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मोदीजी सही ट्रेक पर आईए भाई – गिरीश नागड़ा

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मोदीजी सही ट्रेक पर आईए भाई – गिरीश नागड़ा
मोदी सरकार का रेल बजट ,उम्मीद थी दृष्टि होगी,संवेदना होगी ,जो गल्तियां पूर्व की सरकारे करती रही थी उनसे ना केवल बचा गया होगा बल्कि उनको कठोरता पूर्वक ठीक किया गया होगा परन्तु यह क्या वही ढ़ांक के तीन पात ? मुझे सचमुच बहुत गहरी निराशा हुई है क्योकि मुझे आशा थी अपेक्षा थी कि मोदीजी समस्या को उसके मूल स्वरुप को उसकी जड़ को समझते है आज ईश्वर ने उन्हे अवसर भी दिया है इसके लिये पूरी तरह से सक्षम भी बनाया है और उन्होने यह कैसा उदाहरण पेश कर दिया,जो पूर्व सरकारे करती थी वही काम आपकी सरकार ने कर दिया जो यह जानती ही नही थी कि समस्याओ का मूल स्वरुप क्या है या समस्या के मूल स्वरुप को उसकी जड़ से ठीक करने मे उनकी कोई रूचि ही नही थी लेकिन आपकी रूचि तो थी फ़िर ये गलत ट्रेक पर कैसे निकल पढ़े ?
क्या है मोदीजी आपका सही ट्रेक
मोदीजी आपका सही ट्रेक है देश की जनता की सही मूलभूत समस्या को बिना किसी लाग लपेट के उसके मूल सच्चे स्वरुप मे देखकर समझने का प्रयास कर, उसे जड़ से ठीक करना
रेल्वे मे मूलभूत समस्या क्या है और आपने क्या देखी
रेल्वे मे मूलभूत समस्या है आम जनता को यात्रा की मूलभूत सरल सुविधा ही नही है ,आम आदमी को रेल मे पैर रखने का भी स्थान नही है
आपने रेल्वे मे समस्या क्या देखी,
कम स्पीड़ की ट्रेन , बुलट ट्रेन, ए.सी.ट्रेन ,महानगर से महानगर दौड़ने वाली ट्रेन ,खान पान की उच्च स्तरीय व्यवस्था, विश्वस्तरीय प्लेटफ़ार्म आदि आदि की आवश्यकता ! इन समस्याओ मे से एक भी समस्या ऐसी नही है जिसका आम आदमी की यात्रा करने की मूलभूत आवश्यकता से कोई तुलना की जा सकती है ?
क्या किया जाना अपेक्षित है और अगर यह भारतीय जनता की सरकार है तो यह किया ही जाना चाहिये
विकसित देशो की अंधी नकल से बाज आना चाहिए और खास नही आम आदमी की समस्या पर अपना सारा ध्यान और शक्ति लगाना चाहिए और ए.सी.,बुलट ट्रेन और फ़ास्ट ट्रेन महानगर से महानगर दौड़ने वाली ट्रेन और सामान्य ट्रेनो के सारे ए.सी ,प्रथम श्रेणी पूरी तरह से बंद कर उन्हे सामान्य श्रेणी कर दिया जाना चाहिए |
क्या है क्या किया जाना आवश्यक है कृपया यह नीचे विस्तार से मेरे लेख मे पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया मुझे तो दे ही साथ ही सरकार को भी बताये यह कार्य एक पोस्टकार्ड़ लिखकर भी किया जा सकता है | यह लेख पिछले रेल बजट के समय लिखा था मोदी सरकार के आने के बाद उम्मीद थी कि इसकी आवश्यकता नही होगी परन्तु वर्तमान बजट ने यथास्थिति को उसी मानसिकता को आगे बढ़ाया यह देखकर भारी दुख हुआ और उसी लेख को पुनः संशोधित कर प्रस्तुत कर रहा हूँ क्योकि यह आज भी उतना ही बल्कि उससे कही अधिक प्रासंगिक और आवश्यक लग रहा है –
मेरा आज इन्दौर से हावडा जाना बेहद जरूरी है और मेरे पास रिजर्वेशन नही है ,सामान्य बोगी जिसे जनरल भी कहा जाता है उसमें पैर रखने की भी जगह नही है, प्रथम श्रेणी वातानुकूलित में या हवाई यात्रा करना मेरे बस में नही है एक पैर पर शोचालय मे खडे होकर इतनी लंबी यात्रा के अनुकूल स्वास्थ्य नही है ,फिर मै क्या करुंगा ? क्या करुंगा, अपनी यात्रा रद्द करने के अलावा मेरे पास और कोई विकल्प ही नही है वही मै करुंगा । और बेहद जरूरी कार्य के न कर पाने की हानि उठाउंगा और शर्मिन्दगी झेलूंगा बस इसके अलावा और क्या कर सकता हूं ? मै सोचता हूं कि मेरी भी प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरी होती तो मै भी मुफ्त के पास पर ए सी मे आराम से सफर कर पाता ।
अगर समूची ट्रेन सामान्य बोगी की होती तो मुझे किसी न किसी बोगी में पैर रखने की जगह तो मिल ही जाती और मै इस हानि और शर्मिन्दगी से भी बच जाता । मेंरे जैसे जाने कितने ही लोग है ,जो इस परिस्थिति से प्रतिदिन दो चार होकर, परेशान और विवश होते है और उनके पास भी मेरी तरह से कोई विकल्प नही होता है । कहते है प्रजातंत्र में सबसे अधिक विकल्प मौजूद होते है परन्तु भारत मे हम देखते है कि आम प्रजा के लिए ही कहीं कोई विकल्प मौजूद ही नही होता जो जैसा है यही उनका भाग्य है या कहे दुर्भाग्य है और इसी विवशता के साथ उन्हे निर्वाह करना है। तभी तो आजतक देश का आम आदमी कहता आया है कि इस देश का कोई माँ बाप ही नही है आप इस स्थान को भरेंगे इस दृढ़ विश्वास के साथ तो देश के आम आदमी ने भारी समर्थन से आपको जिताया है फ़िर भी ऐसा क्यो है यह आपको गंभीरता के साथ सोचना चाहिए। रेल्वे मे भी ऐसा ही है रेलमंत्री को भी इस विषय में सोचना चाहिए कि आम जनता की सामान्य बोगी की यात्रा को सुखद और सुविधापूर्ण बनाने के बारे में आज तक कभी विचार क्यो नही किया गया?
भारत मे शासन चाहे किसी भी दल का हो किसी भी प्रधानमंत्री ने, रेलमंत्री ने आज तक आम जनता के बारे में कभी सोचा ही नही, न ही कभी उनकी कोई परवाह की है। प्रश्न यह है कि आम जनता की सामान्य बोगी की यात्रा का आज तक कभी विचार क्यो नही किया गया क्यो आम जनता की यात्रा की इतनी गंभीर उपेक्षा की गई ? दस प्रतिशत रेल का स्थान नब्बे प्रतिशत आम जनता के लिए क्यो रखा जाता है और नब्बे प्रतिशत स्थान दस प्रतिशत खास लोगो के लिए क्यो रखा जाता है ? और अस्सी प्रतिशत रेले खास रेल्वे स्टेशनो के लिए और बीस प्रतिशत रेले अस्सी प्रतिशत स्टेशनो के लिए क्यो तय है ? सारा ध्यान राजधानी दुरन्तो आदि एसी गाडियो पर और बडें बडे रेल्वे स्टेशनो पर ही क्यो केन्द्रित रहता है ? क्या प्रजातंत्र में प्रजा की यात्रा को कष्ट साध्य मुश्किलो भरा बनाकर मोटी तन्खाह वाले खास एंव धनवानो की सुखद यात्रा के लिए प्रजा के पैसो से ट्रेने चलाना उचित है ? सच पूछा जाये तो प्रजातंत्र मे शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता देना उस सेवा का पूरी तरह से दुरूपयोग करना कहा जायेगा बल्कि यह तो प्रजातंत्र मे आम प्रजा के अधिकारो पर डाका डालने जैसा मामला है, रेल्वे के मामले में शासन यही तो कर रहा है इस मामले में न्यायालय को भी संज्ञान अवश्य ही लेना चाहिए । आज सभी जानते है कि आम रेल यात्रा कितनी अधिक कठीन हो गई है उसमे स्थान पाना तो किसी चमत्कार से कम नही होता ।
ए.सी.एवं प्रथम श्रेणी की ट्रेन चलाना उनके ही विकास और विस्तार पर अपना फ़ोकस रखना तो बहुत ही गलत बात है ही परन्तु किसी भी ट्रेन में प्रथम श्रेणी और ए.सी. की एक भी बोगी रखना भी पूरी तरह से अनुचित है ,यह पूरी तरह से बंद होना चाहिए । कैसे कब और क्यो राजधानी और दुरन्तो जैसी ट्रेने रेल्वे में शामिल कर ली गई और अब बुलट ट्रेन को लक्ष्य बनाया बताया जा रहा है,दुनिया के विकसित और विकासशील देशो को देखकर आपको शर्मिन्दगी होती होगी यह ठीक बात है ,परन्तु सबका साथ सबका विकास को क्यो भूल रहे हो भाई ! आप यह क्यो भूल रहे हो कि हम हम दया, करुणा, अहिंसा,सहिष्णुता की थाती के आधारस्तम्भ संवेदनशील देश है कोई नकल्ची बन्दर नही कि दूसरो के महल देखकर अपने झोपड़ो मे आग लगा लेने की मूर्खता का इस तरह से परिचय दे | किसी भी नेता या दल के भी द्वारा इस सरओम डकैती के प्रयास का विरोध तक नही किया जाता यह बेहद आश्चर्यजनक और दुखद है । विकास हो और सबको आरामदायक सुख सुविधा मिले यह तो अच्छी बात है परन्तु आम और बहुसंख्यक जनता को कष्ट में रखकर उनकी छाती पर खडे होकर तो इसकी अनुमति कदापि नही दी जानी चाहिये | जब तक आप आम जनता की आम प्राथमिक यात्रा को कष्ट रहित एवं सरल नही कर देते तब तक ट्रेन सहित शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता देना उस सेवा की पूरी तरह से डकैती करना ही कहा जायेगा । जब तक आम जनता के सम्पूर्ण संबधित कष्ट हल नही हो, तब तक प्रजातंत्र मे यह प्रजा के साथ यह अन्याय अपराध ही माना जाकर, प्रतिबंधित रहना चाहिए ।
दूसरी और महत्वपूर्ण बात कि यह मानकर ही क्यो चला जा रहा है कि यात्रा का अधिकार और सुविधा की केवल शहर के लोगो को ही आवश्यकता है जबकि सत्तर प्रतिशत जनता तो गांवो में ही निवास करती है गांधीजी ने भी कहा है कि भारत की आत्मा गांव में बसती है फिर उनको क्यो इस कदर नजर अंदाज किया गया और लगातार किया जा रहा है । तमाम नेता ताकतवर लोग और मीडिया शहरो मे निवास करता है और वह गांव में तब ही पहुंचता है जब चुनाव होता है या कोई बडी दुर्घटना होती है तो फिर गांवो की आवाज कौन उठायेगा ? होना यह चाहिए कि गांवो की सुविधाओ मे कटौती करने के स्थान पर गांवो को अतिरिक्त रियायत और सुविधा देना चाहिए ताकि गांवो में रहने वालो को भी कुछ अनुकुलता प्राप्त हो और गांव से पलायन की गति कम हो । जबकि आज रियायतो के नाम पर गांवो के साथ उन्हे नजरदांज कर सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। होना यह चाहिए कि हर गांव को पैसेजर ट्रेन के साथ साथ कम से कम एक एक एक्सप्रेस ट्रेन का स्टापेज अवश्य दिया जाना चाहिए । गांव के मामले में स्टापेज के साथ आय के गणित को कदापि नही जोडा जाना चाहिए। हमारा उद्देश्य गांवो को रियायत देकर गांव के साथ शहर की दूरी को कम करना होना चाहिए ।गांव समूचे देश का पालन करते है इसका उन्हे ईनाम मिलना चाहिए जबकि रेल्वे एवं शासन प्रशासन गांवो को सजा देने की नीति पर चल रहे है जो पूरी तरह से गलत है ।
रेल्वे को अपनी भूलसुधार के लिए कुछ आधारभूत सुझाव यहां प्रस्तुत है जिन पर अमल कर रेल्वे अपने चेहरे को प्रजातंत्र के कुछ निकट ला सकता है
1 रेल्वे से कमाई के गणित को दूर रखा जाये जनहित एवं जन सुविधा का ही प्राथमिकता के साथ ध्यान रखा जाना चाहिए
2 भारतीय रेल को और सभी सार्वजनिक सेवाओ को, केवल आम लोगो के लिए पूरी तरह से आरक्षित कर दिया जाना चाहिए
3 रेलो में केवल तीन ही विभाजन हो वह भी दूरी के हिसाब से हो
एक अत्यंत छोटी यात्रा जिसमे सौ किलोमीटर तक की छोटी यात्रा करने वाले अप डाउन करने वाले स्थान उपलब्ध होने पर बैठकर या फिर खडे होकर यात्रा कर सके
छोटी यात्रा के लिए कुर्सीयान अर्थात तीन सौ किलोमीटर तक की यात्रा जिसमे बैठने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाये
तीसरी लंबी यात्रा के लिए शयनयान तीन सौ किलोमीटर से अधिक की यात्रा जिसमे यात्री को शयन करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
4 कोई भी कर्मचारी अधिकारी मुफ्तयात्रा न करे
5 सभी यात्रियो के साथ सम्मानजनक एवं समान व्यवहार किया जाए ।
6 ट्रेन में उतरने और च़ढ़ने के लिए अलग अलग द्वार निर्धारित हो
7 हर बोगी में एक व्यक्ति की डयूटी हो वह ही टिकिट दे यात्रियो को स्थान बताए और उनकी मदद भी करे । आश्यकता होने पर डाक्टर पुलिस या ट्रेन के चालक से सम्पर्क करे ।
8 ट्रेनो में यात्रा का किराया कम से कम होना चाहिए ।
9 गांव से शहर या शहर से गांव की टिकिट पर भारी रियायत दी जाना चाहिए ।
10 रात दस बजे के बाद उतरने वाले यात्रियो को रेल्वे स्टेशन पर रात्री विश्राम /शयन करने की विश्रामघर में सुविधा पूर्ण सुरक्षा के साथ होनी चाहिए ।
11 रेल्वे स्टेशनो पर सुरक्षा शोचालय पानी पेयजल साफसफाई चाय नाश्ता भोजन चिकित्सा आदि की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए वर्तमान में रेल्वे स्टेशनो पर गुंडो का राज रहता है सुरक्षाबल उनसे दोस्ती और वसूली में विश्वास रखता है। साफ सफाई बिल्कुल नही रहती है।और खाने पीने के जो भी खाद्य एवं पेय पदार्थ वहां बेचे जाते है वे एकदम घटिया और मंहगें होते है । इस सब पर न किसी की निगाह होती है न ही नियंत्रण दिखाई देता है यह सब भी देखा जाना चाहिए और इसके लिए स्टेशन मास्टर को जिम्मेदार बनाया व ठहराया जाना चाहिए ।
12 वर्तमान में हमारे ट्रेक पचास किमी प्रति घंटे के हिसाब से बने हुए है और हमारी ट्रेनो की औसत रफ्तार भी यही है हम दुनिया की नकल न करे सदैव यह ध्यान रखे कि आम आदमी की सुविधा रहित यात्रा हो पा रही है या नही यह गति से अधिक प्राथमिकता के साथ अधिक जरूरी है |
13 वर्तमान समय मे इतनी संचार क्रांति के बावजूद रेलो के आने व जाने का बिल्कुल सही समय बताने की कोई व्यवस्था नही है जबकि यह आज कोई बहुत कठीन कार्य नही है ,इसके लिए हमारी कार्यप्रणाली एवं लापरवाही ही जिम्मेदार है । इसे भी ठीक करना चाहिए ।
14 रेल्वे में शिकायत की व्यवस्था होने के बावजूद जनता उसका कोई उपयोग नही कर पाती क्योकि शिकायत करने वाले को स्टेशन मास्टर के दफ्तर में जाना पडता है ,आनाकानी की जाती है ,वहां उसे शिकायत रजिस्टर देने के पहले अनैक सवालो का जवाब देना होता है और फिर शिकायत न करने के लिए समझाया या डराया जाता है कि उसे चक्कर लगाना होगे परेशान होना होगा आदि । अब इसकी जगह एक टोल फ्री नम्बर टिकिट पर अंकित होना चाहिए जिस पर चौबिस घंटे वह अपनी शिकायत दर्ज कर सके और उन शिकायतो पर सतत निगरानी कार्यवाही और कार्यवाही की भी निगरानी होनी चाहिए वह भी समय बद्ध सीमा मे |
15 बुजुर्गो , अपंगो की हर तरह से असरकारक सहायता के लिये विशेष निगरानीपूर्ण व्यवस्था होना चाहिये ।
जो बाते भारतीय रेल को प्रजातांत्रिक बनाने, चलाने के लिए लिखी है वह बाते तंत्र चलाने के लिए भी उतनी प्रासंगिक है क्योकि यह प्रश्न मानसिकता का है ,सही और गलत ट्रेक का है | – गिरीश नागड़ा

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