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पाश्चात्य प्रभाव

social issue
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पाश्चात्य प्रभाव
भूमंडलीकरण के इस दोर मे जहाँ भले ही भारत ने अपने व्यापार विकास,सूचना प्रोद्योगिकी के माद्यम से विश्व मानचित्र
पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है परन्तु ये समर्धि अपने साथ कुछ दुर्गुर्ण भी लेकर आई है | विकसित व मोडर्न बनने की
चाह मे हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों, आदर्शों का परित्याग कर विदेशी संस्कृति को आत्मसात करने मे व्यस्त है इस चारित्रिक
पतन मे एक और अद्याय वर्तमान शिक्षा व्यवस्था जोड़ रही है युवा पीड़ी जिसे किसी भी देश का भविष्य माना जाता है आज
उपभोक्तावादी, आत्मकेंद्रित पाश्चात्य संस्कृति को अपना परम उद्देश्य बना रही है उनके मन मे ना तो राष्ट्र के प्रति कोई
भाव है ना इसकी संस्कृति या विचारधारा से कोई लेना देना वे इसे पुरानी व पिछड़ी बाते मानते है | जहाँ तक शिक्षा व्यवस्था
का प्रश्न है वह भी पैसे लेकर डिग्री रूपी कागज के टुकड़े बेच रहे ना तो शिक्षा मे चरित्र ,विचारधारा,सामाजिक दायित्व जैसे
मोलिक विचारों के लिए कोई स्थान है ना ही उनका महत्व का ज्ञान उनका उद्देश्य तो ऐसे खुदगर्ज ,स्वार्थी,लालची विद्यार्थीयों
का निर्माण करना है जो ब्रांडेड कपड़े तन पर लपेटे एक हाथ मे सिगरेट एक हाथ मे शराब लिए खुद को कामदेव का अवतार
समझे जिनके जीवन का परम उद्देश्य ही खुद को सुखी व अधिक से अधिक भोग कराना हो चाहे उसके लिए उसे किसी भी स्तर
तक गिरना पड़े \ इन सब कारकों ने एक ऐसे नए समाज का सर्जन कर दिया है जिसमे इंसान का इंसान के प्रति दृष्टीकोण ही
बदल गया है | सहयोग,प्यार,भाईचारा, हमदर्दी जैसे शब्दों का अस्तित्व व्यावहारिक रूप से लगभग समाप्त ही हो गया है
खुद को सर्वसुख उपलब्ध कराने वाली इस भोतिकवादी व्यवस्था मे हर रिश्ते, हर संबंध  को लाभ की कसोटी  पर तोला जाने
लगा है अपने सुख के कारण सन्ताने अपने वृद्ध माता तक का तिरष्कार कर रही है जिससे  समाज मे वृद्धजनो की स्थिति अत्यधिक
दयनीय हो चली है भोग विलास के इस घृणित तांडव को देखकर महान दार्शनिक रूसो की बात याद आती है कि”प्रकर्ति मे हर तंत्र (सिस्टम)
,हर चक्र चाहे वो मनुष्य का जीवन चक्र हो या गृह नक्षत्रों की गति अपने अस्तित्व के विभिन्न चरणों गणितीय रूप से एक व्रत (सर्कल) का निर्माण
करते है जिसमे अंतिम व प्राम्भिक बिंदु बहुत समीप होते है आशा करता हू कि इस व्यवस्था तंत्र का सफर जो अपने चरम पर है  अपने अंतिम (समापन)
विंदु के निकट आ चुका होगा \ परिवर्तन कि आस में
( V.K .AZAD)
भूमंडलीकरण के इस दौर मे जहाँ भले ही भारत ने अपने व्यापार विकास,सूचना प्रोद्योगिकी के माद्यम से विश्व मानचित्र  पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है परन्तु ये समर्धि अपने साथ कुछ दुर्गुर्ण भी लेकर आई है | विकसित व मोडर्न बनने की चाह मे हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों, आदर्शों का परित्याग कर विदेशी संस्कृति को आत्मसात करने मे व्यस्त है |  युवा पीड़ी जिसे किसी भी देश का भविष्य माना जाता है आज उपभोक्तावादी, आत्मकेंद्रित पाश्चात्य संस्कृति को अपना परम उद्देश्य बना रही है उनके मन मे ना तो राष्ट्र के प्रति कोई भाव है ना इसकी संस्कृति या विचारधारा से कोई लेना देना वे इसे पुरानी व पिछड़ी बाते मानते है|इस सांस्कृतिक पतन मे एक और अद्याय वर्तमान शिक्षा व्यवस्था जोड़ रही है जहाँ तक इस व्यवस्था का प्रश्न है वह भी पैसे लेकर डिग्री रूपी कागज के टुकड़े बेच रहे ना तो शिक्षा मे चरित्र ,विचारधारा,सामाजिक दायित्व जैसे  मोलिक विचारों के लिए कोई स्थान है ना ही उनका महत्व का ज्ञान उनका उद्देश्य तो ऐसे खुदगर्ज ,स्वार्थी,लालची विद्यार्थीयों का निर्माण करना है जो ब्रांडेड कपड़े तन पर लपेटे एक हाथ मे सिगरेट एक हाथ मे शराब लिए खुद को कामदेव का अवतार समझे जिनके जीवन का परम उद्देश्य ही खुद को सुखी व अधिक से अधिक भोग कराना हो चाहे उसके लिए उसे किसी भी स्तर तक गिरना पड़े  इन सब कारकों ने एक ऐसे नए समाज का सर्जन कर दिया है जिसमे इंसान का इंसान के प्रति दृष्टीकोण ही बदल गया है | सहयोग,प्यार,भाईचारा, हमदर्दी जैसे शब्दों का अस्तित्व व्यावहारिक रूप से लगभग समाप्त ही हो गया है खुद को सर्वसुख उपलब्ध कराने वाली इस भोतिकवादी व्यवस्था मे हर रिश्ते, हर संबंध  को लाभ की कसोटी  पर तोला जाने लगा है अपने सुख के कारण सन्ताने अपने वृद्ध माता तक का तिरष्कार कर रही है जिससे  समाज मे वृद्धजनो की स्थिति अत्यधिक दयनीय हो चली है भोग विलास के इस घृणित तांडव को देखकर महान दार्शनिक रूसो की बात याद आती है कि “प्रकर्ति मे हर तंत्र (सिस्टम),हर चक्र चाहे वो मनुष्य का जीवन चक्र हो या गृह नक्षत्रों की गति अपने अस्तित्व के विभिन्न चरणों गणितीय रूप से एक व्रत (सर्कल) का निर्माण करते है जिसमे अंतिम व प्राम्भिक बिंदु बहुत समीप होते है आशा करता हू कि इस व्यवस्था तंत्र का सफर जो अपने चरम पर है  अपने अंतिम (समापन) विंदु के निकट आ चुका होगा | परिवर्तन कि आस में
( V.K .AZAD)

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