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‘पागल’ —निर्मला सिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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जब कहा था आपने ‘पागल’ मुझे
मै समझ के शीर्ष पर आसन्न था
आपकी ही धारणा त्रुटि पूर्ण थी
मै तो अपने उच्चध्यानामग्न था |
जब बने सर्वोच्य तुम इस ठौर पर

पा तरक्क़ी रिश्वतों के ज़ोर पर
मै अडा बैठा रहा सिद्दांत पर

तब  कहा  था आपने ‘असफ़ल’ मुझे
मै स्वायत्ता पर ही अपने धन्य था
आपकी ही नीतियां पथ भ्रष्ट थीं
मै तो अपने उच्च ध्यानामग्न था |
जब विलसित वस्तुओं की होड़ में
या दिखावे की अलक्षित दौड़ में
मै रहा स्थिर,अनुत्साहित,अभय
तब कहा था आपने ‘घायल’ मुझे
मै कहीं पहले से सेहत मंद था
आपकी ही धड़कने बैचैन थीं
मै तो अपने उच्च ध्यानामग्न था |
जब विवशता वश न देना दान का
बन गया कारण मेरे अपमान का
दम्भ से फिर देखकर मेरी तरफ़
कह दिया था आपने ‘निर्धन’ मुझे
मै धरम ईमान से सम्पन्न था
आपकी ही चेतना अवरुद्ध थी
मै तो अपने उच्चध्यानामग्न था |
जब कहा था आपने ‘पागल’ मुझे
मै समझ के शीर्ष पर आसन्न था |

आपकी ही धारणा त्रुटि पूर्ण थी

मै तो अपने उच्च ध्याना मग्न था |

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