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काहे संसार के दर्द में पिसूँ, कागज़ खराब करूं अपना कलम घिसूँ,

MyVision-With the Life and Religion
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लिख न सका कुछ,
आकुल था लिखने को
पर मन गया था बुझ,

अखबारों में दबंगों की सुर्खियाँ,
दड़्बे में बंद डरी सहमी मुर्गियाँ,
खाली ज़ेबों में रोटी का सवाल,
बीघा भर ज़मीन को
पानी न बरसने का मलाल,
फुटपाथ पर लेटने वालों को
कब मिलेगी चाल,
कलम की नोक पर थे
न जाने कितने ख्याल,

उचट गया मन…….
पता नहीं मुंशी जी की मुनियां का क्या हुआ
कागज़ों पर तो खूब छाए वो
यहाँ वहाँ चूरन के ढेलों पर भी नज़र आते हैं,
बस ज़िंदगी में नहीं उतरते उनके कथ्य
लोग बुकशेल्फ में सजाते हैं,

तुलसी और व्यास ने
लाख घर घर ज़गह बनाई,
पर वो भी लोगों की
मानसिकता नहीं बदल पाई,

फिर मैं काहे
संसार के दर्द में पिसूँ,
कागज़ खराब करूं
अपना कलम घिसूँ,
अपनी मुनियां को दूंगा
वो तो पढ़ जायगी,
काहे क्षण भर भी लोगों को इमोशनल करूं
बेहतर है मेरी मुनियां
संसारिकता से गढ़ जायगी

गोपाल जी

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