Menu
blogid : 4631 postid : 1358650

तुझे गंगा पुकारे

gopal agarwal
gopal agarwal
  • 109 Posts
  • 56 Comments

हथेली पर बनी रेखाओं की तरह भारत भूमि पर नदियां भी देशवासियों की जीवन रेखाएं हैं। इन्हीं से प्राप्त पानी से खेतों में सिंचाई तथा प्राणियों को पीने का जल निर्वाध रूप से मिल रहा है। लोग श्रद्धा से नदियों को “माँ” भी कहते हैं।

गंगा से मन की आस्था जुड़ी है। सबसे पहले डा० राम मनोहर लोहिया ने आवाज उठाई “माँ कहते हो परन्तु मल-मूत्र व कारखानों का गन्दा मैला इसमें गिराते हुए क्या सरकार व गिराने वालों को शर्म नहीं आती?” कानपुर में उन्होंने गंगा को निर्मल करने की मांग करते हुए अभियान छेड़ा। समाजवादियों के लिए नादियों को गन्दगी से मुक्त कराना आन्दोलन बन गया। परन्तु न तो कांग्रेस और न ही अन्य दलों की केन्द्र सरकारों ने गंगा सफाई की ओर ध्यान नहीं दिया।

2014 के संसदीय आम चुनाव में एक नेता ने हुंकार भरी कि वे गंगा के बुलावे पर ही आए हैं तथा साफ कर दिखायेंगे। बताते है कि सत्ता आने पर हजारों करोड़ रूपया इस मद में खर्च कर दिया गया किन्तु गंगा मैली ही रह गयी। रूपये बहते पानी की तरह गंगा तक पहुँचने से पहले बह गये।

गंगा की पुकार पर आया बेटा माँ को भूल गया। रिश्ता इतना भर रहा कि सभी वादे झोले में भर गंगा किनारे छोड़ दिए।

परन्तु एक बेटा और है जो गंगा को माँ कहते हुए उसमें उड़ेली जा रही गन्दगी को हटाने के लिए ‘हठ’ पर बैठ गया। 111 दिन उपवास करते हुए 112वें दिन प्राण तज दिए। यह गंगा का बोलचाल वाला साधारण बेटा नहीं वरन् गंगा जैसा चरित्रवान संत है। आश्चर्य है कि गंगा की पुकार कहकर चुनाव जीतने वाले को वास्तविक गंगा पुत्र की आवाज सुनाई नहीं दी।

12 अक्टूबर 2018 को भारत अपने बहादुर सपूत, स्वतंत्रता संग्राम में अग्रिम पंक्ति के नेता, विश्व को समाजवाद की नई परिभाषा के साथ दर्शन प्रस्तुत करने वाले, जिन्होंने ‍निर्मलता अभियान को गंगा से लेकर राजनीति तक जोड़ा, विश्व में विपक्ष के अवतार के रूप में चिन्हित होने तथा विलक्षण प्रतिभा के धनी डा० राम मनोहर लोहिया को 51वीं पुण्य तिथि पर कृतज्ञता प्रकट करते हुए श्रद्धांजली देना चाहता था।

परन्तु एक शोक समाचार ने भारत की जनता को हिला दिया। भारत लोहिया को श्रद्धांजली देना भूल कर गंगा को निर्मल करने की बात को आगे बढ़ाकर अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले महान संत श्री गुरूदास अग्रवाल को अश्रुधार के साथ श्रद्धांजली देने के लिए पुष्प गुच्छ लेकर आया।

दुर्भाग्य से न तब की सरकार ने डा० लोहिया की सुनी न अब की सरकार ने संत श्री गुरूदास अग्रवाल की ओर देखना मुनासिब समझा। बालक अपनी माँ की पवित्रता के लिए हठ कर रहा था। सत्ता ने उसकी आवाज नहीं सुनी बालक माँ की गोद में समाने चला गया।

गंगा पुत्र संत स्वामी श्री ज्ञान स्वरूप सानंद गुरूदास अग्रवाल को बारम्बार नमन करते हुए हमारी श्रद्धांजली अर्पित है।

(20 जुलाई 1932 को जन्मे श्री गुरूदास अग्रवाल ने आईटीआई रूड़की से सिविल इंजीनियर तथा कैलीफोर्निया से पर्यावरण विषय पर पीएच० डी० की थी। वे कानपुर आई० आई० टी० में प्रोफेसर रहे। 11 अक्टूबर 2018 को 112 दिन के अनश्न के चलते उन्होंने प्राण छोड़ दिए।)

मेरा विशेषकर विद्यार्थियों से आग्रह है कि प्रो० जी० डी० अग्रवाल की प्रोफाइल को अवश्य पढ़ें, प्रेरणादायक महापुरूष हैं।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh