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मत सहेजो —निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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मत सहेजो मोतियों को सींपियों से छीन कर
आंख में छलके हुये आंसू की क़ीमत  जान  लो
हो गया है मुक्त मन संवेदना के पाश से
तो इसे जाकर किसी संतृप्त मन से बांध लो |
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मत समेटो खुशबुओं को ये महज़ अहसास हैं
पुष्प के तन में बसी ये तितलियों की आस है|
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है भ्रमर को हक़ कि वो फूलों का आलिंगन करे
नृत्य और संगीत से सौन्दर्य सम्मोहन  करे |
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हैं ये आभूषण विधाता ने दिए उपहार में
देव पर चढ़ते हैं  गुंथ कर या  पिरो कर हार में |
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गोद में शूलों की हैं पर रंज़ो -ग़म से दूर हैं
खुश नुमा सूरत है और मुस्कान से भरपूर हैं |
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ये खिले रहते हैं अपने अल्प जीवन काल में
सीख देते हैं हमें रहने की खुश हर हाल में |
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मत करो ब्यापार इनका ये महज़ सौगात हैं
सिर्फ अवलोकन करो सौन्दर्य ही पर्याप्त है |
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मत तलाशो खुशियों को बाज़ार की दूकान में
अधर पर खिलती हुई मुस्कान को पहचान लो |
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मत सह्जो मोतिओं को सीपियों से छीन कर
आँख में छलके हुये आंसू की कीमत जान लो ||
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निर्मला सिंह गौर

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