Menu
blogid : 16670 postid : 656236

तुम्हारी हार के पीछे —निर्मला सिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
  • 54 Posts
  • 872 Comments

तुम्हारी हार के पीछे बजह शायद यही होगी
कि तुमने बात सच्ची झूठे लोगों से कही होगी
सभी को एकनिष्ठा का सबक समझा दिया होगा
व्यवस्था को बदलने की पहल तुमने ही की होगी |
जहाँ पर आचरण,विश्वास और ईमान बिकते हों
सयाने भी जहाँ सच बात कहने में झिझकते हों
जहाँ पर दौड़ हो ऊंचाई पर ज़ल्दी पहुचने की
जहाँ सिद्दांत वादी लोग पैरों में कुचलते हों
तुम्हारी हार के पीछे बजह शायद यही होगी
तुम्हारी दौड़ में गिरते सवारों पर नज़र होगी|
शहर के लोगों के सीनों में जब जज़्बात ही न हों
उन्हें फिर प्रेम और संवेदना  की क्या ज़रूरत है
तड़पता हो कोई या राह में मूर्छित पड़ा कोई
नज़र भर देखने तक की किसी को कहाँ फ़ुर्सत है
तुम्हारी हार के पीछे बजह शायद यही होगी
की तुमने आंसुओं की अनकही भाषा पढ़ी  होगी |
हवाएं किस तरह लहरों को उंगली पर नचातीं हैं
वही लहरें तो नन्हीं किश्ती को आँखे दिखातीं हैं
यही दस्तूरे -दुनिया देखते आये हैं सदियों से
की जो कमज़ोर है उसको ही तो दुनिया सताती है
तुम्हारी हार के पीछे बजह शायद यही होगी
चिरागों की हिफ़ाजत तुमने तूफ़ानो से की होगी |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh