Menu
blogid : 11863 postid : 634921

दास्ताँ-ए-दर्द

social issue
social issue
  • 22 Posts
  • 63 Comments

ऐ दर्द यू तो मेरा तुझसे तारुफ़ ज्यादा पुराना नहीं है पर लगता है हमारा रिश्ता समय से भी ज्यादा गहरा है कभी जगजीत सिंह की नज्मो से तेरा वजूद आत्मसात किया मैंने,फिर क्या था हमारा रिश्ता गहराता गया तेरे अस्तित्व की समग्रता परिधि का असीम विस्तार तेरी विशालता को अपने अंदर महसूस किया है मैंने | ये कही मेरी अनुभूति की असंवदेनशीलता थी जो आज तक मैं तुझको न समझ पाया था तेरे बिना तो इस दुनिया की कल्पना असंभव है तू तो सर्जन के प्रथम चरण ,प्रसव पीड़ा से लेकर जीवन यात्रा के अंत देहत्याग तक इंसानी जिंदगी को अपने चक्र में लपटे हुए है दुनिया की समस्त सकरात्मकता का उदय तेरे गर्भ से होता है तेरा अनुभव कर कभी सिद्धार्थ गोतमबुद्धा बन जाता है तो कभी मोहनदास करमचंद राष्ट्रपिता, ये तू ही तो है कभी भगतसिंह को शहीद ऐ आज़म तो कभी एग्नेस गोंजा को मदर टेरसा में बदल देता है तेरी अनुभूति कभी मुझे भूख से तड़पते लोगो की व्यथा में तो कभी अपने परिवार के लिए भोजन प्रबंध की चिंता में सोए गरीब मजदूर के माथे के बल में दिखाई देती है तू तो सब जगह है कभी तू मुझे किसी पिजड़े के पंछी की आज़ादी की कल्पना मे महसूस होता है तो कभी चिकित्सा आभाव में तड़पते किसी लाचार बीमार की आहो में तेरी सार्वभोमिकता,तेरी अपारता को न महसूस करने पर मैं खुद में ही खोया था मैं तुझसे डरता था कभी तुझसे बचने के लिए मैं मंदिरों, मज़िदो में गीड़गीड़ाता था तो कभी धरम गुरुओ के चक्कर काटता था पर आज मैं जनता हू तेरे बिना कुछ भी सम्भव नहीं है तू चारो ओर् है तेरा निजीकरण करने पर मनुष्य जीवनरूपी रेगिस्तान की मरीचिकाओ में भ्रमित हो जाता है तेरा सार्वजनीकरण ही इंसान को
इंसान की पहचान देता है हमें दूसरो की दर्द समझने की प्रेरणा देता है तेरी शक्ति तेरे अस्तित्व से ही समस्त ब्रम्ह्मांड अच्छादित है तेरी अनुभूति की अनुपस्थिति हिरोशिमा, नागासाकी तो कभी जलियावाला बाग बनाती है | आधुनिक भोतिकवादी युग माना तेरा सक्रमण काल है,आज दिलो में तेरा आभाव दिखाई देता है पर कालचक्र में फसे लोगो के दर्दो का इलाज इसी दर्द में ही छुपा हुआ है |
( v k azad )

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply