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बलात्कार एक समाजिक कलंक

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दिल्ली गेंगरेप मामला भारत के लिए कोई अनोखा व् पहला मामला नहीं था ऐसे सेकड़ो रेप केस हमारे आसपास व् हमारे समाज में प्रतिदिन हो रहे है ये बात और है की उनको मीडिया व् समाज की उतनी तव्वजो नहीं मिल पति जितनी इस मामले में दिखाई गयी और दिखाई भी जानी चाहिए थी परन्तु इन ओरिफोरी धूमधड़ाक प्रतिक्रियाऔ, आक्रोश की अभिव्यक्तिकरण में हम कही न कही समस्या की जड़ में छुपे कारण व् निवारण से दूर होते जा रहे है हम अपने सारे गुस्से को पुलिस व् कानून व्यवस्था पर केन्द्रित कर अपनी समस्त उर्जा उसके प्रतिकार व् प्रतिरोध में लगा रहे है जिसके कारण हम इस प्रकार की शर्मनाक, दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के निषेधिकरण निर्मूलन को और कठिन बना रहे है |
क्या केवल पुलिस बलों की संख्या बड़ाकर व् महिला हेल्पलाइन नंबर बनाकर इस समस्या को हल किया जा सकता है इस बात में कितनी सच्चाई है ये हम सब जानते है प्रथम द्रष्टि में ऐसा आभास अवश्य होता है की पुलिस की सक्रियता संवेदनशीलता ऐसे मामलों को कम जरुर कर सकती है पर समाप्त नहीं क्योकि ये सामाजिक दोष के कारण तो हमारे समाज में बहुत अंदर गहरे बेठ चुके है जिन्हें कोई भी पुलिस कर्मचारी ख़त्म नहीं कर सकता है क्योकि वो कर्मचारी भी तो उसी समाज का ही एक हिस्सा होगा और वैसे भी किसी आदर्श समाज में पुलिस की कोई भूमिका नहीं होती है पुलिस तो केवल सामाजिक
बुराई का दमन शमन माद्यम से रोकधाम कर सकती है समूल विनाश तो सामाजिक बुराइयो के मूल के अध्ययन के बिना असंभव है | नेतिकता व् मानवता को आधार बनाकर गड़े गए सामाजिक नियमो जिन पर हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था गतिमान है हर व्यक्ति विशेष को इक समाजिक इकाई के रूप में इन नियमो का पालन करना पड़ता है पर वर्तमान समय में जहा हर मनुष्य अपने स्वार्थो का गुलाम मात्र बन कर रह गया है उसने अपनी सुविधा, अपने हितो के हिसाब से नियम के अंदर एक नए नियम का स्र्रेजन कर लिया है जिसके कारण सम्पूर्ण समाज की स्थिरता को बेहद खतरा पैदा हो गया है व्यवस्था
का कोई भी अंग इस दोष से रहित नहीं है राजनीती को ही लीजिए इसका हर एक सदस्य इन धटनाओ को अपने स्वार्थ के हिसाब से देखता है उनके लिए बलात्कार की घटना भी अपनी राजनितिक आकान्शाओ की पूर्ति के लिए अवसर समान है उसके सामाजिक सरोकार से उसका कोई लेने देना नहीं है मीडिया को ही लीजिये उसने बलात्कार के इस दर्दनाक मामले में भी अपनी trp के लिए निजता की सारी सीमाए तोड़ दी, न्यायपालिका को ही लीजिये उसने हो हल्ला होने के बाद दिल्ली पुलिस पर अपना गुस्सा उतारा जबकि वो इस घटना से पूर्व भी स्त्री अत्याचारों पर किसी अख़बार की कटिंग या किसी पोस्टकार्ड की सूचना के आधार पर जनहित में बलात्कार दंड कानून में सुधार के लिए सरकार को निर्देश दे सकती थी भारत की जनता ने भी अपना गुस्सा सड़को पर खूब उतारा जबकि पीडित लड़की इसी जनता की भीड़ के बीच नग्न अवस्था में काफी देर तक पड़ी रही थी तब कोई उसकी मदद को नहीं पंहुचा था हो सकता है इन आवेगी त्वरित प्रत्किर्याओ से दिल्ली में यर घटनाये कम भी हो जाये फिर पुरे भारत का क्या होगा क्या समाज इस घटना को एक अद्याय की तरह भूल कर फिर अपनी कुभ्करनी नींद में चला जायेगा सब कुछ उन पुलिस के सिपाहियों पर छोड़ कर जिसको वेतन के नाम पर १४००(चोदाह हज़ार)रुपया बिना रेस्ट बिना छुट्टी २४ घंटे की ड्यूटी करनी पडती है जिसकी खबर न तो कोई कोर्ट न कोई नेता लेता है या उन नेताओ पर छोड़ कर जो z+ श्रेणी की सुरक्षा में खुद व् अपने परिवार को रक्षित सुरक्षित कर चुके है आज उन्हें अपनी जनता भी माओवादी नज़र आती है इनमे से कोई भी इन घटनायो को नहीं रोक पायेगा जब हम लोग खुद अपने हितो के लिए बनाये नियमो को त्याग कर अपने आस पास ,अपने समाज ,अपने घर में महिलायों को सम्मान दिलाने के लिए नहीं खड़े होंगे तब तक ये सब नहीं रुक पायेगा |

(v.k azad)

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