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खुरदुरे हाथ

MyVision-With the Life and Religion
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ममता के हाथ खुरदुरे हो गये हैं

सहलाने पर गाल छिल जाते है,

शायद इसीलिए माँओं की बढ़ती उमर पर

बच्चों को नये दोस्त मिल जाते हैं,

लेकिन माँ क्या करे उस दिल का

जो सदा ममता से सराबोर और तर है,

उधर दूसरी कोमलताओं में उलझा बच्चा

माँ के रुदन से बेखबर है,

जिंदगी यूँ ही चलती है

हाथ आज या कल सब के खुरदुरे होते है,

पता तब चलता है

जब अपनों के स्वर बेसुरे होते हैं,

पर हाथों की खुरदुराहट

ममता पर कब असर करती है,

उसकी दीवानगी तो आँख मुंदने तक

बच्चे की उफ पर आह भरती है,

यह तो चक्र है

एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी बदस्तूर चलता है,

ममता नहीं बदलती

उम्र की साथ साथ बच्चे का स्वाद बदलता है

गोपालजी

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