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——————ये कैसी आज़ादी———–

social issue
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रात के 8 बज गए थे फिर भी आज राजू घर नहीं पंहुचा था | कमांडेंट साहब का ऑफिस अक्सर तो दिल्ली के अन्य सरकारी कार्यालयो की तरह शाम पाच बजे से पहले ही बंद हो जाता था पर 15 अगस्त आने वाला था इसलिए राजू को आज सख्त आदेश था की दफ्तर की सारी फ़ाइले साफ़ करके दुबारा सही तरीके से अलमारी में बेठाई जाये | उधर दूर कही एक झोपड़े में राजू की माँ शांति की चिंता किसी अंजान डर से बढ़ती जा रही थी सोच रही थी आज उसका आठ साल का लाल न जाने कहा रह गया था रोज तो शाम ढलने से पहले ही घर आ जाता था ,कभी सोचती की कमांडेंट साहब के घर पता कर आऊ तो कभी सोचती कही रास्ते में पड़ने वाले मैदान में तो खेलने नहीं लग गया ,कभी गुस्से से खुद को ही कोसने लग जाती की मैंने क्यों राजू के ऑफिस में काम करने के प्रस्ताव पर हा कर दी |शांति पिछले कुछ सालो से कमांडेंट साहब के यहाँ झाड़ू बर्तन का कामकर गुजारा चलाती थी शराबी पति की मौत हो जाने से पहले कमांडेंट साहब की बीवी के शांति पर बहुत अहसान थे पति के इलाज में कमांडेंट साहब की बीवी ने हर तरीके से शांति की मदद की थी जिसके चलते वो उन्हें न नहीं कर सकी थी | तभी शांति के कानो में एक अवाज सुनाई दी दरसल ये राजू के चप्पल के घीसटने की आवाज थी ,राजू को चप्पल घिसट कर चलने की आदत थी शांति उसकी इस आदत पर बहुत गुस्सा होती थी पर ये आवाज़ सुन उसे वही महसूस हो रहा था जो सूखे में किसी किसान को बादलो की गरज सुन महसूस होता है, वो दौड़कर टूटे हुए दरवाजे को खोलती है राजू को देखकर उसपर बरसने लगती है कहा चला गया था ! कितनी बार कहा है शाम ढलने से पहले घर आ जाया कर, राजू के बोलने से पहले ही शांति ने अपने सवालों के जवाब राजू के चेहरे पर पड लिए थे आठ साल का लड़का जिसका शरीर
दुर्बल आँखों में चमक थी जिसके चेहरे पर समय की मार ने उसकी उम्र से ज्यादा परिपक्वता चस्पा दी थी आज कुछ भी प्रतिकिर्या दिए बिना चारपाई पर जाकर उल्टा लेट गया शांति को माज़रा समझते देर न लगी सिर पर हाथ फेर कर बोली कल से तुम ऑफिस नहीं जायोगे वहाँ तुमसे बहुत काम लिया जाता है कल से मै मेमसाब की एक न सुनूगी ,वहाँ कोई काम न होगा बस घंटी बजने पर पानी पिलाना होगा जाने क्या क्या कह रही थी मेरे फूल से बच्चे की क्या हालत कर दी ! नन्ही जान से कोई इतना काम लेता है भला !
शांति मैडम की वैसे तो बहुत इज्ज़त करती थी पर आज ममता कृतज्ञता पर भारी पड़ रही थी अगले दिन पंद्रह अगस्त था सभी सरकारी कार्यालयों की तरह कमांडेंट साहब का ऑफिस भी सजा था सुबह चारो तरफ रंग बिरंगी झालरे ,रास्ते पर चूने से पुती सड़के, झंडारोहरण का कार्येक्रम यू तो दस बजे का था पर कमांडेंट साहब सुबह छह बजे से ही कार्यालय में थे कभी इसे हडकाते कभी उसे एक मिनट की फुर्सत न थी कभी माली पर चिल्लाते ‘अभी तक घास इकसार क्यों नहीं हुई’ तो कभी किसी रंग रूट की क्लास लगा देते आज कमांडेंट साहब के तेवर ही निराले थे और हो भी क्यों न इस कमांडिंग ऑफिस के इतिहास में आज पहली बार झंडारोहरण का कार्येक्रम किसी केन्द्र्यी मंत्री के द्वारा हो रहा था वो भी बाल कल्याण मंत्री के कर कमलो से खुद हेडक्वाटर ने कमांडेंट साहब की उनकी इस उपलब्धि पर पीठ थपथपाई थी दरसल माजरा कुछ और था मंत्री जी के रिश्तेदार इसी ऑफिस में चपरासी थे सिर्फ कहने भर को, कमांडेंट साहब के बाद एक वो ही थे जिनकी ऑफिस में चलती थी उनकी ही सिफारिश से मंत्री जी एक विश्वविद्यालय का कार्येक्रम छोड़ एक छोटे ऑफिस में झंडारोहरण के लिए तैयार हुए थे | इन्ही चपरासी महोदय के स्थान पर राजू काम करता उधर दूसरी ओर सुबह होते ही शांति साहब के घर काम पर पहुचती है सभी नोकरो की तरह मैडम ने शांति को भी स्वतंत्रता दिवस पर साड़ी मिठाई दी मैडम की दरियादिली देख शांति की रात भर की तैयारी फुर हो गयी थी आज वो राजू के बारे में बात करने बहुत तेयारी से आयी थी जाते जाते मैडम ने शांति से राजू को तुरंत ऑफिस भेजने की गुजारिश भी कर दी थी और वही हुआ जो आदि काल से होता आया है विपन्नता सम्पन्नता से फिर पराजित हो जाती है शांति लाख चाहकर भी इंकार न कर सकी रास्ते भर खुद से झूझती शांति घर पहुचती है राजू घर पर नहीं था उससे रात को ही सुबह जल्दी ऑफिस पहुचने की हिदायत दे दी गयी थी वो ऑफिस पहुचते ही ऑफिस की सफाई में जुट चुका था ऑफिस में सभी तैयारी जोरो पर थी और हो भी क्यों न भारतवर्ष को आजाद हुए 66 साल हो गए थे बड़े बड़े स्पीकरो से देशभक्ति के गाने तेज आवाज में बज रहे थे सभी हर तरीके से अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे थे ,जलसे में बड़े बड़े नेता ,बड़ी बड़ी हस्ती पहुचे थे | CRPF कार्यालयछोड़ खुद I.G साहब भी आज पहली बार कार्यालय में पहुचे थे! कमांडेंट साहब के चेहरे की रोनक देखने लायक थी! राजू सब को पानी पिलाने ,नाश्ता कराने में व्यस्त था ! जलसा शुरू हुआ ,झंडारोहण के बाद नेता जी ने बाल कल्याण पर लम्बा चौड़ा भाषण दिया सभी के साथ राजू ने भी खूब तालिया बजाई, राजू इन तालियों का मतलब खूब जानता था वो समझ गया था की मिठाई खाने का समय अब ज्यादा दूर नहीं है! सभी ने मिठाई खाकर अपने आजाद होने की खुशिया मनाई |
लेकिन क्या हम वाकई में आजाद हुए है आज भी राजू जैसे हजारो मासूम बच्चे गरीबी लाचारी के चलते अपना बचपन कही पर काम करते हुए या ट्रेनों में चाय,गुटखा बेचते हुए स्वः कर रहे है आज भी हमें आजाद हुए ६६ साल बीत गए फिर भी हमारे देश में 55 % बच्चे कुपोषण का शिकार है(सरकारी आकड़े अनुसार) आजादी के समय यही आकड़ा ४७% था | आज भी मासूम कभी मिड डे मील के भोजन का कभी सरकारी चिकित्सालयो की लापरवाही का शिकार बन रहे है,सरकारी व्यवस्था जो जनता के प्रति सभी जिम्मेदारियों से अपना पल्ला झाड चुकी है जन-कल्याण से जुड़े कार्यो को केवल वोट खरीद्ने के लिए अंजाम दे रही है! लाल फीता शाही खुद को व्यवस्था का अंग न समझ कर खुद ही कमांडेंट साहब की तरह पूर्ण व्यवस्था बन गए है! भ्रष्टाचार चरम पर है सभी तंत्र मानो विफलता की अवस्था के समीप खड़े है ऐसे में वर्तमान में उपस्थित देश के इन भविष्य धरोहरो(बच्चो) को दुर्दशा से कौन उभारेगा ?
आज देश की आजादी का चरित्र बदल चुका है | आज भी देश की ७०% आबादी उसी हालातो में जीने के लिये विवश है जिन हालातो में गुलामी ने उसे छोड़ा था | जहा अमीर अमीरी से निकल नहीं प् रहे है और गरीब गरीबी से ,तब क्या आजादी और गुलामी का ये खेल कुछ वर्ग विशेष के लिए खेला गया था ! क्या यह वही आजाद देश है जिसका सपना आजादी के मतवालों ने देखा था ,क्या आप आजादी के वर्तमान स्वरुप से संतुष्ट है ?

v.k azad

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