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“केजरीवाल” : नये-नवेले, शातिर-माहिर या धोखेबाज़-फ़रेबी राजनेता ?????

Shishir Ghatpande Blogs
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अप्रैल २०११ में भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल विधेयक हेतु महा आन्दोलन छिड़ा जो आज़ादी के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा जन आन्दोलन था. जितने विराट स्वरूप में इसकी शुरुआत हुई, मात्र तेरह दिनों में इसका अन्त भी उतनी ही लचरता से विफ़लता के स्वरूप में हुआ. लेकिन जो लोग इसकी विफ़लता के ज़िम्मेदार थे, जिन्होंने सरकार से समझौता किया, उनकी आँखों में नई चमक दिखाई देने लगी थी, स्वयम के राजनैतिक भविष्य को लेकर. अप्रत्यक्ष रूप से अन्ना हज़ारे पृष्ठभूमि तैयार कर ही चुके थे, स्वर्णिम अवसर था और उस स्वर्णिम अवसर को बस भुनाना बाक़ी था. अन्ना हज़ारे अपने गाँव-अपनी कर्मस्थली “रालेगण सिद्धि-महाराष्ट्र” वापस जा चुके थे, शेष रह गई थीं तो बस उम्मीदों की आस लगाए लाखों आँखे जो शायद अन्ना के वापस चले जाने के बाद, आन्दोलन के दौरान उनके साथियों में आशा की नई किरण तलाश रही थीं.
जैसा कि अक़्सर होता है, शुरुआत में तो राजनैतिक दल बनाये जाने की किसी भी सम्भावना से साफ़ इंकार किया गया लेकिन बाद में जनता की तीव्र माँग का हवाला देते हुए आख़िरकार पार्टी बना ही ली गई. आन्दोलन के दौरान जुड़ें लाखों लोगो विशेषकर युवाओं का बेहतरीन सहयोग भी मिला साथ ही मिली चुनावों में भारी सफलता. आशा के विपरीत, अप्रत्याशित रूप से दिल्ली की सत्तर विधानसभा सीटों में से अठ्ठाईस पर विजय प्राप्त हुई. सत्ता पर नज़रें तो गढ़ी हुई थीं लेकिन किसी का समर्थन भी ज़रूरी था. इतने में कॉंग्रेस की ओर से ही परोसी हुई थाली की तरह, समर्थन की पेशक़श आ गई. अँधा क्या चाहे दो आँखें मानों उसकी तो मुँहमाँगी मुराद ही पूरी हो गई. पहले तो सशर्त समर्थन लेने का नाटक किया गया, अन्ततः बच्चों की क़सम को ताक पर रख कर, सरकार बनाने की जनता की पुरज़ोर माँग का हवाला देते हुए उसी कॉंग्रेस से समर्थन ले लिया गया जिसे जन आन्दोलन के दौरान पानी पी-पी के कोसा गया था, देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार बताया गया था.
बहरहाल, सत्ता और पॉवर की भूख अभी शान्त नहीं हुई थी. लोकसभा चुनावों की सुगबुगाहट से सत्ता और पॉवर की एक नई गन्ध आने लगी थी, केन्द्र की सत्ता और पॉवर की. महत्वाकांक्षाएँ अब बलवती होने लगीं थीं. शायद ये विश्वास भी था कि लगभग पचास सीटें आ जाएँगीं और लोकसभा त्रिशंकू होगी. ऎसी स्थिति में केन्द्र की राजनीति को प्रभावित करते हुए “ब्लैकमेलिंग” हेतु ये स्वर्णिम अवसर है. इसी विश्वास के बलबूते दिल्ली की जनता और सत्ता को मँझधार में छोड़कर “क़ुर्बान अली” बनने का प्रयास करने के साथ-साथ ठीकरा कॉंग्रेस-बीजेपी पर फ़ोड़ते हुए लोकसभा चुनाव लड़ा गया लेकिन इस बार आशा के विपरीत सवा चार सौ से ज़्यादा सीटों पर ज़मानत ज़ब्त हो गई.
अब तो हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो गई, ना घर के रहे ना घाट के. छटपटाहट बढ़ने लगी, हाथ से फिसली हुई दिल्ली की सत्ता फ़िर याद आने लगी. स्वच्छ-साफ़ सुथरी-ईमानदार-पारदर्शी राजनीति के जुमले, जुमले मात्र से होकर कहीं दूर पीछे छूटते चले गये. काँग्रेसी विधायकों को तोड़ने की यथासम्भव कोशिशें की जाने लगीं, धर्म-जातिगत आधार पर भी जोड़-तोड़ की बातें की जाने लगीं. बहरहाल, सफ़लता नहीं मिली.
अन्ततः दिल्ली चुनावों की घोषणा हुई. एक और चाल चली गई. नारे और पोस्टर लगे “केन्द्र में मोदी, दिल्ली में केजरीवाल”. लुभावने वादों की झड़ी लगा दी गई. कार्यकर्ताओं, विशेषकर युवा कार्यकर्ताओं ने अभूतपूर्व जोश और उत्साह के साथ पूरी लगन से जी तोड़ मेहनत की. दिल्ली के हर घर में घर-घर में गए, उनन्चास दिनों के बाद सरकार छोड़ने के लिए हाथ जोड़कर माफ़ी माँगते हुए एक मौक़ा और दिए जाने की विनम्र विनती की. दूसरी ओर बीजेपी द्वारा, पन्द्रह सालों से विपक्ष में होते हुए भी पार्टी के लिए जी-जान लगा देने वाले वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर ऐन मौक़े पर बाहरी व्यक्ति को मुख्यमन्त्री का प्रत्याशी बनाया जाना भी पार्टी के कार्यकर्ताओं-नेताओं के साथ-साथ दिल्ली की जनता को भी हजम नहीं हुआ. परिणाम आये. इतनी ज़बर्दस्त सफ़लता पहले किसी को नहीं मिली थी. दिल्ली की जनता ने एक बार फ़िर भरोसा करते हुए सत्तर में से सड़सठ सीटें झोली में डाल दीं. युवाओं के अथक कठोर परिश्रम को दरकिनार करते हुए, इस अभूतपूर्व सफलता का सारा श्रेय अकेले एक आदमी ने लूट लिया.
अब उस आदमी का मक़सद पूरा हो चुका था. दिल्ली की सत्ता पाँच साल के लिए उसकी झोली में आ चुकी थी. अब उसे किसी से कोई मतलब नहीं था. हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित देश के विभिन्न राज्यों में स्थानीय सरकारों से जमकर लोहा लेते हुए, मन में उम्मीदों और आँखों में आशा की किरणें सँजोए, पार्टी के लिए जी-जान लगा देने वाले लाखों कार्यकर्ताओं पर कुठाराघात करते हुए, उस आदमी ने किसी भी राज्य में कोई भी चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी. हवाला दिया, दिल्ली को मॉडल बनाना चाहता हूँ, दिल्ली पर पूरा ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूँ. भई बहुत ख़ूब !!!! पहले जिस तरह उनन्चास दिनों बाद दिल्ली की जनता को मँझधार में छोड़ा था, अब बेचारे लाखों कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया. देश भर में पार्टी से जुड़े वो बेचारे लाखों कार्यकर्ता अब कहाँ जाएँ ? कहाँ गुहार लगाएँ ? ख़ुद तो राजधानी का मुख्यमन्त्री बनकर पाँच साल तक सत्ता सुख भोगो, कार्यकर्ता जाएँ भाड़ में. श्रीमान जी को अब किसी से कोई मतलब नहीं. उनका स्वार्थ पूरा हो चुका है. सत्ता हासिल करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद जैसे तमाम हथकण्डे किस तरह अपनाए जाते हैं, कोई इनसे सीखे. अपने आप को राजनीति में नया-नवेला-नौसीखिया बताने वाला दरअसल राजनीति का शातिर-माहिर खिलाड़ी निकला.
महत्वाकांक्षा की ललक अभी बुझी नहीं है साथ ही काशी में मोदी से हार, लोकसभा में साढ़े चार सौ से भी ज़्यादा सीटों पर ज़मानत ज़ब्ती जैसी भीषण हार का मलाल भी मिटा नहीं है. दरअसल केजरीवाल स्वयं को मोदी की बराबरी पर देखते हैं. वो हमेशा यही चाहते हैं कि उनकी तुलना सिर्फ़ और सिर्फ़ मोदी से की जाए. लेकिन मन ही मन वो ये भी जानते हैं कि मोदी का ग्राफ़ उनसे बहुत-बहुत ऊँचा है. अब यदि मोदी की बराबरी करनी है तो दो ही रास्ते हैं, या तो दिल्ली में अभूतपूर्व और ऐतिहासिक कार्य करके दिखाए जाएँ जो कि बिना केन्द्र सरकार से समन्वय बैठाए सम्भव नहीं है और अपने अहंकार के चलते केजरीवाल को गवारा भी नहीं है. या दूसरा रास्ता ये अपनाया जाए कि लगातार हमले करके झूठे-मनगढ़न्त आरोप लगाकर मोदी की छवि को धूमिल करने या उनका ग्राफ़ नीचे गिराने के निरन्तर प्रयास किये जाएँ, जो वो अभी तक तो अकेले करते आ ही रहे थे लेकिन अब सारी नैतिकता को ताक पर रखकर घोर मोदी विरोधियों, मोदी से ईर्ष्या-द्वेष रखने वालों से साँठगाँठ भी शुरू कर दी है. मन में पनपती महत्वाकांक्षा भी इसके पीछे है कि शायद मोदी विरोधी मोर्चे के मुखिया बनकर अगली बार प्रधानमन्त्री पद की दावेदारी ही प्रस्तुत कर दी जाए, जो कि अब केजरीवाल का परम-एक मात्र और अन्तिम लक्ष्य है.
मोदी से बौखलाए केजरीवाल ने गुजरात में अस्थिरता लाने हेतु हार्दिक पटेल के रूप में मोहरा ढूँढा और अपने गुजरात दौरे के समय हार्दिक के साथ मिलकर पटेल-पाटीदार आरक्षण की आग लगाने की साज़िश रची. इस आग में अब तक नौ लोग जलकर भस्म हो चुके हैं और सैंकड़ों झुलसे पड़े हैं. इस सबके ज़िम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ केजरीवाल हैं जो अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा और स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, निर्दोष लोगों की जानें दाँव पर लगा सकते हैं.
नक़ली खाँसी, बनावटी हँसी, अपने आप को एकदम सीधा-सादा-सज्जन-नेक- भला मानुस साबित करने की कोशिश में दबी हुई धीमी आवाज़ में बोलना, सहानुभूति बटोरने की हर सम्भव कोशिश करना, मीडिया और सुर्ख़ियों में बने रहने के निरन्तर प्रयास करना, जानबूझकर मुकेश अम्बानी सहित बड़े-बड़े लोगों पर निराधार आरोप लगाकर जनता का ध्यान आकर्षित करते रहना. इसे कहते हैं “राजनीति” जो वाक़ई राजनीति के पुराने चावल कहे जाने वाले धुरन्धर राजनेताओं को भी सीखने की ज़रूरत है.
अभी तो इस आदमी को ऑडियो टेप में बुरे वक़्त के अपने ही पुराने साथियों को गालियाँ बकते सुना है, अभी तो सत्ता के लिए कॉंग्रेसी विधायकों को तोड़ने की बात करते ही सुना है, अभी तो सत्ता के लिए धर्म-जाति (मुस्लिम) के आधार पर विधायकों को तोड़ने की बात करते ही सुना है. इन्तज़ार कीजिए, शायद झूठ-फ़रेब-स्वार्थ और मक्कारी की बहुत सी परतें खुलेंगीं, कुछ लोगों की आँखों पड़ा झूठ का पर्दा भी शायद धीरे-धीरे खुलने लगेगा. अभी तो लोगों ने लोगो और कार ही माँगे हैं अब भरोसे के टूटने का हिसाब भी मांगेंगे.

१. केजरीवाल ने अन्ना जी को धोख़ा दिया और अपने फ़ायदे-अपने स्वार्थ के लिए उस नेक इन्सान का इस्तेमाल किया
२. केजरीवाल ने योगेन्द्र यादव, प्रो. आनन्द कुमार, अजीत झा, अँजली दमानिया, कैप्टेन गोपीनाथ जैसे नेक और ईमानदार लोगों को पार्टी से दरकिनार कर दिया
३. केजरीवाल ने बुरे वक़्त के अपने ही पुराने साथियों के लिए अभद्र-अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया
४. केजरीवाल ने आआपा को अपनी जागीर या एकाकी निर्णय वाली पार्टी बना डाला है जिसमें उसकी जी-हुज़ूरी करने वाले चमचों के आलावा और किसी का स्थान नहीं. आवाज़ उठाने वाले को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है
५. केजरीवाल ने सत्ता हासिल करने के लिये सारे सिद्धांतों-आदर्शों को ताक पर रखते हुए, ना केवल अनैतिक रूप से चोरी छुपे, कॉंग्रेस जैसी भ्रष्ट पार्टी से साँठ-गाँठ करने की कोशिश की बल्कि मुस्लिम वोटों-विधायकों और धर्म आधारित राजनीति करने की कोशिश भी की
६. केजरीवाल को अब पाँच साल तक केवल सत्ता-सुख भोगने के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दे रहा है
७. केजरीवाल ने देश भर में पार्टी से जुड़े लाखों कार्यकर्ताओं को अपनी इस घोषणा से धोख़ा दिया कि अब पार्टी कहीं कोई चुनाव नहीं लड़ेगी
८. केजरीवाल, ऊपर से तो बहुत सच्चा-भोला-नेक-मासूम बनने का ढोंग करते हैं लेकिन असलियत में झूठे-धोखेबाज़-पल्टीबाज़ और सत्ता के लालची हैं
९. केजरीवाल ने अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिये गजेन्द्र की बलि चढ़ा दी
१०. केजरीवाल ने एक महिला का जीवन बर्बाद करने वाले और महिला आयोग और उस महिला से भागते फ़िरने वाले अपने निकटतम सहयोगी कुमार विश्वास, आधी रात को महिलाओं के घर में घुसने वाले और पत्नी को पीटने वाले “आप”के विधायक और पूर्व मन्त्री सोमनाथ भारती, पत्नी को पीटने वाले आआपा कार्यकर्ता और “आप”की विधायक राखी बिड़लान के भाई, फ़र्ज़ी डिग्रीधारी “आप”के विधायक और पूर्व मन्त्री जीतेन्द्र तोमर, धोखाधड़ी के आरोपी “आप”के विधायक मनोज कुमार, सरकारी अधिकारियों ऑन ड्यूटी पीटने वाले “आप”के विधायक नरेश बाल्यान, “राशनकार्ड” बनवाने हेतु महिलाओं का यौन शोषण करने वाले “आप”के विधायक सन्दीप कुमार, स्वयं के घर-परिवार की महिला का शोषण करने वाले “आप”के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान, नगरीय निकाय चुनावों में टिकिट का प्रलोभन देकर बलात्कार के आरोपी एवं “आप”की विधायक राखी बिड़लान के पिता पर कोई कार्यवाही नहीं की
११. केजरीवाल ने स्वयं तथा अपनी पार्टी के विधायकों के लिये सुरक्षा-गाड़ी-अन्य सुख सुविधाएँ नहीं लेने की बात कही थी लेकिन आज न केवल उन्होंने सुरक्षा-गाड़ी और अन्य सुविधाएँ ले रखी हैं बल्कि उनके विधायकों ने भी नई-चमचमाती गाड़ियाँ और अन्य सुविधाएँ ले रखी हैं. यहाँ तक कि केजरीवाल ने बीस विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर और कुछ नेताओं को कैबिनेट स्तर का दर्जा देकर विशेष सुविधाएँ प्रदान कर रखी हैं
१२. केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से वादा किया था कि टैक्स में कमी करके महँगाई कम की जायेगी लेकिन अब धोख़ा देते हुए वैट बढ़ाकर डीज़ल-पेट्रोल के दाम बढ़ा दिये जिससे अन्य सभी वस्तुओं के दाम बढ़ गए, महँगाई बढ़ गई. केजरीवाल की दलील है वैट की दरें समान करने के लिये पड़ौसी राज्यों की सहमति से ऐसा किया गया, पड़ौसी राज्यों की सहमति बनाकर वैट की दरें घटाई भी तो जा सकती थीं ? टीवी-समाचार पत्रों में “केजरीगान” के लिये ५२६ करोड़ जुटाने हेतु जनता की जेबों पर डाका डालने की क्या ज़रूरत थी ?
१३. केजरीवाल, अपनी नाकामियों को छुपाने और उनका ठीकरा दूसरे के सर फोड़ने के लिए आये दिन टकराव-तानाशाही-अड़ियलपन की राजनीति करते हुए दिल्ली की जनता के साथ खिलवाड़ करते हैं
१४. केजरीवाल ने आज तक झूठ और बनावट का आवरण ओढ़कर, नेक-ग़रीब-भोला-मासूम-बेचारा बनने का ढोंग करते हुए आज तक दिल्ली की जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया
१५. जो व्यक्ति सत्ता हासिल करने के लिये अपने बच्चों तक की झूठी कसम खा सकता है, विधायकों को तोड़ने की बात कर सकता है, मुस्लिम विधायकों की राजनीति कर सकता है, अपने पुराने और सुख-दुःख के साथियों के लिये अभद्र-अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर सकता है, अपने स्वार्थ के लिये किसान गजेन्द्र की बलि चढ़ा सकता है, अपने युवा कार्यकर्ताओं का श्रेय अकेले लूट सकता है, क्या वो रत्ती भर भी भरोसे के लायक़ है ?
केजरीवालजी से कुछ बेहद अहम् और बुनियादी सवाल:
१. “आप”ने नोटबन्दी के ख़िलाफ़ विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया, जब दिल्ली को डेंगू और चिकनगुनिया ने बुरी तरह जकड़ रखा था, तब आपने विधानसभा का विशेष सत्र क्यों नहीं बुलाया ?
२. उस वक़्त आप गोवा-गुजरात-पंजाब के दौरों पर क्या कर रहे थे ?
३. दिल्ली में अब तक कितने सीसीटीवी कैमरे लग चुके हैं ?
४. आपके वादे के मुताबिक़, महिलाओं की सुरक्षा के लिये दिल्ली की बसों में १४०००० में से कितने होमगार्ड्स की नियुक्ति की गई है ?
५. दिल्ली में अभी तक कितने स्कूल-कॉलेज खोले जा चुके हैं ?
६. दिल्ली में अब तक कितने अस्पताल खोले जा चुके हैं ?
७. दिल्ली चुनाव के पहले आपने जनता से झूठ क्यों बोला कि आप दिल्ली के आलावा कहीं और चुनाव नहीं लड़ेंगे ?
८. दिल्ली चुनाव के पहले आपने जनता से झूठ क्यों बोला कि “आप”के सभी ७० प्रत्याशी साफ़सुथरी छवि के हैं, जिसकी जाँच स्वयं आपने की है ?
९. क्या आप डॉक्टर नारंग के घर इसीलिये नहीं गए क्योंकि उनकी ह्त्या समुदाय विशेष के लोगों ने की थी और आपको अपने “वोटबैंक” के टूटने का डर था ?
१०. आपने एक महिला का जीवन बर्बाद करने वाले और महिला आयोग और उस महिला से भागते फ़िरने वाले अपने निकटतम सहयोगी कुमार विश्वास, आधी रात को महिलाओं के घर में घुसने वाले और पत्नी को पीटने वाले “आप”के विधायक और पूर्व मन्त्री सोमनाथ भारती, पत्नी को पीटने वाले आआपा कार्यकर्ता और “आप”की विधायक राखी बिड़लान के भाई, फ़र्ज़ी डिग्रीधारी “आप”के विधायक और पूर्व मन्त्री जीतेन्द्र तोमर, धोखाधड़ी के आरोपी “आप”के विधायक मनोज कुमार, सरकारी अधिकारियों ऑन ड्यूटी पीटने वाले “आप”के विधायक नरेश बाल्यान, “राशनकार्ड” बनवाने हेतु महिलाओं का यौन शोषण करने वाले “आप”के विधायक सन्दीप कुमार, स्वयं के घर-परिवार की महिला का शोषण करने वाले “आप”के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान, नगरीय निकाय चुनावों में टिकिट का प्रलोभन देकर बलात्कार के आरोपी एवं “आप”की विधायक राखी बिड़लान के पिता इन सभी पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की ?
११. भ्रष्टाचार के आरोप में जेलयात्रा कर चुके लालूजी के बारे में आपकी क्या राय है ?
१२. २५०० करोड़ के शारदा चिट फण्ड घोटाले पर ममताजी और TMC के बारे में आपकी क्या राय है ?
१३. आपने जनलोकपाल को सशक्त बनाने के लिये अब तक क्या किया ?
१४. राईट टू रीकॉल का क्या हुआ ?
१५. आपने अपनी पार्टी की वेबसाईट से पार्टी को चन्दा देने वालों की लिस्ट क्यों हटा ली ?
१६. सत्ता के लालच में अपने बच्चों की क़सम तक क्यों तोड़ डाली ?
१७. ४०० करोड़ के काले-सफ़ेद घोटाले (सत्येन्द्र जैन के माध्यम से) पर “आप”की क्या सफ़ाई है ?
१८. अपने चुनाव प्रचारों-विज्ञापनों पर खर्च की गई जनता के ख़ून-पसीने की कमाई के ९७ करोड़ कब लौटा रहे हैं ?
१९. “आप”के महँगे इलाज के लिये जनता के ख़ून-पसीने की कमाई क्यों लुटाई गई ? वो राशि आप कब लौटा रहे हैं ?
२०. क्या आपको “आप” मोहल्ला क्लीनिकों, दिल्ली के अस्पतालों, दिल्ली के डॉक्टरों पर विश्वास नहीं ?
२१. आने वाले समय में आप गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनाव लड़ेंगे या दिल्ली की जनता पर भी कोई “उपकार” करेंगे ?
केजरीवाल, हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार इत्यादि तो मीडिया के कुछ मोदी-भाजपा विरोधी लोगों और विपक्ष की अवैध और अनावश्यक उपज हैं जिन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ सरकार के कामकाज़ को रोकने, संसद ना चलने देने, अड़ंगे लगाने-रोड़े अटकाने के लिये जानबूझकर बढ़ावा दिया जा रहा है.
बलात्कार, भ्रष्टाचार, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, फ़र्ज़ी डिग्री, सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों से मारपीट सहित अनेक मामलों में आआपा के विधायक-पूर्व मन्त्री गले तक धँसे हुए हैं. केजरीवालजी अपने झूठे वादों, छल-कपट, हमेशा नेक-ग़रीब-भोला-मासूम-गऊ बनने की नौटंकी, पल्टीबाज़ी, दिल्ली की जनता से धोखाधड़ी के लिये कुख़्यात हो चुके हैं.
अरविन्द केजरीवाल ने नोटबन्दी के ख़िलाफ़ विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया. मैनें उन्हें भारत के मुख्यमन्त्री कहकर इसलिये सम्बोधित किया क्योंकि ये अब तक के देश के एकमात्र मुख्यमन्त्री हैं जो अपने राज्य दिल्ली को छोड़कर सारे देश की या ये कहें कि भाजपा शासित राज्यों की चिन्ता करते हैं.

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