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मझधार से … निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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तूफ़ान में रख्खा चिराग़ जलता रहेगा
बस आप हवाओं के रुख का वेग मोड़ दें
मझधार से निकल के नाव आएगी इस पार
बस आप डूबने का इंतजार छोड़ दें |
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अपनी ख़ुदी के आप ही खुद ज़ुम्मेदार हैं
क्या आपके बुज़ूद-ए-महल में दरार है ?
कानून का डर आपको सोने नहीं देगा
गर आपकी परछाईं भी क़ुसूर वार है
बस नींद का शुकून तो हासिल तभी होगा
जब आप दंद फंद का आधार छोड़ दें |
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मझधार से निकल के नाव आएगी इस पार
बस आप डूबने का इंतजार छोड़ दें |
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ईमान, धर्म, एकता और प्यार मुहब्बत
इंसान की इंसानियत ही है बड़ी दौलत
हिन्दू, मुसलमा, सिख, इसाई सभी भाई
मिलकर रहें तो एकता में होती है ताक़त
इन्सान है भगवान का बेजोड़ नमूना
बस आप सम्प्रदाय की दीवार तोड़ दें|
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मझधार से निकल के नाव आएगी इस पार
बस आप डूबने का इंतज़ार छोड़ दें |
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दुनिया तो रंग मंच है हम काठ के पुतले
रिश्तों को निभाने के हैं करतव नपे-तुले
तब तक ही राग द्वेष है ,खुशियाँ या रंज है
जब तक की बंधनों की कसी गांठ ना खुले
इस ज़िन्दगी के मंच पर नायक बने रहें
खलनायकी का बदनुमा किरदार छोड़ दें |
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मझधार से निकल के नाव आएगी इस पार
बस आप –डूबने का– इंतजार छोड़ दें |
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निर्मला सिंह गौर

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