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उम्र भर —-निर्मला सिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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अनुभवों की धार ने हमको तराशा उम्र भर
हमने हर्जाना चुकाया अच्छा खासा उम्र भर
हमको जिनकी धीरता गम्भीरता पर गर्व था
वो हमे देते रहे झूंठी दिलासा उम्र भर|

दूसरों के दर्द में हम खुद हवन होते रहे
बाँट कर तकलीफ सबकी दिलासा देते रहे
हमने जिसके आंसुओं को अपने कंधे पर रखा
हाय!किस्मत उसने हमको खूब कोसा उम्र भर |

हम सयानो में सदा नादाँ गिने जाते रहे
दोस्ती में हम नफा–नुक्सान झुठलाते रहे
इस भरी दुनिया में किसका कौन करता है लिहाज़
वो तो हम थे ,जो नहीं तोड़ा भरोसा उम्र भर |

कागजों के महल भी हमने बनाये शौक से
और उनकी भव्यता पर भी इतराए शौक से
एक चिन्गारी से उसकी खैरियत क्या पूछ ली
फिर वहां हर एक ने देखा तमाशा उम्र भर |

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