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सहारा—-(कहानी ) —निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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सुमित्रा देवी पति की मृत्यु के बाद बहुत अकेलापन महसूस कर रहीं थी ,दोनो पुत्रों का विवाह पति के सामने ही हो चुका था ,बड़ा बेटा सारांश अपनी पत्नी दीपा के साथ अमेरिका में सेटिल हो गया और छोटा दिव्यांश यहीं दिल्ली में आईटी सेक्टर में काम करता है,उसकी पत्नी चित्रा भी उसके साथ रहती है और वो भी बैंक में अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत है ,जहाँ बड़ी बहू दीपा का स्वभाव अत्यंत सरल एवं विनम्र है वहीं छोटी बहू चित्रा तेज़ तर्रार और कर्कश स्वभाव की लड़की है ,सुमित्रा देवी बचपन से एक छोटे से गांव की भारतीय संस्कृति के बेहद ट्रेडिशनल परिवार में पली बढ़ी हैं ,बड़े शहरों की भीड़ और भागम भाग ,लोगों का निर्लिप्त एवं मौका परस्त व्यवहार उनको कतई रास नहीं आता था फिर भी अपने मृदुल स्वभाव के कारण आस-पड़ोस में उनकी ३-४ हमउम्र महिलाएं उनकी सहेलियां बन गयीं हैं जहां दिन में दो -तीन घंटे बैठ कर वो अपने दुःख सुख बाँट लेतीं हैं।
उनके पति श्री गंगा धर जी उत्तर प्रदेश के छोटे से पुस्तैनी कस्वे के मिडिल स्कूल में हेड मास्टर के पद पर कार्य करते थे और शाम ४ से ६ बजे तक ट्यूशन भी पढाते थे । उनका समाज में काफ़ी सम्मान एवं रुतवा था,ज़मीन जायदाद भी बहुत थी,जो उनके दो बड़े भाई सम्हालते थे, फसल में उन्हें हिस्सा मिल जाता था, उनके ही कुटुंब के कई परिवार पास पास ही बसे थे और आपस में भी बड़ा एका था ,पत्नी सुमित्रा सभ्रांत परिवार से आई थीं और ग्यारवी पास थीं । अपने मधुर स्वभाव से सबके साथ दूध में पानी की तरह घुल मिल गयीं थी, बड़ों का आदर सत्कार, पर्दा और शगुन संस्कार करने में भी कहीं कसर नहीं छोड़तीं थी । गंगा धर जी स्वम् को खुशनसीव समझते थे और पत्नी का भी बहुत सम्मान करते थे।
दो वर्ष पूर्व एक मनहूस सुबह वो टहलने के लिए अपने खेत की तरफ गए,और गिर कर बेहोश हो गए ,उनको हृदयाघात हुआ था ,जब तक लोगों ने देखा और अस्पताल पहुँचाया ,उनकी मृत्यु हो चुकी थी।
गांव में कुछ माह रहने के बाद दीपांश अपनी माँ को दिल्ली ले आया और तब से यहीं रह रही हैं ।
यहाँ अब उनका मन कुछ लगने लगा है,लेकिन सारांश और दीपा उनको अपने साथ अमेरिका में रखना चाहते हैं,उनका पासपोर्ट भी बन कर आ गया है ,चित्रा का विपरीत स्वभाव होने के बावजूद वो स्वम् को बहुत एडजस्ट कर रहीं थीं की कहीं उनको विदेश न भेज दिया जाये,हालाँकि बड़ी बहू दीपा से उनकी केमिस्ट्री ज्यादा मिलती थी फिर भी वो अपनी मिटटी को नहीं छोड़ना चाहतीं थीं। फिर दीपा भी तो वहां नौकरी ही करती है ,अकेले दिन कैसे कटेगा । तरह तरह के ख्याल उनका मन विचलित कर रहे थे,वो यहाँ रहने की ज़िद भी कर लेतीं ,पर आज चित्रा ने बहुत स्पष्ट तौर पर कह दिया कि जब दो बेटे हैं तो उनको दोनों के पास रहना चाहिए ,दिव्यांश ने जब हस्तक्षेप किया तो चित्रा ने बेडरूम का दरवाजा बंद करके पति से काफी कहासुनी की ,सुमित्रा देवी हमेशा अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए सब कुछ सहन करती रही हैं,यहाँ तक कि चित्रा की बदसुलूकी और उसके मायके वालों के कठाक्ष तक सहती रहीं कि अगर बेटे को बताएंगी तो पति पत्नी में दरार पड़ेगी,और कहीं बहू उनको विदेश भेजने की रट न लगा ले । पर कोई फर्क नहीं पड़ा, अपनी अटैची लगाते वक़्त उनकी आँखे बार बार भर आतीं हैं,रात की फ्लाइट है, दिव्यांश यहाँ से विदा करने एयर पोर्ट जायेगा और सारांश वहां एयरपोर्ट पर लेने आ जायगा। १७ -१८ घंटे हवाईजहाज में बैठ कर उनके घुटने भी दर्द करेंगे और वहां उनकी सहेलियां भी नहीं मिलेंगी। लेकिन अब इतना सुनने के बाद वो यहाँ अपने स्वाभिमान को मार कर कैसे रहें।
तभी फोन की घंटी बजी ,गांव से फोन आया था ,जेठजी को दिल का दौरा पड़ा था ,अस्पताल में भर्ती हैं ,सुमित्रा देवी को गांव बुलाया है ,पहली बार कोई दुखद खबर उन्हें शुकुन दे गयी
“भगवान जेठजी को लम्बी उम्र दे” ये शब्द अनायास उनके होठों से निकल पड़े।
और उन्होंने अपने मन में संकल्प किया कि अब वो किसी पुत्र के साथ नहीं रहेंगी ,चाहे कोई कितना भी बुलाये । उनके लिए पति की पेंशन ही बहुत है खर्च चलाने को ,और खेती से मिलने वाला हिस्सा अलग ,वो एक अनाथ लड़की को गोद लेकर उसका का पालन पोषण करेंगी और उच्च शिक्षा की भी व्यवस्था करेंगी ,उनको सदैव बेटी की कमी महसूस होती रही है, तो उस लड़की को वो जब माँ का प्यार देंगी तो वो भी भविष्य में उनका सहारा बनेगी –सोच कर अनायास उनके अधरों पर मुस्कान खिल पड़ी।।
निर्मला सिंह गौर

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