- 109 Posts
- 56 Comments
डाॅ. राममनोहर लोहिया को अब बनिया बताया जा रहा है। यह राजनीति की परिधि को सिकोड़ने का संकेत है। लोहिया का जन्म वैश्य अग्रवाल परिवार में हुआ, परन्तु जीवनपर्यन्त उन्होंने इसे अपनी राजनीति का आधार नहीं बनाया। लोहिया ने कभी कोई व्यापार नहीं किया। बौद्धिक कार्यों को करते हुए न्यूनतम आवश्यकताओं पर जिन्दगी को जिया। दो-तीन जोड़े सादा खद्दर के कुर्ते-धोती के अलावा घर में अखबार व पत्रिकाएं ही थीं। कभी किसी वैश्य सभा को संबोधित नहीं किया। विश्व के सभी वैश्यों को यह समझ लेना चाहिए कि उनके कुल में एक ऐसा व्यक्ति पैदा हुआ, जिसने एक जाति या धर्म से ऊपर उठकर भूमण्डलीय मानवता के लिए कार्य किया।
जिस प्रकार गांधी को बनिया कहकर कुछ नेता गांधी के व्यक्तित्व को छोटा करने की विफल चेष्टा कर रहे हैं, उसी प्रकार लोहिया के विचारों से खौफ खाने वाले उन्हें बनिया कहकर एक जाति का नेता बनाने की चेष्टा कर रहे हैं। जो लोग अपनी जाति के नेता बनते हैं, उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि उनका स्मरण क्षणिक होगा, परन्तु जिसने विश्व मानवता की पहचान बनाई वह चिरस्मरणीय रहेगा।
उनके पास पहनने के कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था। बटुआ, बैंक खाता, लॉकर-तिजोरी से उनकी वाकफियत नहीं थी। अपना हिसाब रखने लायक कुछ न था, किन्तु बाकी सारी दुनिया का हिसाब उनकी उंगलियों पर था। ये किसी कहानी के सृजित किए गये पात्र नहीं थे, वरन विश्व की सम्पूर्ण मानव जाति के सम्मुख सभ्यता के नवीनतम संस्करण के व्याख्याकार थे। कार्लमार्क्स व महात्मा गांधी ने विश्व में भिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। डॉ. राममनोहर लोहिया ने भारत राष्ट्र की उत्कृष्ट व्यवस्था एवं चिरकालीन प्रासंगिकता की नीति को प्रतिपादित किया।
डाॅ. राममनोहर लोहिया का निधन 12 अक्टूबर 1967 का हुआ। तब से अब तक राजनीति सिद्धांतों के घेरे से बाहर निकलकर धन एवं हेकड़ी की उस अवस्था में आ गयी, जहाँ राजनीतिक कार्यकर्ता को बड़े ब्रान्ड की गाड़ियों व हथियारों के साये में चलने की सामाजिक मान्यता दी गयी। साधनविहीन लोहिया ने देश की सम्पन्नता का खाका तैयार किया, किन्तु देश के विकास को दरकिनार कर वर्तमान में पहचान के लिए कोरे दिखावों का सृजन नेतागिरी का पहला पाठ बन गया। डाॅ. लोहिया अमीरी-गरीबी के बीच की दिन-प्रतिदिन चौड़ी होती खाई को पाटने के लिए चिन्तित थे, तो अब इस खाई को अधिक चौड़ा व गहरा करने में वर्तमान नीति निर्धारक लगे हैं।
महापुरुषों की प्रासंगिकता भविष्य के लिए अधिक होती है। यही कारण है कि डाॅ. राममनोहर लोहिया वर्तमान की सिद्धांतों से फिसलती राजनीति में अधिक प्रासंगिक नजर आते हैं। सत्ता की मर्यादा से खिलवाड़ करने वाले शासक को बेदखल कर जनता के हितों के लिए संघर्षरत डाॅ. लोहिया स्वयं सत्ता से दूर रहते हुए दिखाई दिए, तभी तो उन्होंने कहा था कि यदि मेरी पार्टी भी सत्ता आने पर सिद्धांतों पर न चली, तो मैं उसका भी विरोध करूंगा और यह उन्होंने भारत की पहली गैर कांग्रेसी सरकार के रूप में पदासीन होने वाले केरल के मुख्यमंत्री पट्टमथानु पिल्ले का इस्तीफा मांगकर सिद्ध किया था। यह सरकार उसी पार्टी के नेतृत्व में बनी थी, जिसके शीर्ष पद पर डाॅ. लोहिया विराजमान थे।
Read Comments