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”माँ भारती का दर्द”

Bhrashtachar
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धरती हमारी माँ है, हमारी जननी है और वह सब कुछ है, जो प्रतिदिन हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। हम सब जड़, जीव एवं मनुष्य इसी की कोख से उत्पन्न हुए है। धरती माँ के अन्दर भी दिल है, जो इसके अंतस में सदैव धडकता रहता है, हम सब के लिए। हमारा सम्बन्ध इसकी धड़कन की गहराई से है और इसके धड़कन का प्रभाव हमारे दैनिक जीवन में पड़ता है, जो एक स्वाभाविक स्थिति है। जिस क्षण इसकी धड़कन विपरीत हो जाती है, उसी क्षण हमारे जीवन का सरगम शांत हो जाता है। कहते है कि हजारों वर्ष पहले धरती माँ का ह्रदय ७.८ हर्ट्ज़ प्रति सेकेण्ड की दर से धडकता था किन्तु अब इसकी धड़कन बढ़कर १२ हर्ट्ज़ प्रति सेकेंड हो गई है। इसके बढ़ने से धरती के तापमान, वातावरण एवं संरचना में भारी बदलाव दृष्टिगोचर हो रहा है तथा आज यही बदलाव हमारे शान्तमय जीवन को कोलाहलपूर्ण बना रहा है।
आज सम्पूर्ण जन मानस के मानस पटल पर एक ही यक्ष प्रश्न है कि क्या भारत माता घोटाले, घपले, गबन, जालसाजी, हेराफेरी, करचोरी, दलाली, रिश्वतखोरी, साहूकारी, वित्तीय अनियमितताओं, मादक पदार्थों की तस्करी, विभिन्न प्रकार से अर्जित अवैध कमाई, दुराचार, व्यभिचार, अपराध आदि से मुक्त हो सकेगी। क्या परम पावनी माँ भारती के बंन्सज उन्हें वासना और तृष्णा की जंजीरों से मुक्त करा पाएंगे क्या हम भारतीय अपनी खोई हुई नैत्तिकता, विवेकशीलता, पावनता एवं सुसंस्कृति को पुनः अर्जित कर सकेंगे। क्या पुनः भारतवर्ष सोने की चिड़िया का प्रतिरूप बन सकेगा। क्या योगियों, तपस्वियों एवं मूर्धन्य मनीषियों की तपोभूमि भारत पुनः जगदगुरु कहलायेगा।
सत्य है की त्याग की बगिया में ही आदर्शों के पुष्प पुष्पित एवं पल्लवित होते है, उत्सर्ग की आंच में ही व्यक्तित्व रूपी कंचन कुंदन बनकर निखरता है। आज आग्नेय मंत्र का सर्वथा उद्दघोष करने वाले रक्त शीतल और शांत हो गए है। फडकता पुरुषार्थ, अपराजेय साहस एवं असीम बल-वीर्य पराजित व् पत्नोंन्मुखी हो गए है। हम सभी दीन-हीन एवं उर्जाहीन होकर राष्ट्र की असीम समस्याओं के बोझ तले दबे एवं पिसे चले जा रहे है। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन सभी कुछ दावं पर लग गया है। प्रेम और त्याग रूपी जीवन प्रायः विलुप्त होता जा रहा है और उसके स्थान पर काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, माया, तृष्णा एवं अहंकारयुक्त बीमारियाँ तीब्रता से हमारी नसों में फैलती जा रहा है। अनगिनत कंटीले एवं चुभते मर्मस्पर्शी प्रश्न सभी भारतीयों के ह्रदय को बींध रहे है क्या इन उलझे गुत्थिओं का रहस्य हम खोज पाएंगे।
आज हमारा सशक्त, सुदृढ़ एवं मजबूत राष्ट्र भारत भ्रष्टाचार, दुराचार एवं अनैतिकता के दीमक को अपने अंतस में समेटे जिस पथ पर निर्ममता पूर्वक अग्रसर हो रहा है, यदि निरंतर अग्रसर होता रहा तो यह इतने गहरे पंक से सराबोर हो जायेगा कि पुनः इससे उबरना अथवा उबारना किसी के लिए संभव नहीं हो सकेगा। आंतरिक रूप से खोखला होकर यह इतना दुर्बल हो जायेगा कि एक हल्के अघात से ही धराशायी होकर धुल धूसरित हो जायेगा। कहना असंगत न होगा कि हम आज जिस भ्रमित पथ से गुजर रहे है उससे हमारा राष्ट्र असहाय, अशक्त एवं विपन्नता के शिखर पर पहुँच जायेगा। वर्तमान परिवेश में प्रत्येक भारतवासियों कि मानस पटल को परिवर्तित कर दिया है हमारे निहित एवं क्षुद्र स्वार्थों ने शिवी एवं महर्षि दधीचि जैसे तपस्वपियों के त्यागमय परम्परा को भी दूषित एवं पंकित कर दिया है सभी एक दुसरे को परास्त करने कि दौड़ में सम्मिलित हो गए है, आगे निकलने कि होड़, अत्यधिक पैसा कमाने कि लालसा, अल्प समय में धनवान बनने कि चाहत ने आज प्रत्येक भारतीयों के जीवन शैली में अत्यधिक व्यस्तता ला दी है।
चुनौतियाँ अनेक है, समाधान मात्र एक है और वह है युवा चेतना का जागरण। उनकी राजनैतिक सक्रियता, कुंद एवं दूषित विचारों वाले राजनेताओं का सक्रिय राजनीति से सन्यास। धर्म एवं संस्कृति, भ्रष्टाचार एवं कदाचार में आकंठ डूबा हमारा देश, जन चेतना से पूरी तरह से उनींद, सुसुप्त एवं अलसाया है। आवश्यकता है प्रचंड साहस, प्रबल संकल्प, अटूट धैर्य के साथ विचारशील एवं भावनाशील युवाशक्ति की, जो माँ भारती के दर्द को समझ सके तथा उनके रक्षार्थ अपना सर्वस्व अर्पित कर सके।

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