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जब बहुत सारे लोग किसी बात को गलत ठहराने के लिए एक साथ मिलकर आवाज उठाये तो वहां दो मिनिट रुककर विचार करने की सलाह किसी को भी हजम नही होती है सरकार ,शासन , प्रशासन ,मीडिया ,और नेताओ के गलत को सही ठहराने के अपने अपने अर्थ व् कारण, होते है भीड़ की सुर में सुर मिलाने की प्रवृति भी इसके लिए जिम्मेदार होती है रेत उत्खननको लेकर भी बिलकुल ऐसा ही है सभी प्रदेशो में रेत को खनिज पदार्थ का दर्जा दिया गया है गुजरात और राजस्थान में जहाँ अधिकतम रेत पाई जाती है वहा अधिकतम खनिज कार्यालय खोल कर इस पर नजर एवं नियन्त्रण रखा जाता है
आजकल एक शब्द चला है अवैध उत्खनन माफिया जिसका मुख्य आशय रेत उत्खनन माफिया से है आई पी एस नरेंद्र कुमार की हत्या इसी माफिया ने की है इस हत्या ने इस विषय को और अधिक चर्चित और सम्वेदनशील बना दिया है इस हत्या की सभी ने खूब आलोचना भी की है वास्तव में आई पी एस नरेंद्र कुमार की हत्या बेहद दुखद है मै भी माफियागिरी की बेहद भत्सर्ना करता हूँ देशभर से दुस्साहस समाप्त होना चाहिए कानून और व्यवस्था का सम्मान होना चहिये सभी को इस का पालन करना चाहिए परन्तु रेत उत्खनन को लेकर मेरा मत सर्वथा भिन्न है मेरा यह मानना है कि रेत किसी भी सूरत में खनिज के समतुल्य नहीं माना जाना चाहिए क्योकि शेष सभी खनिज तो बेहद सीमित मात्रा में उपलब्ध है उनकी प्राप्ति बेहद मूल्यवान है और अगर उनका उत्खनन न किया जाये तो समाज और पर्यावरण पर उनका कोई भार नहीं रहता है जबकि रेत असीमित मात्रा में उपलब्ध है और सदा रहेगी रेत उत्खनन के खिलाफ मैंने बहुत से विचार पढ़े है ऐसी काल्पनिक आशंका जाहिर की गई है कि पानी के बहाव के साथ बहकर आने वाली रेत में दिनों दिन कमी हो रही है और वह दिन दूर नहीं जब नदियो में रेत ढूँढे नहीं मिलेगी ऐसी परिस्थिति में कुछ वर्षों बाद रेत बनाने की प्रक्रिया अपनाना होगी।जबकि सच्चाई यह है कि म प्र के पूर्वी निमाड़ ,महाराष्ट्र ,आन्ध्र प्रदेश की कई नदिया रेत से पट कर मैदान बन गई है और नयी रेत न आने के बावजूद उसे खाली करने में वर्षो लग सकते है जबकि हर वर्ष नयी रेत आने ही वाली है मुझे उनमे तथ्यहीन भावुकता के अलावा कुछ नहीं लगता है यह अवश्य हो सकता है कि नदियों के सुविधाजनक घाटो के आसपास रेत न बचती हो और बीच नदी से रेत निकालने के मार्ग सुगम न हो परन्तु रेत कि कमी वाला तर्क गले नहीं उतरता है ट्रेन और बसों में से ही हम अपनी आँखे खोलकर देखे तो पाएंगे कि अधिकांश नदिया रेत से लबालब पटी हुई दिखाई देती है
आज हमारी नदिया रेत से पटी हुई है किसी भी नदी का रेत से पट जाना नदी के मर जाने जैसा है हम देखते है कि देश भर मे तमाम नदी नाले रेत से भरे पड़े है इन उथली नदियों मे पानी को ठहरने का स्थान ही नही बचा है और बाढ़ जैसे हालात के बाद गर्मियों के पहले ही सारी नदिया सूख जाती है और उनमे चारो और रेत ही रेत भरी दिखाई देती है
किसी नदी से रेत निकलने को आज सरकारी भाषा में उत्खनन कहा जाता है उसके ठेकेदारों को ठेके दिए जाते है और उस पर नियंत्रण सरकार द्वारा रखा जाता है और उस पर वे सारे कायदे कानून लागू होते है जो किसी बेशकीमती खनिज के उत्खनन पर लागू होते है उस पर रायल्टी ,टेक्स वसूल किया जाता है जबकि मेरा मानना है कि रेत के उत्खनन पर न तो कोई रायल्टी ली जाना चाहिए न ही कोई टेक्स वसूल किया जाना चाहिए बल्कि रेत को नदी से निकालने को पुरुस्कृत कर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए उसके लिए विशेष योजनाये लागू की जानी चाहिय उदाहरण के तौर पर जो वाहन नदी नाले से रेत निकालने का कार्य करे उसे रोड टैक्स आदि में छूट देना चाहिए सभी भार वाहनों को प्रति माह कम से कम दस वाहन रेत निकालना अनिवार्य किया जाना चाहिए तब उनके परमिट को आगे रिन्यू किया जाना चाहिये हमारी कोशिश यह होनी चाहिए की बरसात के नदियों से अधिकतम रेत निकाल ली जाये क्योकि नदियों में रेत जितनी कम होगी वे उतना अधिक पानी अपने अन्दर रख सकेंगी अगली बारिश में वे पुन:उतनी ही रेत से भर ही जाने वाली है गर्मियों में रेत के स्थान पर जो पानी हमारे पास बचेगा वह रेत की तुलना में लाखो गुना अधिक कीमती होगा इसका दूसरा अर्थ यह होगा कि पानी के स्थान पर रेतभरी नदी हमारे लिए लाखो गुना अधिक नुकसान दायक है नदियों से रेत निकाल कर हम पर्यावरण ,देश व मानवता की सेवा करेंगे
एक बार अटलजी ने कहा था की देश चाहता गति है परन्तु सारी सोच ,व्यवस्था ,नियम गति के खिलाफ है तो हम गति के लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर पाएंगे ?बिलकुल इसी तरह से हम चाहते तो है पानी और पर्यावरण की रक्षा परन्तु हमारी सोच व्यवस्था,कानून इसके खिलाफ है तो हम कैसे इन लक्ष्यो को प्राप्त कर सकेंगे ?
इस दृष्टी से और नये परिप्रेक्ष्य में हम विचार करे तो हमे रेत पर ली जा रही रायल्टी और टेक्सो का मोह छोड़ना होगा और रेत को खनिज की परिभाषा से भी बाहर निकालना होगा रेत निकालने को उत्खनन के स्थान पर नदी की सफाई कह कर सम्बोधित कर प्रोत्साहित करना होगा यही वक्त की मांग है
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