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पापा तुम याद आते हो तब …निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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क्यों आती है स्मृति तुम्हारी
जब मन होता है कुछ भावुक
लगता है बस तुम मिल जाओ
और सुनाऊं तुमको सब कुछ ……पापा तुम याद आते हो तब |
.
बचपन में मुझसे होता था
जब भी कोई खिलौना विघटित
बेटी इनकी यही नियति है
तुम कह देते थे मुस्का कर
अब मेरा नन्हा सा ये मन
कोई तोड़ता जानबूझकर……पापा तुम याद आते हो तब |
.
जब छोटी सी कोई सफलता
बनती थी घर की दीवाली
उत्सव होगा, जश्न मनेगा
जीत आई है गुड़िया प्यारी
अब जब मेरी कोई सफलता
कर देती है सबको आहत ……पापा तुम याद आते हो तब |
.
जब मन के कोने में कोई
दुःख पनपा या दर्द उठा है
जब अपनों ने ज़ख्म दिए हैं
और गैरों ने उसे छुआ है
तब तब मुझको ये लगता है
आओ देखो पापा ये सब ……पापा तुम याद आते हो तब |
.
तुमने ही बचपन से मुझको
सर्व श्रेष्ट बनना सिखलाया
भले बुरे का भेद समझना
तुमने मुझे नहीं बतलाया
दुनिया तो दुनिया है पापा
हो जाता है कभी निरादर ……पापा तुम याद आते हो तब |
.
इस जीवन के जीर्ण सफर में
स्मृति एक तुम्हारी सुरभित
तुम्ही प्रेरणा श्रोत रहोगे
मेरे जीवन के दिग्दर्शक
जब भी सूर्य अस्त देखा और
जब भी आई रात भयानक ……पापा तुम याद आते हो तब ||
………………………………………………निर्मला सिंह गौर

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