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रेल्वे में,गलतियाँ व उनमे आधारभूत सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव–गिरीश नागडा

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सुधारसुझाव से पूर्व देखे कि वास्तव में गल्ती कहाँ है, क्या है – बड़ी गल्तियां है या जान बूझकर किए जाने वाले अपराध है देखे –
चाहे रेल्वे हो चाहे शासन प्रशासन के अन्य अंग हो हमारी सबसे बड़ी गल्ती या अपराध जो हम करते चले आ रहे है कि हम समस्या की जड़ को न देखते हुए किसी एक शाखा को देखते हुए काम शुरू कर देते है यह हमारी अज्ञानता में भी होता है जानबूझकर भी किया जाता है रेल्वे में भी ऐसा ही लगता है देखे –
भारत मे शासन चाहे किसी भी दल का हो किसी भी रेलमंत्री ने आज तक आम जनता के बारे में कभी सोचा ही नही, न ही कभी उनकी कोई परवाह की है। प्रश्न यह है कि आम जनता की सामान्य बोगी की सुविधापूर्ण यात्रा का आज तक कभी विचार क्यो नही किया गया क्यो आम जनता की यात्रा की इतनी गंभीर उपेक्षा की गई ? दस प्रतिशत रेल का स्थान नब्बे प्रतिशत आम जनता के लिए क्यो रखा है और नब्बे प्रतिशत रेल का स्थान दस प्रतिशत खास लोगो के लिए क्यो रखा है ? अस्सी प्रतिशत रेले खास रेल्वे स्टेशनो के लिए और बीस प्रतिशत रेले अस्सी प्रतिशत स्टेशनो के लिए क्यो तय है ? सारा ध्यान सुपर फास्ट,राजधानी,दुरन्तो,शताब्दी, गरीब रथ (जिसमे कोई गरीब पैर भी नहीं रख सकता) अब बुलेट,टेल्गो,आदि आदि महंगी ए.सी. गाडियो पर और बडें बडे रेल्वे स्टेशनो पर ही क्यो लक्षित व केन्द्रित रखा गया है ?
नई ट्रेन गोरखपुर से नई दिल्ली तक चलाई जाने वाली” हमसफ़र एक्सप्रेस” जो कई लक्झरी सुविधाओं से लेस है चलाई जा रही है ,अहमदाबाद से मुंबई हाई स्पीड बुलट ट्रेन की सिर्फ एक मात्र परियोजना की लागत है लगभग एक लाख करोड़ रूपये ,उस पर कार्य किया जा रहा है यह सब क्या नाटक चल रहा है किस विकृत दिमाग से प्लान किया जा रहा है हम यह क्यों भूल जाते है कि हम पहले से ही भारी भरकम कर्जे से लदे हुए देश है उस पर एक अनावश्यक परियोजना पर इतना भारी खर्च और फिर ऐसी कई परियोजनाए जो योजनाओं में चल रही है वे भी आएगी जो शायद इनसे भी महंगी लागत वाली होगी तो हमारे देश का कर्ज कहाँ से कहाँ जाएगा फिर निचुड़ी हुई जनता को और देश को बार बार निचोड़ा जाएगा जरा विचार तो करे और वह भी गैर जरूरी कार्यो के लिए हमे देश का विकास करना है या विनाश, क्यों हम दूसरे के महल देख देखकर अपने घर को फूंकने पर तुले हुए है ?
क्या प्रजातंत्र में देश की पूंजी से प्रजा की यात्रा को कष्ट साध्य मुश्किलो को नजरंदाज कर मोटी तन्खाह वाले खास एंव धनवानो की सुखद यात्रा के लिए देश व प्रजा के पैसो से इस तरह की ट्रेने चलाना उचित है ? लोककल्याणकारी प्रजातंत्र मे शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता देना उस सेवा संसाधन का पूरी तरह से दुरूपयोग करना है बल्कि यह तो जनता के अधिकारो पर डाका डालना है , आजतक कभी किसी ने इस लूट का विरोध तक नही किया आश्चर्यजनक और दुखद है। हमने आजादी के वक्त गांधीजी के आदर्शो पर,सपनों पर, चलने की जो कसम खायी थी ऐसे तो हरगिज- हरगिज नही थे गांधीजी के आदर्श या सपने ?
चलिए ठीक है कि विकास हो और सबको आरामदायक सुख सुविधा मिले यह तो अच्छी बात है परन्तु आम और बहुसंख्यक जनता को कष्ट में रखकर उनकी छाती पर खडे होकर और कर्ज लेकर चंद अमीरों पर देश की पूंजी ,सार्वजनिक सुविधाएँ लुटाई जाएं और उनकी पसंद इच्छाओ के अनुसार चला जाए इसकी अनुमति तो कदापि नही दी जा सकती । कहते है प्रजातंत्र में सबसे अधिक विकल्प मौजूद होते है परन्तु भारत मे हम देखते है कि आम प्रजा के लिए ही कहीं कोई विकल्प मौजूद होता ही नही है जो जैसा है यही उनका भाग्य है या कहे दुर्भाग्य है और इसी विवशता के साथ उन्हे निर्वाह करना है। ऐसा क्यो है यह तंत्र को गंभीरता के साथ सोचना चाहिए। रेल्वे मे भी ऐसा ही है रेलमंत्री को भी इन दो विषयो के बारे में सोचना चाहिए 1 – आम जनता की सामान्य बोगी की यात्रा को सुखद और सुविधापूर्ण बनाने की दिशा में आज तक कभी कार्य क्यो नही किया गया और आज भी क्यों नही किया जा रहा है | 2 – देश की पूंजी को अमीरों के हितो में क्यों लुटाया गया और आज भी क्यों लुटाया जा रहा है
जब तक आप आम जनता की आम प्राथमिक यात्रा को कष्ट रहित एवं सरल नही कर देते तब तक ट्रेन सहित शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता विशेषाधिकार देना जैसे प्रथम श्रेणी वातानुकूलित ट्रेने चलाना या श्रेणी बनाना उस सार्वजनिक सेवा की डकैती है । जब तक आम जनता के सम्पूर्ण सरल सुलभ सस्ती यात्रा संबधित सारे कष्ट हल नही हो जाते तब तक प्रजातंत्र मे प्रजा के साथ यह मनमानी, अन्याय, अपराध है अत: इसे प्रतिबंधित कर देना चाहिए । जी हां इस ए.सी. संस्कृति को कम से कम सार्वजनिक सेवाओ से पूरी तरह से तब तक बंद कर दे जबतक हम साधारण जनता की साधारण क्लास की न्यूनतम आधारभूत आवश्यकता को संतोषपूर्ण ढंग से पूरा नही कर लेते ।
रेलमंत्रीजी आपको जानकारी होगी कि भारत में ट्रेनो में बेहद भीड रहा करती है और एक माह पूर्वतक के सामान्य रिजर्वेशन भी कठिनाई पूर्वक ही मिल पाते है टिकिट न मिले तो टिकिट लेने के लिए एक विकल्प बनाया गया है तत्काल,एक तो तत्काल शब्द का अर्थ ही गलत लिया गया है तत्काल का अर्थ होता है अभी का अभी परन्तु यहाँ अर्थ लिया गया है दुसरे दिन ग्यारह बजे से और दुसरे दिन ग्यारह बजे कुछ मिनिट में ही सारी टिकिट फुल हो जाती है फिर प्रीमियम तत्काल तीन चार गुना दाम पर कुछ टिकिट दी जाकर फिर वह भी फुल हो जाती है जो घंटो लाइन में खड़े रहते है वे हाथ मलते रह जाते है,अब दुसरे दिन फिर निर्धारित समय में लाइन लगाना होगी अगर गरज है तो लगाओ लाइन और जो लाइन न लगाना हो तो भारतीय रेल्वे खानपान एवं पर्यटन निगम (आई आर सी टी सी) की वेब साईट पर एकाउन्ट बनाए फिर उसे लागिन करे एक तो वेब साईट आसानी से खुलती नही है खुल जाए और आप टिकिट निकाल पाए इससे पहले ही फुल हो जाती है क्योकि कई बार की कोशिश के बाद ही आई आर सी टी सी वैबसाइट खुल पाती है फिर उसमें जानकारी भरो पेमेंट विकल्प आदि भरो तो तब तक या तो फुल हो जाती है या लागिन सेशन आफ हो जाता है उसे फिर से लागिन करो तब तक टिकिट फुल हो जाती है और पैसा भी एकाउंट से कट जाता है ,फिर आई आर सी टी सी ने विकल्प दिया है “तत्काल प्रिमियम”( जिसमे कई गुना अधिक पैसा लगता है ) यही सब सीमित समय में प्रोसेस पूर्ण करो तो वहां भी टिकिट फुल दिखने लगती है ये सब अलग अलग लूटने परेशान करने के तरीके लागू करने के बाद भी जनता को टिकिट नही मिल पाती आम जनता जाए तो जाए कहाँ,उसपर नित नए नए कानून नियम चले आते है एक और आन लाइन केशलेस भुगतान की वकालत की जाती है तो दूसरी और नेट से आनलाइन टिकिट लेने पर कई बंद मिलते है जैसे वेटिंग होने पर टिकिट रद्द हो जाती है ,कनेक्टिंग ट्रेन से आगे की यात्रा के लिए आई आर सी टी सी फ़ार्म में कोई आप्शन ही नहीं दिया गया है अत:उसके साथ उसे नहीं ले सकते,या तो दूसरी टिकिट निकाले या उतरकर सामान लेकर टिकिट खिड़की तक जाए लाइन लगाए और उसके लिए टिकिट ले,गजब के नियम ,गजब की लूट और गजब के जनता को परेशान के तरीके अपनाते चले जा रहे है जो उनकी यात्रा को और कठिन से कठिनतर बनाते चले जाते है उपर से ए.सी. संस्कृति के रूप में ट्रेनों का मनमाना दुरूपयोग किया जा रहा है ।
एक समूची ए.सी. ट्रेन केवल तीन सौ लोगो को लेकर ,जंक्शन से जंक्शन या महानगर से महानगर दौडती है अगर यही ट्रेन साधारण बोगी की हो और सामान्य स्टापेज करे, तो तीन हजार लोग भी थोडी सुविधा असुविधा के साथ उसमे यात्रा कर सकते है क्योकि वे बेसब्री से प्रतिक्षारत है ,जरूरतमंद है . आपका यह मानना सही भी हो सकता है कि तीन सौ लोगो के टिकट का मूल्य तीन हजार यात्रियो के टिकट के मूल्य से अधिक हो सकता है परन्तु किस कींमत पर ! दोहजार सात सौ यात्रियो को उनकी यात्रा के अधिकार से वंचित करके, क्या यह मूल्य कुछ अधिक नही लगता ? यह अनुचित ही नहीं बल्कि जनता के अधिकारों पर डाका डालने,उनपर जुल्म करने उनका भरपूर शोषण करने का गम्भीर अपराध है |
दूसरा एक गम्भीर अपराध और उपेक्षा हो रही है ग्रामीण जनता के साथ रेलमंत्रीजी यह मानकर क्यो चला जा रहा है कि यात्रा का अधिकार और सुविधा की केवल शहर के लोगो को ही आवश्यकता है जबकि सत्तर प्रतिशत जनता तो गांवो में ही निवास करती है गांधीजी ने भी कहा है कि भारत की आत्मा गांव में बसती है फिर गाँवो को क्यो इस कदर नजर अंदाज किया गया और लगातार किया जा रहा है । तमाम नेता ताकतवर लोग और मीडिया शहरो मे निवास करता है और वह गांव में तब ही पहुंचता है जब चुनाव होता है या कोई बडी दुर्घटना होती है तो फिर गांवो की आवाज कौन उठायेगा,क्या गाँवो में रहने वाले भारत के सम्मानीय नागरिक नहीं है क्या उन्हें सुविधाएँ पाने का कोई अधिकार नहीं है ? होना यह चाहिए कि गांवो की सुविधाओ मे कटौती करने के स्थान पर गांवो को अतिरिक्त रियायत और सुविधाऐ देना चाहिए ताकि गांवो में रहने वाले ग्रामीण भाइयो को जीवन में कुछ अनुकुलता प्राप्त हो और गांव से पलायन की गति कुछ कम हो । जबकि आज रियायतो के नाम पर गांवो को नजरदांज कर सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। होना यह चाहिए कि हर गांव को पैसेजर टे्न के साथ साथ कम से कम एक एक एक्सप्रेस ट्रेन का स्टापेज अवश्य दिया जाना चाहिए । गांव के मामले में स्टापेज के साथ आय के गणित को कदापि नही जोडा जाना चाहिए। हमारा उद्देश्य गांवो को रियायत देकर गांव के साथ शहर की दूरी को कम करना होना चाहिए ।गांव समूचे देश का पालन करते है इसका उन्हे ईनाम मिलना चाहिए जबकि रेल्वे एवं शासन प्रशासन गांवो को सजा देने की नीति पर चल रहे है जो पूरी तरह से गलत है ।
अब रेल्वे को अपनी भूलसुधार के लिए कुछ आधारभूत सुझाव यहां प्रस्तुत है –
1 रेल्वे से एवं शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग का कोई भी मामला न तो व्यापार,व्यवसाय है न ही कोई उद्द्योग है यह सिर्फ सेवा है और सेवा के रूप में ही जनसाधारण के लिए ही उसका व्यवहार व उपयोग समझना और करना चाहिए क्योकि सारी बुराई और अन्याय की जड़ यही है अत: इनसे कमाई के व्यवसायिक गणित को पूर्णतया दूर रखा जाकर जनहित एवं जनसुविधा का ही प्राथमिकता के साथ सारा ध्यान रखा जाना चाहिए
2 भारतीय रेल को केवल आम जनता के लिए पूरी तरह से आरक्षित कर दिया जाना चाहिए
3 रेलो में केवल तीन ही श्रेणी विभाजन हो वह भी दूरी के हिसाब से होने चाहिए
· एक अत्यंत छोटी यात्रा श्रेणी जिसमे सौ किलोमीटर तक की छोटी यात्रा करने वाले अप डाउन करने वाले स्थान उपलब्ध होने पर बैठकर या फिर खडे होकर यात्रा कर सके
· छोटी यात्रा श्रेणी के लिए कुर्सीयान अर्थात तीन सौ किलोमीटर तक की यात्रा जिसमे बैठने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाये
· तीसरी लंबी यात्रा श्रेणी के लिए शयनयान तीन सौ किलोमीटर से अधिक की यात्रा जिसमे यात्री को शयन करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
4 – कोई भी कर्मचारी अधिकारी मुफ्तयात्रा न करे
5 – सभी यात्रियो के साथ सम्मानजनक एवं समान व्यवहार किया जाए ।
6 – ट्रेन में उतरने और च़ढने के लिए अलग अलग द्वार निर्धारित हो
7- हर बोगी में एक व्यक्ति की डयूटी हो वह ही टिकिट दे यात्रियो को स्थान बताए और उनकी मदद भी करे । आश्यकता होने पर डाक्टर पुलिस या टे्न के चालक से सम्पर्क करे ।
8 – ट्रेनो में यात्रा का किराया कम से कम होना चाहिए ।
9 – गांव से शहर या शहर से गांव की टिकिट पर भारी रियायत दी जाना चाहिए ।
10 दिन ढलने के बाद उतरने वाले सभी यात्रियो को रेल्वे स्टेशन पर मुफ्त रात्री विश्राम /शयन करने की विश्रामघर में सुविधा होनी चाहिए ।इसमे वर्तमान के अनुसार कोई श्रेणी विभाजन भी नही होना चाहिए ।वहाँ विशेष केयर टेकर की नियुक्ति होनी चाहिए महिला बच्चे,वृद्ध व दिव्यांगो का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए सी .सी टी. वी केमरे लगे होने चाहिए वर्तमान समय में सामान्य रेल्वे स्टेशनो के जंक्शन स्टेशनो जिला स्टेशनो को छोडकर क्योकि वहां सिर्फ शयनयान एवं प्रथमश्रेणी के साफ सुथरे विश्रामघर होते है सामान्य विश्रामघरो मे इतनी गंदगी रहती है कि कोई भला आदमी वहां विश्राम कर ही नही सकता । बाथरूम और शोचालयो में तो आप पैर भी नही रख सकते ।
11- रेल्वे स्टेशनो पर सुरक्षा शोचालय, पानी, शुद्ध पेयजल, साफसफाई, चाय नाश्ता, भोजन, चिकित्सा आदि की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए वर्तमान में रेल्वे स्टेशनो पर गुंडो का राज रहता है सुरक्षाबल उनसे दोस्ती और वसूली में विश्वास रखता है। साफ सफाई बिल्कुल नही रहती है। खाने पीने के जो भी खाद्य एवं पेय पदार्थ वहां बेचे जाते है वे एकदम घटिया और मंहगें होते है । इस सब पर न किसी की निगाह होती है न ही नियंत्रण दिखाई देता है यह सब भी देखा जाना चाहिए और इसके लिए अलग कर्मचारी की नियुक्तियां हो परन्तु उसकी जवाबदेही स्टेशन मास्टर की हो वह ही इसके लिए अधिकृत रूप से जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए ।
12- वर्तमान में हमारे ट्रेक अधिकतम सौ किमी प्रति घंटे के हिसाब से बने हुए है और हमारी ट्रेनो की औसत रफ्तार भी अधिकतम यही है हम दुनिया की नकल न भी करे यह रफ्तार भी पर्याप्त है वर्तमान समय में हमे आम जनता को सुविधापूर्ण यात्रा उपलब्ध करवाने पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए वह ही महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी है जो आज की तारीख में नहीं हो पा रहा है
आज की तारीख में वर्तमान सरकार जिन बातो और मुद्दों को रेल्वे में समस्या ,मुद्दे या करने योग्य कार्य के रूप में लक्षित कर रही है वास्तव में पूरी तरह से गलत और जन विरोधी है उनका आम जनता की सुविधापूर्ण यात्रा से कोई लेना देना नहीं है वह रेल्वे को आमजनता की पहुंच से दूर कर एक पूरी तरह से व्यवसायिक मुनाफाखोर संस्थान का रूप देना चाहती है इसके लिए कदम भी उठा रही है कोई भी विरोध नही कर रहा है यह बहुत गलत बात है
उदाहरण के लिए –
· सरकार गति ही प्रगति को मंत्र व लक्षय मानते हुए” दुर्घटना से देर भली “के मंत्र को भुलाकर ट्रेनों की गति को 200 से 300 कि .मी. प्रति घंटा कर डालने के लिए एडी चोटी का अनावश्यक जोर लगा रही है इसे प्रधानमन्त्री का सपना बताया जा रहा है
· सरकार रेल्वे को महंगे होटल का रूप देना चाहती है
· विशेषयात्रियों को उनकी पसंद का भोजन व अन्य सुविधाएँ आन डिमांड उपलब्ध करवाने के लिए प्रयास कर रही है
· वह उनके लिए महानगर से महानगर सीधे पहुंचने वाली या फस्ट से सीधे लास्ट प्वाइंट की ट्रेने चलाना चाहती है और कुछ चला भी चुकी है जिससे विशिष्ट लोगो को कोई व्यवधान न हो उनका कीमती समय भी बचे फिर चाहे उनको खाली ट्रेक देने के लिए कितनी ही ट्रेनों को घंटो साइडिंग में डाल दिया जाए कोई परवाह नही पेसेंजर ट्रेनों को तो पता ही नही होता कि कितनी देर के बाद क्लियर मिलेगा
· विशेष यात्रियों का समय बचाने के लिए और दुनिया को दिखाने के लिए भारी भारी कर्जे लेकर बुलट,टेल्गो ट्रेने लाने का प्रयास किया जा रहा है जिसका आम जनता की सुविधापूर्ण यात्रा से कोई लेना देना ही नहीं है और जिनकी वास्तव में आज कोई आवश्यकता भी नही है जिनके कई लाख करोड़ रूपयों में बजट है जो पूरी तरह से गैर जरूरी है जो देश को कर्ज के दलदल में धंसा देगे जिनसे कई दशको तक देश उबर नहीं पाएगा
· दुनिया को दिखाने के लिए महानगरो के प्लेटफार्मो को विश्वस्तरीय चमचमाता हुआ बनाने का प्रयास किया जा रहा है इसके लिए करोड़ो खर्च किए जा रहे है फिर इन गैर जरूरी मदों पर पैसा लुटा कर जनता को आवश्यक यात्रा और वस्तुओ पर भार डालकर उसे उठाने या उससे वंचित रह जाने के लिए मजबूर किया जाएगा आगे यह तर्क भी दिया जा सकता है कि जब खर्च उठा नही सकते तो घर बैठो यात्रा करने की आवश्यकता क्या है
13 यह बेहद हास्यास्पद विरोधाभास है विश्वस्तरीय चेहरा बनने के लिए करोड़ो खर्च करने के लिए तो हम उतावले हो रहे है परन्तु जो साधन उपलब्ध है वर्तमान समय मे उनका ही कोई उपयोग नही कर पा रहे है इतनी संचार क्रांति के बावजूद रेलो के आने व जाने का बिल्कुल सही समय बताने की कोई व्यवस्था ही नही है जबकि यह तो आज चुटकी बजाने जितना सरल हो गया है उसे ही हम नही कर पा रहे है न तो इंटरनेट पर ट्रेनों की सही जानकारी मिलती है न ही इन्क्वारी पर और इन्क्वारी पर जवाब भी इतने बोझिल और असभ्यता पूर्ण ढंग से दिया जाता है कि पूछने से पहले यात्री कई बार सोचता है कि पूछूँ या नही , जैसे वे हमेशा गुस्से में भरे हुए बैठे रहते है और उन्हें कोई अरुचिकर कार्य करना पड़ रहा है इससे सरकार को यह शिक्षा लेनी चाहिए की धन और साधन की कमी कोई अर्थ नही रखती जबतक हम कार्य संस्कृति को,देशप्रेम को,सहयोग की भावना और सभ्यता को सरकारी तन्त्र के स्वभाव में नही उतार पाएगे तब तक सब कुछ व्यर्थ है, तो निवेश के स्थान पर इसपर ध्यान दिया जाना ज्यादा जरूरी प्राथमिकता के साथ होना चाहिए |
14 – रेल्वे में शिकायत की व्यवस्था होने के बावजूद जनता उसका कोई उपयोग नही कर पाती क्योकि शिकायत करने वाले को स्टेशन मास्टर के दफ्तर में जाना पडता है और वहां उसे शिकायत रजिस्टर देने के पहले अनैक सवालो का जवाब देना होता है और फिर शिकायत न करने के लिए समझाया या डराया जाता है कि उसे चक्कर लगाना होगे परेशान होना होगा आदि
15 – कुछ टोल फ्री फोन नम्बर सदा उपलब्ध और जगह लिखे होना चाहिए उस पर चौबिस घंटे कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करा सके ।शिकायतों को रिकार्ड भी किया जाना चाहिए और उनकी लगातार मानिटरिंग व् साप्ताहिक मासिक समीक्षा भी की जानी चाहिए अन्य कई वैकल्पिक नम्बर,इमेल एड्रेस भी दिए जाने चाहिए उनकी भी सदैव निगरानी की जानी चाहिए तुरंत सुनवाई की जा रही है या नहीं यह भी लगातार देखा जाना चाहिएसोशल साईट से भी जुड़े होना चाहिए |
16 – अगर किसी कारण से कोई ट्रेन खाली चल रही है और अगले किसी स्टेशन पर भीड़ अधिक है और वहां अगर ट्रेन का स्टापेज नही भी है तो वहाँ यात्रियों को सुचना प्रसारित कर ट्रेन का स्टापेज दिया जाकर यात्रियों को बैठाया जाना चाहिए इसी प्रकार से किसी ट्रेन में या किसी स्टेशन पर यात्रियों की संख्या ओव्हर लोड हो गई है तो वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में अतिरिक्त बोगी या ट्रेन की व्यवस्था तुरंत की जानी चाहिए जिसकी सूचना यात्रियों को दी जानी चाहिए
17 – सभी बोगियों में एनाउन्समेंट सिस्टम होना चाहिए जिसमे यह घोषणा होती रहे कि इतने मिनिट में अगला स्टेशन( स्टेशन का नाम ) आने वाला है कृपया उतरने वाले यात्री डाउन गेट पर कतार में खड़े रहे
18 – उतरने वाले यात्रियों में दिव्यांग बुजुर्ग ,बच्चो की उतरने में, सामन आदि उतारने में भी कंडक्टर को पूरी पूरी मदद करनाचाहिए |
19 – आगे की यात्रा या अगले ग्रामीण छोटे स्टेशनों के लिए कनेक्टिंग ट्रेने होना चाहिए |
20 – आगे की यात्रा करने वाले यात्रियों को कनेक्टिंग ट्रेन में बैठने के लिए या ट्रेन में अधिक समय होने पर विश्रामघर में जाने और पुन: वापस कनेक्टिंग ट्रेन के प्लेटफार्म आदि बदलने के लिए रेल्वे द्वारा मुफ्त मदद की जानी चाहिए
21 – रेल्वे में कुलियों के द्वारा भी मनमाने पैसे मांगे जाते है वे मजबूर यात्रियों की मजबूरी का भरपूर फायदा उठाने से नहीं चूकते है इन पर कानूनी नियन्त्रण का शिकंजा कसा जाना चाहिए|
22 – ट्रेन की बोगी में चढने वाले यात्रियों में दिव्यांग बुजुर्ग ,बच्चो की बोगी में चढने में ,सामान सहित उनकी सीट पर बैठाने तक की जिम्मेदारी भी रेल्वे को उठानी चाहिए |
23 – ट्रेनों की पेन्ट्री में और प्लेटफार्मो के केन्टीन भोजनालयो में केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही बनाया व बेचा जाना चाहिए क्योकि कोई भी मांसाहारी व्यक्ति १००% मांसाहारी नही होता वह शाकाहारी भी होता है मांस हर दिन नही खाता है और जिस दिन नहीं खाता उस दिन शाकाहारी भोजन पर ही निर्भर होता है जबकि शाकाहारी व्यक्ति १००% शाकाहारी ही होता है और जब माँसाहारी और शाकाहारी भोजन एक ही जगह बनाया रखा जाता है तो उसमे उसमे घालमेल हो ही जाती है दूसरा यह कुछ घंटो का सफर है अधिकतम 36-40 घंटे तब तक हम दाल रोटी सब्जी से पेट भर सकते है ,मांसाहार से कई हाईजिनिक समस्याये भी उत्पन्न होती है उससे भी बच सकेगे शाकाहारी यात्रियों के विश्वास व ईमान की भी रक्षा हो सकेगी

रेल्वे से ए.सी.और मुफत यात्रा की विदाई हो जाने से निश्चिंतरूप से कुछ लोगो की सुखसुविधा मे कमी होगी और उनके अहंकार को भी चोट पहुंचेगी वे इसका विरोध भी करेंगें ऐसे सभी लोगो से मेरा निवेदन है कि वे इस सच को स्वीकार करते हुए कि प्रजातंत्र में सार्वजनिक सेवाओ में विशेषाधिकार चाहना भोगना अनुचित है अपने सौजन्य का परिचय देंगे और उदारता पूर्वक इसे स्वीकार कर लेंगें साथ ही आशा ही नही वरन पूर्ण विश्वास है कि वे स्वयं आगे आकर इसके लागू होने मे सहयोग भी करेगे ।
आपसे भी निवेदन है कि आप अपने पद हैसियत स्थान के हिसाब से इस लेख में दिये गये सुझावो को अमल लाने के प्रयासो को बल गति और समर्थन देने का कष्ट करे अगर आप राजनीति से जुड़े है तो वर्तमान सांसदो तक इस लेख को फारवर्ड करने और इस मुददे को संसद में उठाने की मांग करने की कृपा करे ।
आपका बहुत आभार व धन्यवाद ।
पुनश्च :- रेल मंत्रीजी ने मुझे इसका जो अंग्रेजी में जनरल जवाब दिया है जिन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि उन्हें हिंदी में लिखे गये सुझाव या तो समझ नही आये है या वे समझना ही नही चाहते है क्योकि उन्होंने अपनी उन्ही सब बातो को,अपने प्रयास और उपलब्धियां बताते हुए अपनी और सरकार की पीठ थपथपाई है यह खेदजनक है |

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