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इक बार सोच लेना —निर्मला सिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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जब नाव पुरानी हो
पतबार भी टूटा हो
नदिया चढ़ी हो फिर भी
उस पार उतरना हो
तो छूटते साहिल से
हंस कर के विदा लेना
मझधार के इरादे
इक बार सोच लेना|
जब रात अमाबस हो
और श्याम घटा छाये
झिलमिल से सितारे भी
मेघों तले छुप जाएँ
तो नन्हें से दीपक को
हथेली से छुपा लेना
तूफ़ान के इरादे
इक बार सोच लेना |
किस्मत का सितारा जब
ऊंचाइयां पा जाये
मिटटी भी छुओ तो वो
सोने में बदल जाये
तो भूंखे गरीवों को
ना छोड़ कर चल देना
भगवान के इरादे
इक बार सोच लेना |

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