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भला गांधी से पचड़ा क्यूं करें हम।

शेखर की ग़ज़लें
शेखर की ग़ज़लें
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चन्द्र शेखर पान्डेय 'शेखर'। मैं युवाओं की आवाज हूं। पढें मुझे facebook.com/rashtrageet

चन्द्र शेखर पान्डेय ‘शेखर’। एमएड, एमबीए, पीएचडी(काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)। पढें मुझे facebook.com/rashtrageet

महफिले शायरी में फिल्बदि मुशायरे में पेश की गयी ग़ज़ल, सादर आप सब की नजर करता हूं।

सलामत हैं तो बलवा क्यूं करें हम
खुला मुर्गी का दड़बा क्यूं करें हम।

जमीं से जोड़ के रक्खा है खुद को
हवा में ऊंचा दर्जा क्यूं करें हम।

भगत बनना है बन लो शौक से तुम
भला गांधी से पचड़ा क्यूं करें हम।

जुलम है, आदमी को बैल मत कह,
बताओ हजम चारा क्यूं करें हम।

नदी के दो किनारे हैं सदा से,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूं करें हम।

चन्द्र शेखर पान्डेय ‘शेखर’

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