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सरहदों पर युद्ध की बजती है जब भी दुंदभी
कितनी आँखें छुप के रोती हैं अंधेरों के करीब
फूटतीं हैं कितनी किस्मत टूटते हैं कितने दिल
युद्ध आखिर युद्ध है ईराक हो या कारगिल |
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कैसे पत्थर जोड़ कर बनते हैं सड़कें और शहर
टूट जाते हैं, बनाने में कई, छोटा सा घर
एक पल लगता नहीं बम ध्वस्त कर देता है सब
अपने प्यारे, घर-मकां, सड़कें, इमारत और शहर |
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गुलसितां के गुल चले जाते हैं जब सरहद के पार
तब बहारें फिर नहीं आतीं हैं उस गुलशन के द्वार
क्या गुज़रती है दिलों पर बेटे जब होते शहीद
कैसी है उनकी दिवाली, कैसी होगी उनकी ईद |
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देश कुछ करते परीक्षण अपनी उच्च तकनीक़ का
जितनी ज़्यादा हो तबाही उतना उत्सव जीत का
काश वो यह जानते की प्रक्षेपात्र छोड़ कर
दहशतों के बीच बसते लोंगों पर गुज़रेगी क्या |
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है दुआ भागवान जग में शांति का आवाहन हो
शक्ति जनहित में लगे इस बात का सद्ज्ञान हो
ना कहीं बंदूक हो और ना कहीं बारूद हो
हर नगर हो दिवाली, हर शहर में ईद हो
हर शहर में हो दिवाली, हर नगर में ईद हो ||
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