें अहसास तो हो
कुछ पलों का वक़्त अपने पास तो हो
क्यों सदा खुशियों की रव से भीख मांगे
कुछ पलों के वास्ते उदास तो हों
कुछ पलों का वक़्त अपने पास तो हो |
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जब निहारें यामिनी का रूप मोहक
जब अँधेरे हों, नहीं हो कोई दीपक
रात्रि के तम का पृथक अस्तित्व भी है
पूर्णिमा को छोड़ कर देंखें अमावस
क्यों सदा ही आश्रिता हों रौशनी पर
तिमिर के सौन्दर्य का आभास तो हो
कुछ पलों का वक़्त अपने पास तो हो |
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जब हमारे होठों पर मुस्कान आये
कोई न पूछे हमें क्या सुख मिला है
जब हमारे नयन थोड़े भीग जाएँ
कोई न पूछे हमें किस से गिला है
चल पड़े हम बेसबब भेड़ों के पीछे
बैठ जाएँ थक के हम पेड़ों के नीचे
खूब डुबकी खाएं ,कूदें, तैर जाएँ
एक जलाशय भी हमारे पास तो हो
कुछ पलों का वक़्त अपने पास तो हो |
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जब हमारा मन हमें निर्णय सुनाये
जब हमारा स्व हमें रस्ता दिखाए
जब हमारी हरकतें कोई न देखे
हों भले अस्वस्थ, वर्षा में नहायें
कोई ना पूछे कहाँ से आरहे हो
कोई ना टोके कहाँ पर जा रहे हो
ढोलकी ले कर उसे छत पर बजाएं
हम भी हैं आज़ाद ये अहसास तो हो
कुछ पलों का वक़्त अपने पास तो हो ||
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