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सरकार यही चाहती है। पैट्रो कीमत बढ़ने के दर्द की तरफ जनता का ध्यान बंटा रहे, अन्दर खाते दूसरा खेल चलता रहे। समस्या का मुख्य कारण कारों का अत्याधिक उत्पादन हैं जिससे सरकार को दोहरा लाभ है। एक ओर विकास की दर को कृत्रिम रूप से ओटोमोमोबाइल सैक्टर बढ़ाए रखता है दूसरी ओर सरकार के चहेते देशी-विदेशी बड़े घरानों को असीमित मुनाफा कमाने का मौका बना रहता है।
कार बनाने के लिए जमीन सरकार दिलवाती है, मशीनरी के लिए ऋण देती है, कार्यशील तरल पूंजी उपलब्ध कराती है। बाजार मे कम्पनी को शेयर जारी कर जनता से पूंजी उगाहने के लिए बैंको से मदद कराती है और अन्त में तैयार कार को बेचने के लिए बैंको से उदारतापूर्वक ऋण देने को कहती है। सब कुछ सरकार का लेकिन मुनाफा टाटा-सूजुकी जैसी कम्पनियों का, यही भारत के नवउदार योरोपियन पैटर्न के अर्थ शास्त्रियों की नीति का सत्य है।
कार की जरूरत कुछ को है परन्तु अन्न की जरूरत सबको है। खेती के लिए ऐसा सरकारी सहयोग प्राप्त नही होता। कार बेचने के लिए डीलर की दुकान पर बैंक का आदमी बैठकर तत्काल ऋण उपलब्ध कराता है। सड़कों पर लोन मेले लग जाते हैं। कुछ में तो मीडिया भी पार्टनर होते हैं। परन्तु कृषि यन्त्रों के लिए कोई ऋण योजना नहीं है।
कार रखना मानव मानसिकता का स्वाभाविक लालच है। अपना घर व कार हो जाय तो जैसे जिन्दगी सफल हो गयी। बाद में ऋण चुकाने की किश्त व पैट्रोल के खर्च से दीवार के अन्दर भले ही नर्क स्थापित हो जाये। कहीं से भी ऋण चुकता न होने की सूरत में भ्रष्टाचार की पगडन्डी उन लोगों ने भी पकड ली जिनके पुरखे आदर्श की जिन्दगी जीने के लिए कह गये थे।
पैट्रोल कीमत बढने का विरोध एक अलग पहलू है। सरकार बदलेगी तो भी इन्हीं अर्थशास्त्रीयों की नीति चलेगी। इसलिए बीमारी का नही वरन सतही लक्ष्यों की तरफ ध्यान आकर्षित कर राजनीति की जाती है ठीक उसी तरह जैसे संक्रमण होने पर मूल कारण का इलाज करने के बजाय केवल दर्द निवारक गोलियों की सलाह दी जाय।
सबसे शर्मनाक बात विरोध की फूँहड़ता है। विरोध पक्ष के लिए न तो तेल घोटाले और न ही तेल कम्पनियों का मुनाफा कोई लक्ष्य है। जनता के दर्द के प्रति कोई गम्भीर नहीं है। परेशानी दो पहिया या कार मालिकों से अधिक उस गरीब को आयेगी जो उधार वाहन खरीदने की भी हैसियत नही रखता। उसके लिए सवारी का किराया बढ्ने का मतलब घर की रोटी सब्जी में कहीं कटौती करने की मजबूरी होगी। आश्चर्य तो उन नेताओं को बSलगाड़ी रिक्शे के साथ फोटो खिंचवाते देख कर होता है जो सड़क पर काफिलों के साथ चलते हैं और उड़ते भी केवल चार्टड जहाज में ही है।
गोपाल अग्रवाल
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