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भारत माँ की सिसकिया फिर तुझको आज बुलाती है || बिन रोटी के भूखे बच्चो को आज भी माँ- ए सुलाती है|| जनता त्रस्त है नेता मस्त है इनको सबक सिखाओ न || भगत सिंह एक बार फिर से तुम आ जाओ न ।। सब वही कुछ न बदला है एक धुंध सी चारो ओर है ।। झूठ नाचता चोराहो पर सच हुआ कमजोर है ।। ईमानदार इस व्यवस्था में खुद को अकेला पाता है।।। टूटे बिखरे निर्बल मन को फिर इन्कलाब के गीत सुनाओ न।। भगत सिंह एक बार फिर से तुम आ जाओ न।। युग बदला है शासन बदला पर गुलामी का दौर नहीं || लोकतंत्र एक नाटक बन गया प्रजा कहती है अब और नहीं ।। जिनको तुमने भगाया था वो उनको फिर बुलाता है || चुनाव से पहले मेरे शहर में एक दंगा हो जाता है ।। इस धरम जात के बंधन से हमको मुक्त कराओ न ।| भगत सिंह…….. जाओ ना |||…… मजदूर, किसान कराह रहे है महगाई के दृष्टिपात से ।। मिडिया भी खुश है धनवानों के साथ से ।। साम्राज्य वाद का नया मुखोटा है इससे हमें बचाओ न ।। भगत सिंह एक बार फिर से तुम आ जाओ न ।। धनबल के शोर में पूजी का दानव और बढता जाता हैै ।। बरसो हुए आज़ाद हुए गरीब आज भी बिना इलाज मर जाता है ।। किसान करे क्यों आत्महत्या क्यों आदिवासी नक्सल बन जाता है ।। ये विकास का कैसा शास्त्र है ज़रा हमें समझाओ न।। भगत सिंह…….आ जाओ न ।। कुछ मालिक है उनके ठेके है राष्ट गया अवसान पर ।। क्या खेले इसी वास्ते थे आप लोग अपनी जान पर ।। देख ये सब लूटपाट राजघाट का गाँघी भी कराहता है ।। सत्ताधिश हुए बहरे है फिर धमाका उन्हें सुनाओ ना ।। भगत सिंह एक बार फिर से तुम आ जाओ ना ।|
(v k Azad)
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