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जब मिलो …. निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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जब मिलो खुल कर मिलो,
हंस कर मिलो,
मिल कर हंसो,
दोस्ती के नाम पर,
ना हम कोई ताना कसें,
ना तुम कोई ताना कसो|
.
देना है उपहार तो फिर,
सिर्फ दो मुस्कान तुम,
और आँखों से जता दो,
प्रेम का अहसान तुम,
हमको मंहगी क़ीमती,
चीज़ों में दिलचस्पी नहीं,
सिर्फ तुम आते रहो,
मिलते रहो, भाते रहो,
हम जो भटकें राह तो तुम,
राह पर लाते रहो,
हम दिखाएँ चोट अपनी,
तुम वहां मरहम रखो,
ना हम कोई ताना कसें,
ना तुम कोई ताना कसो |
.
ज़िन्दगी के युद्ध में हम,
साथ मर लें, साथ जी लें,
तुम हमारे दर्द बांटो,
हम तुम्हारे अश्क पी लें,
भेद जो कोई हमारी मित्रता के मध्य डाले,
हार कर आदर्श हमको,
अपने जीवन का बनाले,
हम तुम्हारे मन बसें,
और तुम हमारे मन बसो,
हम सुनाएँ चुटकुले,
तुम खूब दे ताली हंसो,
ना हम कोई ताना कसें
ना तुम कोई ताना कसो ||
……………………………………
निर्मला सिंह गौर

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