लोकपाल बनाम जनलोकपाल, सरकार बनाम जनता कैसे बना इसका जीता-जागता मिसाल अन्ना हजारे का आन्दोलन है. अन्ना हजारे के आन्दोलन का साक्षी वर्ष 2011 भी रहा. कांग्रेस की फजीहत सड़क से संसद तक हुई, जंतर-मंतर से सारे जहाँ में हुयी. कारण जिद! सरकार की जिद! जब पास करेंगे तो लोकपाल ही..कुछ इगो टाइप सीन दिखा सरकारी नुमाइंदों में. नतीजा, सिर्फ सरकार की फजीहत, फजीहत, फजीहत! ये फजीहत मेरे तीन बार कह देने से ही फजीहत नहीं हुयी. केंद्र सरकार के चौका घर (किचेन) कैबिनेट के अड़ियल रवैये से हुयी है. एक बार हुयी, दो बार हुयी, तीन बार हुयी, बहुतेरे बैठके और बहुतेरे फजीहते (व्याकरण से पैदल) . प्रणव-क-पी.-लमान की चौकड़ी ने २०११ में कांग्रेस की सब कुछ मतलब सबकुछ (….) एक करा दी. अब पटना की घटना नीतीश कैसे बन जायेंगे, वो भी लोकपालिये लहजे में! तो बात साफ़ है- लोकपाल अगर जनलोकपाल के आगे नक्कारखाने की तूती साबित हो सकती है तो बिहारी लोकायुक्त अन्नायी लोकायुक्त के आगे पटना की घटना बन जाए इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी. और अन्ना हडताली चौक पर धरना देते नजर आयें तो आश्चर्य न होगा. दरअसल, सुशासन बाबू इन दिनों अपने राज्य में अपना लोकायुक्त बिल को लागू करने का राग अलाप रहे हैं और बीते दिनों बाबू अरविन्द इस बिल पर पर रेड सिग्नल दे चुके हैं. सो, चूका-चुके-चूकि से नीतीश कोई चूक न कर बैठे और 2012 उनके लिए घटा-घटे-घटी न साबित हो जाए.
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