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क्या भाजपा पुरुष प्रधान पार्टी है ? ये सवाल मन में इसीलिये उठता है क्योंकि भाजपा में सशक्त महिला नेत्रियाँ तो बहुत हुईं लेकिन शायद उन्हें इतना भी सशक्त नहीं समझा या होने दिया गया कि उनके हाथों में पार्टी की कमान सौंपी जा सके या उन्हें प्रधानमन्त्री पद का दावेदार घोषित कर उनके नाम पर चुनाव लड़ा जा सके. दूसरी ओर भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कॉंग्रेस में वर्षों तक इन्दिराजी ने पार्टी अध्यक्ष और देश के प्रधानमन्त्री पद को हासिल किया तो सोनिया गाँधी १९९८ से २०१७ तक ना केवल कॉंग्रेस अध्यक्ष रहीं बल्कि २००४ से अब तक यूपीए अध्यक्ष भी हैं..
ममता बैनर्जी, मायावती, जयललिता जैसे उदाहरण भी हैं जो अपनी-अपनी पार्टियों की सर्वेसर्वा रहीं और हैं.. आख़िरकार भाजपा में विजयाराजे सिन्धिया, सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन, उमा भारती, मेनका गाँधी वरिष्ठ होने के बावजूद पार्टी अध्यक्ष या प्रधानमन्त्री पद की दावेदार क्यों नहीं बन सकीं ?भाजपा में ही ये क्यों देखा गया कि जब-जब किसी महिला नेत्री का क़द ऊँचा उठता पाया गया, उसे दरकिनार कर दिया गया या अधिकारविहीन कर दिया गया.. जैसे सुषमा स्वराज कहने को तो विदेश मन्त्री हैं लेकिन जनता उन्हें रबर स्टैम्प ही समझती है. कभी प्रधानमन्त्री पद की प्रबल दावेदार समझी जाने वालीं सुषमाजी को अचानक ही दरकिनार कर दिया गया. अपने तार्किक-सशक्त वक्तव्यों और बयानों के लिये पहचानी जाने वाली सुषमाजी की आवाज़ या बयान अब कभी-कभार ही सुनाई-दिखाई देते हैं.
दबी आवाज़ में तो ये भी कहा जाता है कि निर्मला सीतारमण भी नाममात्र को देश की रक्षा मन्त्री हैं, अर्थात रबर स्टैम्प की तरह ही हैं. बार उमा भारती ने आवाज़ उठाने की कोशिश की तो उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वर्तमान में भी उनके अधिकारों को कम करते हुए गंगा सफ़ाई मन्त्रालय से हटा दिया गया. स्मृति ईरानी को पाँच प्रमुख मन्त्रालयों में से एक मानव संसाधन विकास मन्त्रालय दिया गया था लेकिन कम उम्र और कम समय में दिनों दिन तेज़ी बढ़ती लोकप्रियता के चलते अचानक ही उन्हें हटाकर सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय और कुछ ही दिनों में वहाँ से भी हटाकर कपड़ा मन्त्रालय थमा दिया गया, अर्थात डिमोशन कर दिया गया.
प्रधानमन्त्री और पार्टी अध्यक्ष पद की एक और सशक्त दावेदार सुमित्रा महाजन को लोकसभा अध्यक्ष बनाकर उन्हें इस दौड़ से बाहर ही कर दिया गया. राजस्थान की दमदार और तेज़तर्रार नेता वसुन्धरा राजे को भी उनके प्रभाव के चलते केन्द्र की सक्रीय राजनीति से जानबूझकर दूर ही रखा गया. ४ वर्ष पूर्व पार्टी में शामिल हुईं तेज़तर्रार नेता किरण बेदी के प्रभाव से घबराकर उन्हें पुडुचेरी का राज्यपाल बनाकर सक्रीय राजनीति से हमेशा के लिये दूर कर दिया गया. विजयाराजे सिन्धिया, सुमित्रा महाजन, नजमा हेपतुल्ला, आनन्दी बेन, सुषमा स्वराज, उमा भारती, मीनाक्षी लेखी, पूनम महाजन, पंकजा मुण्डे, स्मृति ईरानी, वसुन्धरा राजे सिन्धिया, किरण खेर, मेनका गाँधी, शायना एनसी, निर्मला सीतारमण, हेमा मालिनी, किरण बेदी, शाज़िया इल्मी, नूपुर शर्मा, रूपा गांगुली क्या इन तमाम महिला नेत्रियों में से किसी में भी पार्टी की कमान सम्हाले जाने लायक़ योग्यता नहीं थी ?
शिशिर घाटपाण्डे
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