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आख़िरकार कैसे रोका जाए मासूम बच्चियों और अबलाओं पर होने वाले रेप जैसे घिनौने और वीभत्स अत्याचारों को ?

Shishir Ghatpande Blogs
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कठुआ में आठ साल की मासूम के साथ बार-बार दरिन्दगी करने के बाद उसकी नृशंस ह्त्या, बिहार में पाँच साल की मासूम के साथ दरिन्दगी, उन्नाव में विधायक पर सामूहिक बलात्कार का आरोप…

इन घटनाओं ने देश का दिल दहला दिया है…घर के आँगन के बाद बच्चों के लिये जिसे सबसे ज़्यादा सुरक्षित समझे जाने वाले विद्या मन्दिर, बाग़-बग़ीचे, खेत-खलिहान यहाँ तक कि मन्दिर-मस्ज़िद-मदरसे भी सुरक्षित नहीं, बल्कि यही उन मासूमों के कालस्थल बनते जा रहे हैं..

पता नहीं हमारे देश में अपराध के पीछे के कारणों और अपराध को घटित होने से रोकने के उपायों से ज़्यादा सज़ा पर ही ज़ोर क्यों दिया जाता है ?

रेप एक ऐसा अपराध है जो प्री प्लाण्ड या सुनियोजित नहीं होता बल्कि अचानक या अकस्मात् किया जाता है. कोई माने या ना माने लेकिन रेप के पीछे फ़िल्मों, टीवी चैनल्स, इन्टरनेट, मोबाइल, अश्लील साहित्य और सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ती अश्लीलता बहुत बड़े कारण हैं.. इन पर गम्भीरतापूर्वक विचार और चर्चा करने की बजाए सज़ा के प्रावधानों और तरीक़ों जैसे फाँसी, आजीवन कारावास, सार्वजनिक मृत्युदण्ड, तालिबानी सज़ा अथवा बालिग-नाबालिग, मनोरोगी इत्यादि पर ही चर्चा की जाती है….

जब भी किसी महिला के साथ कोई अप्रिय घटना घटती है तो समाज के तथाकथित ठेकेदार उसके पहनावे से लेकर दैनिक जीवन, रहन-सहन पर ही सवाल खड़े करना शुरू कर देते हैं. कोई भी महिला क्या पहने-क्या ना पहने, कहाँ आए जाए या कहाँ ना आए जाए, कब और किस समय आए या जाए, किससे बोलचाल-बातचीत करे ना करे इसे निर्धारित करने का पूर्ण अधिकार केवल और केवल उसका अपना है और इनको लेकर किसी भी वाहियात इन्सान को उसके साथ दुर्व्यवहार करने का लायसेंस नहीं मिल जाता. इसे लेकर कोई भी किसी महिला के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार करता है तो उसे क़ानून के मुताबिक़ कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिये.

दरअसल समाज और दुनियां में इन्सानों के भेस में हैवान-शैतान भी मौजूद हैं और ऐसे लोग जब भी फिल्मों, टीवी चैनल्स, इन्टरनेट, मोबाइल, अश्लील साहित्य या सार्वजनिक स्थलों पर अश्लीलता देखते हैं तो उनके अन्दर हैवानियत या शैतानियत हावी हो जाती है और वो मौक़े की तलाश में लग जाते हैं, जिसका शिकार ज़्यादातर असहाय-कमज़ोर-लाचार लड़की-महिला या बच्ची तक हो जाती है जिसका वस्त्र-पहनावे से कोई लेनादेना नहीं होता…

इसके अलावा अनेक महत्वपूर्ण बातों को हम छोटी-मोटी बातें समझकर नज़रअन्दाज़ कर देते हैं जैसे :

i. स्कूल-कॉलेजों-विश्व विद्यालयों-अन्य शैक्षणिक संस्थानों-हॉस्टल्स-सरकारी एवं ग़ैर सरकारी संस्थाओं इत्यादि में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो
ii. टीचिंग और मैनेजमेण्ट स्टाफ़ के अलावा, स्पोर्ट्स टीचर, स्कूल बस-वैन इत्यादि में कण्डक्टर-क्लीनर, सुरक्षाकर्मी, सफ़ाईकर्मी इत्यादि अनिवार्य रूप से महिलाएं भी हों
iii. स्कूल-कॉलेज-विश्व विद्यालयों-अन्य शैक्षणिक संस्थाओं-हॉस्टल्स -सरकारी एवं ग़ैर सरकारी संस्थाओं इत्यादि में अनुशासनात्मक समिति का गठन अनिवार्य रूप से हो और जिसमें महिलाओं की भागीदारी बराबरी की हो
iv. प्रत्येक पुलिस थाने में महिलाओं से सम्बन्धित अपराधों हेतु अलग विभाग-समिति अनिवार्य रूप से गठित की जानी चाहिये जिसमें महिला-पुरुष अधिकारी-कर्मचारियों की बराबरी की भागीदारी हो
v. प्रत्येक छोटे-बड़े शहर में Remote-Isolated Areas की List तैयार करके पुलिस चौकियां-गश्त-Patrolling बढ़ाई जानी चाहिये
vi. रिहाईशी इलाकों से शराब की दुकानें-बार इत्यादि हटाए जाने चाहिये
vii. शराब-बार इत्यादि की समय-सीमा अधिकतम रात्रि १० बजे तक की जानी चाहिये
viii. देश भर में नशे के कारोबार पर सख़्ती से लगाम कसी जानी चाहिये क्योंकि ज़्यादातर अपराध नशे की अवस्था में ही किये जाते हैं
ix. फ़िल्मों-टीवी चैनल्स-इन्टरनेट-मोबाइल-अश्लील साहित्य-सार्वजनिक स्थलों पर अश्लीलता को रोके जाने हेतु सख़्त क़दम उठाए जाने चाहिये
x. महिला सम्बन्धी किसी भी प्रकार के अपराध में चार्जशीट प्रस्तुत करने की अवधि अधिकतम १५ दिवस की जानी चाहिये
xi. महिला सम्बन्धी किसी भी प्रकार के प्रकरण की सुनवाई Fast Track Court के तहत अधिकतम ६ माह में होनी चाहिये
xii. प्रत्येक थाने में महिलाओं से सम्बन्धित अपराधों के लिये अलग विभाग-अलग टीम बनाई जाए, जिसके तहत डीएसपी स्तर की महिला अधिकारी के अधीन पुरुष इन्स्पेक्टर, महिला सब इन्स्पेक्टर, पुरुष हवलदार/कॉन्स्टेबल और दो-दो महिला-पुरुष सिपाहियों की नियुक्ति की जाए.

xiii. प्रत्येक थानान्तर्गत पड़ने-आने वाले सुनसान-एकान्त क्षेत्रों का डीटेल/गहन सर्वे कर सर्वे रिपोर्ट ज़िला-राज्य-केन्द्र के गृह विभागों में सुझाव-एक्शन प्लान के साथ सम्मिलित की जाए

xiv. सुनसान-एकान्त क्षेत्रों में गश्त-सीसीटीवी अधिकाधिक एवं मुस्तैद किये जाने हेतु पर्याप्त प्रबन्ध किये जाएँ

xv. समस्त रहवासी-रिहाईशी सोसायटीज़, आवासगृहों, परिसरों, शॉपिंग मॉल्स, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, दुकानों, स्कूल-कॉलेज-अन्य शिक्षण संस्थानों, समस्त सरकारी-ग़ैर सरकारी संस्थानों एवं कार्यालयों, सरकारी एवं निजी चिकित्सालय-नर्सिंग होम्स, सिनेमागृहों, पार्क-बग़ीचे एवं अन्य सार्वजनिक-असार्वजनिक स्थानों इत्यादि पर सीसीटीवी की अनिवार्यता सुनिश्चित की जाए

xvi. देशभर में मोहल्ला सुरक्षा समितियों का गठन किया जाए

xvii. रेप एक अमानवीय एवं बर्बरतापूर्ण अपराध है इसीलिये अपराधी के प्रति किसी भी प्रकार की मानवीयता अथवा सहानुभूति ना बरतते हुए आजीवन नपुंसकता की सजा का प्रावधान किये जाने हेतु संसद में क़ानून बनाया जाना चाहिये

xvii. न्यायपालिका से भी ऊपर संसद है. संसद सर्वोच्च है. न्यायपालिका संविधान के अधीन आती है और संसद का काम है, संविधान का पालन करवाना. अगर न्यायपालिका का काम न्याय करना है तो संसद का काम न्यायपालिका से भी संविधान के दायरे में या संविधान का अनुपालन कराते हुए उसे मार्गदर्शित करना है.

इसीलिये बलात्कार जैसे अपराधों की समाप्ति और अपराधियों को जल्द से जल्द कड़े से कड़ा दण्ड दिलाने के लिये तत्काल सर्वदलीय संसदीय समिति का गठन किया जाए. इस समिति के कार्य होंगे:

a. न्यायपालिका/न्यायालय से दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही या प्रक्रिया की जानकारी/day to day reporting लेना और ये सुनिश्चित करना की कार्यवाही या प्रक्रिया त्वरित गति से हो

b. मामले की कार्यवाही-प्रक्रिया निर्णय तक प्रतिदिन चले, तारीख़ दर तारीख़ नहीं

c. संसदीय समिति को अधिकार होगा कि यदि ज़रूरत पड़े तो जज, न्यायाधीश, सरकारी वकील, जाँच से जुड़े पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों इत्यादि से सवाल-जवाब कर सके, उन्हें मार्गदर्शित कर सके अथवा आवश्यक निर्देश दे सके

d. संसदीय समिति को अधिकार होगा कि वो सर्वसम्मति से जज-न्यायाधीश, सरकारी वकील, जाँच से जुड़े अधिकारी-कर्मचारियों की नियुक्ति कर सके या उनकी कार्यपद्धति से असन्तुष्ट होने पर उन्हें हटा सके

e. संसदीय समिति सुनिश्चित करे कि निम्न से सर्वोच्च न्यायालय तक चलने वाली कार्यवाही या प्रक्रिया के अन्तर्गत अधिकतम ६ माह की अवधि में मामले का अन्तिम निर्णय आ जाए

रेप जैसे वीभत्स अपराध की सज़ा केवल फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हो सकती.. रेपिस्ट के लिये सबसे उपयुक्त सज़ा आजीवन नपुंसकता है….निर्भया प्रकरण के बाद सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस दीपक वर्मा को रेप सम्बन्धी क़ानून/धाराओं में संशोधन एवं सज़ा के प्रावधानों पर जनता से राय लेकर उसकी समीक्षा करने और अपना पक्ष रखने को कहा गया… देश भर से आक्रोशित लोगों ने अपनी राय/सिफ़ारिशें भेजीं जिनमें रेपिस्ट को सार्वजनिक रूप से बीच चौराहे पर फाँसी देने, सार्वजनिक रूप से बीच चौराहे पर ज़िन्दा जला देने, नपुंसक बना देने, जनता के हवाले कर देने, फाँसी देने, आजीवन कारावास देने जैसी राय-सिफ़ारिशें भी सम्मिलित थीं.. जस्टिस वर्मा ने मानवीयता का हवाला देते हुए उन सभी राय-सिफ़ारिशों को नकार दिया और वर्तमान न्यायालयीन प्रक्रिया पर और उसके न्याय पर अपनी सहमति और विश्वास व्यक्त किया….

कुछ दोषियों की फाँसी की सज़ा भले ही आज बरक़रार रखी गई हो लेकिन निर्भया प्रकरण का सबसे वहशी दरिन्दा मात्र कुछ दिनों की बेमानी छूट के चलते साफ़ बचकर निकल गया इस बात का अफ़सोस देश की जनता के साथ निर्भया की आत्मा को भी ज़रूर होगा…

शिशिर भालचन्द्र घाटपाण्डे

मुम्बई

०९९२०४ ००११४, ०९९८७७ ७००८०

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