शेखर की ग़ज़लें
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महफिले शायरी में फिल्बदि मुशायरे में पेश की गयी ग़ज़ल, सादर आप सब की नजर करता हूं।
सलामत हैं तो बलवा क्यूं करें हम
खुला मुर्गी का दड़बा क्यूं करें हम।
जमीं से जोड़ के रक्खा है खुद को
हवा में ऊंचा दर्जा क्यूं करें हम।
भगत बनना है बन लो शौक से तुम
भला गांधी से पचड़ा क्यूं करें हम।
जुलम है, आदमी को बैल मत कह,
बताओ हजम चारा क्यूं करें हम।
नदी के दो किनारे हैं सदा से,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूं करें हम।
चन्द्र शेखर पान्डेय ‘शेखर’
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