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सावन—निर्मला सिंह गौर

भोर की प्रतीक्षा में ...
भोर की प्रतीक्षा में ...
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देखो सावन का शुभागमन
उर्वर वसुधा पुलकित अम्बर
शीतल शीतल सुंदर शशिकर
अन्तर में जलता है रविकर|
निर्मल निर्मल जल का सागर
श्यामल श्यामल संध्या अम्बर
श्वेतल श्वेतल है ज्योतिस्ना
उज्वल उज्वल निशि का आंचल |
सावन की पहली है फुहार
मिटटी से उठती है सुगंध
फूलों पर मोती बैठ गये
पेड़ों ने पहना चटख रंग
पक्षी चहके उपवन महके
सरिताओं का परिवार बढ़ा
सावन लेकर आया क्या क्या
मन से मन का संचार बढ़ा |
पायल झनके कंगन खनके
आँचल लहराये अम्बर में
गोरी झूले ऐसे झूला
लहरें उठ जाएँ सागर में
सागर छू कर आती वयार
सिंदूरी बेला सूर्य अस्त
पुलकित पक्षी कर रहे नृत्य
ये वसुंधरा बन गयी स्वर्ग |
……………………………………
निर्मला सिंह गौर

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