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अहंकार का खारापन

MyVision-With the Life and Religion
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अहंकार का खारापन

पत्नी विछोह में व्याकुल राम
समुद्र से रास्ता देंने को कर रहे थे मनुहार,
पर समुद्र को था अपनी विशालता का अहंकार,
नहीं समझ पा रहा था वह परमपिता के धैर्य को,
वनवासी वेष में अपने ही जन्मदाता के शौर्य को,
काल बलशाली है, पिता इस स्वरूप में मज़बूर है,
पर पिता से ही पायी शक्तियों के बल पर
समुद्र आज मगरूर है,
जिनकी शक्ति से ही श्वास है, व्यक्तित्व है,
धरा पर शासन है, अस्तित्व है,
समुद्र को अहंकार हो गया कि मेरा ही जन्मदाता
मेरे आगे नतमस्तक खड़ा है,
मुझसे भीख पाने के लिए मेरे चरणों पर पड़ा है,
जलधि अहंकार में भूल गया था मर्यादा को,
विनय की मुद्रा में सामने खड़े पिता को, विधाता को,
राम को विनय करते देख
भ्रमित और क्रुद्ध था लक्ष्मण,
क्योकि परमपिता के मात्र श्राप से छिन सकता था
समुद्र का सब कुछ तत्क्षण,
जलधि के अहंकार और राम की धैर्यता के तीन दिन,
संयम को क्रोध में परिवर्तित होने के तीन दिन,
राम द्वारा माँ सीता के विछोह के अतिरिक्त तीन दिन,
अहंकार को विनम्रता में परिवर्तित होने के तीन दिन,
क्षमा के बावज़ूद तीन दिन का अहंकार,
अपने पिता से किया गया अनुचित व्यवहार,
की गयी ध्रष्टता के निशान छोड़ गया है,
जलधि को उसका खारापन
उसके अस्तित्व से जोड़ गया है,
आदर, सम्मान और विनम्रता लाती है मीठापन
जिसके लिए समुद्र तरस रहा है,
आज भी खारेपन से कलंकित है
जबकि दर-ब-दर मीठा पानी लिए बरस रहा है,

गोपालजी

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