Menu
blogid : 16670 postid : 654843

युद्ध–निर्मलासिंह गौर की कविता

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
  • 54 Posts
  • 872 Comments

सरहदों पर युद्ध की बजती है जब भी दुंदभी
कितनी आँखें छुप के रोती हैं अंधेरों के करीब
फूटतीं हैं कितनी किस्मत टूटते हैं कितने दिल
युद्ध आखिर युद्ध  है ईराक हो या कारगिल |
.
कैसे पत्थर जोड़ कर बनते हैं सड़कें और शहर
टूट जाते हैं,   बनाने में कई, छोटा सा घर
एक पल लगता नहीं बम ध्वस्त कर देता है सब
अपने प्यारे, घर-मकां, सड़कें,  इमारत और शहर |
.
गुलसितां के गुल चले जाते हैं जब सरहद के पार
तब बहारें फिर नहीं आतीं हैं उस गुलशन के द्वार
क्या गुज़रती है दिलों पर बेटे जब होते शहीद
कैसी है उनकी दिवाली, कैसी होगी उनकी ईद |
.
देश कुछ करते परीक्षण अपनी उच्च तकनीक़ का
जितनी ज़्यादा हो तबाही उतना उत्सव जीत का
काश वो यह जानते की प्रक्षेपात्र छोड़ कर
दहशतों के बीच बसते लोंगों पर गुज़रेगी क्या |
.
है दुआ भागवान जग में शांति का आवाहन हो
शक्ति जनहित में लगे इस बात का सद्ज्ञान हो
ना कहीं बंदूक हो और ना कहीं बारूद हो
हर नगर हो दिवाली,  हर शहर में ईद हो
हर शहर में हो दिवाली,  हर नगर में ईद हो ||

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh