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मै अकेली जा रही थी —निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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मै अकेली जा रही थी ज़िन्दगी की राह में

पर मुझे खिलते हुए फूलों ने आकर्षित किया

बस ज़रा सा ठहर कर मैंने निहारा था उन्हें

मैंने देखा मेरा दामन खुशबुओं से भर गया |

.

मै अकेली जा रही थी ज़िन्दगी की राह में

पर मुझे बहते हुए पानी ने आकर्षित किया

बस ज़रा सा ठहर कर मैंने उछाला था उसे

मैंने देखा मेरा दामन सीपियों से भर गया |

.

मै अकेली जा रही थी ज़िन्दगी की राह में

पर मुझे रोते हुए बच्चों ने आकर्षित किया

बस ज़रा सा प्यार से  मैंने दुलारा  था उन्हें

मैंने देखा मेरा दामन आंसुओं से भर गया |

.

मै अकेली जा रही थी ज़िन्दगी की राह में

पर मुझे असहायों की आहों ने आकर्षित किया

बस ज़रा सी  देर को मेरा सहारा था उन्हें

मैंने देखा मेरा दामन आशीषों से भर गया |

.

मै अकेली अब नहीं हूँ ज़िन्दगी की राह में

खुशबुएँ हैं, सीपियाँ हैं, आसूं हैं, आशीष हैं

उम्र इनके साथ गुज़रेगी बड़े आराम से

हर क़दम पर तज़ुर्वे हैं, हर क़दम पर सीख हैं |

हर कदम पर तज़ुर्वे हैं, हर क़दम पर सीख हैं ||

निर्मला सिंह गौर

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