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फ़िर आज ख़ुशी का वो दिन आया, मंगलमय वो बेला आई
७३ वें स्वतन्त्रता दिवस की, आपको हार्दिक हार्दिक बधाई
स्वाधीनता का संग्राम बड़ा था, अस्तित्व की थी वो लड़ाई
एक होकर वो सभी लड़े थे, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
खोया किसी ने माता-बहन को, किसी ने पुत्र तो किसी ने भाई
किसी ने अपनों को खोकर तो किसी ने प्राणों से आज़ादी दिलाई
प्राणों की भी ना की चिन्ता, ना अपनों की दी थी दुहाई
क्रान्तिवीरों नमन है तुमको, आज़ादी की जोत जगाई
देशवासियों अब तो समझो, इस ऋण की करो भरपाई
बन्द करो ये ख़ून-ख़राबा, धर्म-जात-भाषा की लड़ाई
स्वार्थ में तुम अन्ध हो गए, बलिदानों की याद न आई
लाखों ने था ख़ून से सींचा, तब आज़ादी की फ़सल लहाई
सम्हलो अब तो वक़्त के रहते, नफ़रत किसी के काम न आई
एक ही वृक्ष की शाख़ें हैं हम, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
इन्सानीयत ही सबसे बड़ी है, बनें एक-दूसरे की परछाईं
आज़ादी मुबारक़ सबको, इस शुभ दिन की सबको बधाई
शिशिर घाटपाण्डे
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