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हमारी चीख उसी माहौल के खिलाफ है,
जिसमें खुद बढ़े पले हैं।
लोग कैसे यकीन करें हम पर
कि हम अब कुछ बदले हैं।
भारत की राजनीति के इस रहस्य को समझे बगैर बदलाव का मुकाम मिलना मुश्किल है। 1974 व 2014 का गहन अध्ययन किया जाय, तो इस रहस्य की परतें खुलने लगेंगी। बिहार में शुरू हुए जेपी आन्दोलन से लोगों को विश्वास हुआ कि हकीकत का जामा पहने बगैर हो रही सरकारी घोषणाओं से उनकी जिन्दगी की घुटन दूर न होगी। उन्हें जेपी में हवा का नया झरोखा दिखाई दिया। तब दुष्यन्त ने इशारे से कहा था-
एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यों कहो
इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान है।
बदलाव ऐसा आया कि दुनिया में ताकत के लिए मशहूर आयरन लेडी चुनाव में धराशायी हुईं। 1971 के लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रचण्ड बहुमत मिला था, परन्तु 1977 में स्वयं श्रीमति गांधी की अपने लोकसभा क्षेत्र में हार हुई थी। बदलाव का दूसरा बड़ा दौर 2014 में देखने को मिला, जब परम्परागत मार्ग पर चल रही कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों को हराते हुए भाजपा ने भी प्रचण्ड बहुमत प्राप्त किया। 2014 के भाजपा प्रचार को देखें, तो उन्होंने आम मुसीबतों को एक-एक कर उठाया तथा उसका सर्वोत्तम विकल्प देने का भरोसा पैदा कर दिया था।
निश्चित तौर पर यह भरोसा टूटा है, परन्तु विश्वास पैदा करने लायक कोई विकल्प नहीं दिख रहा। लगातार हो रही भारी बारिश से लबालब सड़कों के बीच कोई नाव दिखाई नहीं दे रही, जिसका मल्लाह कहता हो कि उसकी नाव गहरे समुद्र में भी कभी डूबी नहीं है। कहीं जाना चाहें तो जायें कैसे? जितने चेहरे सामने दिखाई दे रहे हैं, उन्हें जब-जब छोटा या बड़ा मौका मिला, वे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे। ऐसे किसी नेता को दिल्ली की गद्दी देने का जोखिम जनता नहीं ले सकती।
अभी समय है, जिसे संसद की राजनीति करनी है, वह जेपी आन्दोलन का बारीकी से अध्ययन करे। लोक नायक द्वारा उस समय दिये गये बयानों व भाषणों को ध्यान से पढ़े। अभी सभी नेता व राजनीतिक दल मौसमी हलचलों पर प्रतिक्रियात्मक बयान दे रहे हैं। राजनीतिक दलों का मूल दस्तावेज गायब है, जिसको आधार बनाकर जनता में विश्वास पैदा किया जाता है कि सत्ता में आने का उद्देश्य राज करना न होकर घोषित नीतियों के शत प्रतिशत अनुपालन की गारंटी है, जिससे देश का आर्थिक सामाजिक दृश्य बदलेगा।
यह कोरा भरोसा न होकर परिवर्तन के मार्ग की व्याख्या व आवश्यक आर्थिक संसाधनों को प्राप्त करने के सम्भावित स्त्रोतों का खुलासा भी होगा। अभी तक राजनीतिक दल चुनावों में घोषणाएं तो करते रहे हैं, परन्तु कार्यों के करने की योजना प्रस्तुत नहीं करते, जिससे घोषणाएं जुमला बनकर रह जाती हैं। यदि विरोधी दल अपने द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्यों व सत्ता पक्ष की दैनिक त्रुटियों को प्रतिदिन पिरोते हुए माला गूँथने जैसा कार्य आरम्भ कर दें, तो विजय के कपाट खुलना आसान होगा।
केवल गलतियों के चीथड़े उड़ाने से जनता में परिवर्तन का संदेश नहीं जा सकता। यदि त्रुटि जनमानस पर व्यापक हानिकारक असर डालने वाली है, तो आन्दोलन का मार्ग अपनाना चाहिए। डाॅ० राम मनोहर लोहिया ने जीवन पर्यन्त इस मार्ग को अपनाकर विश्व राजनीति में अतुल्य स्थान बनाया। महात्मा गांधी, आचार्य नरेन्द्र देव, डाॅ. राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नरायन का व्यक्तित्व सत्ता पक्ष के नेताओं के मुकाबले अधिक अनुकरणीय रहा है। महात्मा गांधी तो विश्व नायक के रूप में सदैव के लिए स्थापित हो चुके हैं।
जेपी का आन्दोलन सत्ता को चुनौती देते हुए कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को बेदखल करता हुआ तो दिखता है, परन्तु कहीं भी ऐसा नहीं आभास हुआ कि बेदखल कर वे स्वयं कुर्सी पर काबिज होने जा रहे हैं। उन्होंने इसे कालान्तर में सिद्ध भी किया। विरोधी दल मिलें, बैठें, बेशक गठबंधन बनाएं, परन्तु उन्हें ईमानदार विकल्प को नेता व नीति दोनों में सिद्ध करते हुए चलना होगा। यदि ऐसा हो सका तो 2019 में 1977 की पुनरावृत्ति स्पष्ट दिखाई देगी।
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