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क्रिकेट, कबीर और गुलजार

शहर-दर-शहर
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मोहाली का माहौल दिल की धड़कनों में धड़क रहा था। क्रिकेट से आशिकी न होने के बावजूद भी ईएसपीएन क्रिकइनफो पर आंखें टिकी थी। टीवी स्क्रीन से दूरी बना रखा था ताकि अंखिया सग मन की दूरी बनी रहे। सचिन के रनों की संख्या जोड़ रहा था। ऑफिस भी मोहाली स्टेडियम की तरह क्रिकेट में रमा था। काम से थोड़ी दूरी बनाए रखने की वजह से तमाम वेबसाइट्स की गलियों में दस्तक दे रहा था।

भारत और पाकिस्तान के बीच हो रहे मैच के प्रति लोगों की सोच अजीब होती है। सभी की आंखों में अजीब सी चमक नजर आ रही थी, वहीं मैं कबीर, फैज अहमद फैज और गुलजार में खोया था। यूट्यूब पर गुलजार बोल रहे थे- “आंखों को वीजा नहीं लगता, सपनों की सरहद नहीं होती, बंद आखों से रोज मैं सरहद पार चला जाता हूं मिलने मेंहदी हसन से।“ गुलजार को सुनते हुए लग रहा था मैं भी पड़ोस के मुल्क में अजहर मियां के यहां चाय पी रहा हूं। अजहर मियां से मेरी मुलाकात किशनगंज में हुई थी। वे लाहौर में रहते हैं। किशनगंज के ईरानी बस्ती पर डॉक्यूमेंट्री बनाने वे पहुंचे थे। तब मैं दसवीं में पढ़ाई कर रहा था। बस आधे घंटे की मुलाकात में उन्होंने मुझे लाहौर की गलियों में पहुंचा दिया था। आज गुलजार को सुनते हुए अजहर चाचा याद आ गए। मैं भी गुनगुनाने लगा सपनों की सरहद नहीं होती….

क्रिकेट एडिक्ट न होने के बावजूद भी सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी से इश्क है। उनके शतकों पर नजर टिकी रहती है। मोहाली में वे 85 रन बनाकर पवेलियन लौट गए। मैं निराश हुआ, काश वे शतक ठोंक पाते। उन्हें अजमल भाई ने अफरीदी भाई के हाथों कैच करवाया। खैर, क्रिकेट जारी है, दोनों मुल्कों के वजीर-ए-आला भी नजर-ए-इनायत कर रहे हैं।

इकबाल बानो की गायकी से मुहब्बत रखने वाले जानते हैं कि फैज उनके पसंदीदा शायर थे। इस विद्रोही शायर को जब जिया उल हक की फौजी हुकूमत ने कैद कर लिया, तब उनकी शायरी को अवाम तक पहुंचाने का काम इकबाल बानो ने खूब निभाया था। अपने मुल्क को भी करप्शन खा रहा है। लोकपाल बिल के समर्थन में पांच अप्रैल से समाजसेवी अन्ना हजारे अनशन पर जा रहे हैं। ऐसे में मुझे फैज की शायरी याद आ रही है। यूट्यूब के सहारे इकबाल बानो की आवाज में हम देखेंगे लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन कि जिसका वादा है.. सुनने लगा। इसे सुनते हुए खो चुका था।

दरअसल जब हम एक साथ कई चीजों को आजमाते हैं तो खुद के साथ एक्सपेरिमेंट करने का सबसे अधिक मौका मिलता है। हम खुद को जान पाते हैं कि हम कहां हैं और कहां तक जा सकते हैं। कबीर के दोहे का ख्याल आया। कबीर के दोहों को जगजीत सिंह के अलावा आबिदा परवीन ने भी आवाज दी हैं। मैं कबीर में खोना चाहता था, यूट्यूब ने साथ दिया। मैं बुदबुदाने लगा, पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर…दुर्लभ मानुष जन्म है…., पक्का फल जो गिर पड़ा लगे न दूजी बार..काशी काबा एक है एक है राम रहीम…… अच्छे दिन पीछे गए…. अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत…

भारतीय बल्लेबाज मोहाली में स्कोर बोर्ड पर रन जोड़ने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे। 42 ओवर में छह विकेट के नुकसान पर 205 रन ही जुटा सका था। लगता है क्रिकेट प्रेमियों के लिए आज की रात कयामत की रात होगी।

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